समय-समय की बात है…

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख्स है मुंह फेर के जाने वाला
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फऱाज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

चंद रोज पहले एक वायरल वीडियो और कुछ स्टिल तस्वीरें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गईं। मुम्बई के शिवाजी पार्क में क्रिकेट के द्रोणाचार्य स्व. रामाकांत आचरेकर की स्मृति में हुए एक भव्य समारोह में दो दोस्तों का मिलन और फक्त कुछ सेकंड के बाद हाथ छुड़ाने का दृश्य किसी को भी द्रवित कर सकता है। ये दोस्त थे क्रिकेट जगत के बेताज बादशाह भारत रत्न सचिन तेंडुलकर और उनके बचपन के परम् मित्र या लगोंटिया यार विनोद कांबली। इस समय सचिन बहुत पावरफुल और किसी बादशाह सा भव्य जीवन जीते हैं। वो जेड प्लस सुरक्षा में रहते हैं और जहां भी जाते हैं चार्टर्ड प्लेन से ही सफर करते हैं। क्रिकेट जगत में वे भगवान की तरह पूजे जाते हैं। 51 वर्ष के सचिन की उपलब्धियों से किसी को भी ईष्र्या हो सकती है। उधर दूसरी तरफ हैं दीन-हीन-कांति हीन विनोद कांबली। गंजा सर, सफेद बेतरतीब दाढ़ी और निहायत साधरण किस्म के कपड़े पहने विनोद उस मंच पर ऐसे बैठाए गए थे जैसे वे कोई अवांछित व्यक्ति हों। आखिर में बैठे अपने फटेहाल मित्र से मिलने सचिन आगे बढ़ते हैं। विस्मय से उनकी और देखते विनोद कांबली उनका हाथ इस तरह थामते हैं जैसे कह रहे हों अब इस हाथ को कभी न छोडऩा दोस्त।
विनोद की भाव भंगिमा से लगता है जैसे वो अपने मित्र को पास वाली कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं। पास वाली कुर्सी पर बैठा कोई व्यक्ति (संभवत: आयोजकों में से कोई) पूरी ताकत से काम्बली का हाथ सचिन के हाथ से अलग कर देता है। दूसरे हाथ से वो व्यक्ति सचिन को अपनी कुर्सी पर जाने का इशारा करता है। सचिन भी जैसे पिंड छुड़ा कर अपने बचपन के दोस्त से दूर जा बैठते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं इस एक आध मिनट के सीन में क्या विनोद कांबली के अंतर्मन में स्कूल में साथ पढ़े अपने मित्र की यादें न कौंधी होंगी…! क्या उनके मन मे सचिन के साथ खेली गईं अनगिनत पारियों, साझेदारियों, न जाने कितने रिकार्ड, सुख दुख का फ्लैशबैक न घुमड़ रहा होगा। लेकिन एक तरफ भारत रत्न दोस्त था तो दूसरी तरफ बीमार और पैसों को मोहताज विनोद। कुछ मित्र कहेंगे कि अपनी हालत के लिए विनोद कांबली स्वयं उत्तरदायी हैं…उन्होंने शराबखोरी से खुद को बर्बाद कर लिया। आज वो जिस गुरबत से दो चार हो रहा है, ये तो होना ही था। लेकिन इस एपिसोड से ये बात तो साफ हो गई जनाब के जब तक आपके पास पैसे हैं, तब तक ही लोग पूछेंगे आप कैसे हैं। वर्ना काहे की दोस्ती, कैसी यारी। क्या ही बेहतर होता कि सचिन अपने इस यार से दिल खोल के गले मिलते…! उसके बाजू वाली कुर्सी पर साथ बैठते, या स्टेज पर ठीक अपने पास बैठाते। लेकिन ये हो न सका। अब बिचारे विनोद वक्त से वक्त की क्या शिकायत करें…अब वो वक्त ही न रहा…ये वक्त-वक्त की बात है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)