जिलाध्यक्षों के चुनाव में न दबाव, न भेदभाव

कल से शुरू होंगे भाजपा जिलाध्यक्षों के चुनाव.

भाजपा ने संगठन चुनाव के दूसरे चरण की प्रक्रिया पूरी कर ली है। इसके तहत अब तक 30 से अधिक जिलों में मंडल अध्यक्षों का निर्वाचन आम सहमति के साथ हो चुका है। अब तीसरे चरण में 16 दिसंबर से जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की जानी है जिसमें न दबाव, न भेदभाव का फॉर्मूला अपनाया जाएगा। गौरतलब है कि पहले चरण में बूथ स्तरीय समितियों का गठन किया गया। फिर मंडल स्तरीय समितियों के चुनाव हुए। अब जिले और संभवत: अगले वर्ष के जनवरी माह के शुरूआत में प्रदेश एवं अंत तक राष्ट्रीय अध्यक्ष तक का निर्वाचन सम्पन्न हो जाएगा।
गौरतलब है कि भाजपा हर तीन साल में अपने संगठन और अध्यक्ष में बदलाव करती है। यह बदलाव चुनाव या फिर रायशुमारी के आधार पर होते हैं और कहीं-कहीं सर्वसम्मति भी बन जाती है। प्रदेश में भाजपा के 55 शहरी एवं 5 ग्रामीण मिलाकर कुल 60 संगठनात्मक जिलों में अध्यक्ष के चुनाव होने हैं। संगठन चुनाव को लेकर पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि पदाधिकारियों की नियुक्ति में न दबाव चलेगा और न ही सिफारिश। मंडल अध्यक्ष हों या जिलाध्यक्ष उनकी नियुक्ति परफॉर्मेंस के आधार पर होगी। इसके लिए पहले रायशुमारी कराई जाएगी, अगर जरूरत पड़ी तो लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराए जाएंगे।
60 पार नेता नहीं बन पाएंगे जिलाध्यक्ष
इस बार 60 साल से अधिक उम्र के नेता जिला अध्यक्ष नहीं बन पाएंगे। भाजपा संगठन चुनाव की बैठक में इनके चयन का क्राइटेरिया तय हो गया है। मप्र में भाजपा के 60 संगठनात्मक जिले हैं। इनमें से 12 जिले ऐसे हैं, जहां जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को एक साल भी पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में यदि जिले के नेता और पदाधिकारी सहमत हुए तो इन्हें फिर मौका मिल सकता है। हालांकि जिलाध्यक्ष के रिपीट होने पर भी निर्वाचन प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी। यानी सर्वसम्मति से भी जिलाध्यक्ष को रिपीट करने का निर्णय हुआ तो भी निर्विरोध निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी और निर्वाचन की तारीख से जिलाध्यक्ष का कार्यकाल गिना जाएगा 50 प्रतिशत जिलों में जिलाध्यक्षों के चुनाव होने के बाद केन्द्रीय नेतृत्व को प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव कराने के लिए सूचना भेजी जाएगी।
संगठन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी
मप्र की मोहन कैबिनेट ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि भाजपा महिला वोटर्स पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाहती। बीते विधानसभा चुनाव के पहले छिंदवाड़ा जिले से अलग कर बनाए गए नए जिले पांढुर्णा में भाजपा ने वैशाली महाले को जनवरी में अध्यक्ष नियुक्त किया था। अब आगे संगठन चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के बाद संगठन में सबसे अहम प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी कविता पाटीदार को दी गई है। कविता राज्यसभा की सांसद भी हैं।
जिलाध्यक्षों के लिए फॉर्मूला
भाजपा के संगठन पर्व के अंतर्गत मंडल अध्यक्ष के चुनाव 15 दिसंबर तक संपन्न करा लिए गए हैं। तीसरे चरण में जिलाध्यक्षों के चुनाव 16 दिसंबर से आरंभ हो जाएंगे। पार्टी ने इस वर्ष जिलाध्यक्षों के चुनाव में कई तरह के बदलाव किए हैं। जिलाध्यक्ष के पदों पर महिलाओं को अधिक से अधिक अवसर देने की तैयारी चल रही है, वहीं आदिवासी क्षेत्रों में जिलाध्यक्ष के पदों पर केवल सामान्य वर्ग के नाम पर सहमति बनाने का निर्देश भी पार्टी ने दिया है। पार्टी नेताओं का विचार है कि आदिवासी क्षेत्रों में पंचायत से लेकर विधायक या सांसद तक के सारे पद आरक्षित रहते हैं। ऐसे में वहां सामान्य वर्ग के कार्यकर्ताओं के समायोजन के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है। यही वजह है कि पार्टी ऐसे क्षेत्रों में सामान्य वर्ग के ही कार्यकर्ताओं को संगठन में स्थान देगी। इससे समानता और सभी के सम्मान का संदेश जाएगा। दरअसल, कई आदिवासी जिलों के नेताओं ने मांग की थी कि उनके जिले में आदिवासी जिलाध्यक्ष ही बनाया जाए। धार जिले के नेताओं ने अपना पक्ष रखकर कहा था कि उनके जिले में कभी भी आदिवासी वर्ग के नेताओं को जिलाध्यक्ष की कमान नहीं मिली। यही स्थिति आलीराजपुर और डिंडोरी की है। इसके बाद संगठन ने तय किया कि इन आरक्षित जिलों में अधिकांश जनप्रतिनिधि आदिवासी ही होते हैं। पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा की सीटें भी आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित रहती हैं, ऐसे में अन्य वर्ग के लिए कोई गुंजाइश नहीं बनती है। यदि ये पद भी आदिवासियों को दे दिए जाएंगे तो बाकी कार्यकर्ता क्या करेंगे। मप्र में विधानसभा में आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीट आरक्षित हैं और अनुसूचित जनजाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। इधर, भाजपा के संगठनात्मक जिलों में आरक्षण जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन पार्टी इस तरह के प्रयोग कर रही है कि गैर आरक्षित क्षेत्रों में एससी-एसटी को अवसर दिया जाए। पार्टी नेताओं का मानना है कि अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग के कार्यकर्ताओं के लिए संगठन में अलग से मोर्चा गठित हैं, जिनमें इन वर्गों के नेताओं को ही महत्व दिया जाता है।