लंबे समय से ठंडे बस्ते में डला हुआ था मामला.
मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। दिल्ली और छत्तीसगढ़ के बाद अब मप्र में आबकारी घोटाला चर्चा का केंद्र बन गया है। इस घोटाले की जांच अभी तक ईडी कर रही थी। लेकिन अब इसमें सीबीआई की भी एंट्री हो गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में हुए 72 करोड़ के घोटाले की पोल जल्द खुल जाएगी। यह फर्जीवाड़ा 72 से 100 करोड़ रुपए के बीच होने का अनुमान है। हालांकि सूत्रों का दावा है कि घोटाले की राशि 200 करोड़ तक जा सकती है।
गौरतलब है कि इंदौर में हुए 72 करोड़ रुपए के शराब घोटाले जिसमें फर्जी चालान से राशि जमा कराई गई। 10 हजार की जगह शून्य बढ़ाकर 1 लाख रुपए का चालान विभाग में जमा किया जाना बताया गया, जबकि वास्तव में सरकारी खजाने में यह राशि पहुंची ही नहीं। इस मामले में ईडी की जांच के बाद 12 नवंबर को सीबीआई की भी एंट्री हो गई है। सीबीआई में दर्ज शिकायत के बाद एआईजी कंप्लेंट टीपी सिंह पालिसी डिवीजन नई दिल्ली की ओर से मुख्य सचिव अनुराग जैन को पत्र लिखा है जिसमें आवश्यक जांच करने को कहा गया है।
ईडी भी कर रही जांच
मप्र में आबकारी घोटाले की जांच ईडी पहले से ही कर रही है। केंद्रीय एजेंसी ने 6 मई को प्राथमिकी दर्ज कर आबकारी आयुक्त से 5 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी, जो भेज दी गई है। हालांकि, ईडी ने उसे अधूरी बताते हुए दोबारा पूरी जानकारी भेजने को कहा है। दरअसल, अफसरों और ठेकेदारों के गठजोड़ से यह घोटाला किया गया। शराब कारोबारियों ने बैंक में 10 हजार रुपए जमा कराए और षड्यंत्रपूर्वक उसे 10 लाख रुपए कर वेयरहाउस से देसी और विदेशी शराब उठा ली। इससे जमकर मुनाफा हुआ। कुल 194 चालानों में घोटाला किया गया, जिससे सरकार को 1 प्रतिशत इनकम टैक्स, 8 प्रतिशत परिवहन शुल्क की राशि का नुकसान हुआ। यह नुकसान करीब 97.97 करोड़ तक है। आबकारी आयुक्त ने ईडी को जो जानकारी भेजी है, उसमें सबसे बड़ी गड़बड़ी 2015 से 2018 के बीच इंदौर जिले में की गई है। ईडी ने जिन पांच बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी, वह है- फर्जी चालान कांड में शामिल ठेकेदारों की जानकारी, अब तक ठेकेदारों से वसूल की गई राशि का विवरण, इंदौर चालान कांड में सम्मिलित ठेकेदारों के बैंक खातों की जानकारी, इस संबंध में की जा रही जांच की वर्तमान स्थिति, प्रकरण के संबंध में विभागीय जांच समिति का प्रतिवेदन।
आपराधिक केस दर्ज करने की सिफारिश
सरकार ने फर्जी चालान घोटाले की जांच के लिए आईएएस स्नेहलता श्रीवास्तव के नेतृत्व में विभागीय जांच समिति बनाई। उन्होंने प्रमुख सचिव वाणिज्यिक कर को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें दोषियों पर एफआईआर की अनुशंसा की थी। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इंदौर में कूटरचित चालानों के जरिये शासन को 42 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस मामले में याचिका क्रमांक 10781/2022 दायर की गई थी, जिसमें हाई कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में कहा था कि इस पूरे कांड में विभागीय अधिकारियों के ठेकेदारों के साथ फर्जी चालान कांड में संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। जांच अधिकारी ने सरकार को 26 दिसंबर 2023 को भेजे पत्र में कहा था कि मामले में किसी भी प्रकार की जांच की जरूरत नहीं है। अब इस मामले में कोर्ट के आदेश के अनुसार आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाना ही उचित होगा।
राशि नहीं वसूली जा सकी
इंदौर के इस सबसे बड़े शराब घोटाले में सरकार की ओर से गठित समिति की जांच में यह भी सामने आया कि इस घोटाले में दोषी अफसरों ने गलत तरीके से 20 करोड़ रुपए जमा करवाए। यह राशि नगद रूप में बैंक के माध्यम से चालान से जमा कराई गई न कि ठेकेदार से। ईडी इस मामले की जांच कर रही है कि बैंक में जमा राशि कहां से आई। राशि ठेकेदारों से जमा क्यों नहीं करवाई गई। यह मनी लॉन्ड्रिंग का भी गंभीर मामला है। बची हुई राशि की वसूली नहीं हो पाई है। यही कारण है एक समय आबकारी विभाग ने नियम अनुसार घोटालेबाज शराब ठेकेदार एमजी रोड समूह के अविनाश और विजय श्रीवास्तव, जीपीओ चौराहा समूह के राकेश जायसवाल, तोप खाना समूह योगेंद्र जायसवाल, बाय पास चौराहा देवगुराडिय़ा समूह राहुल चौकसे, गवली पलासिया समूह सूर्यप्रकाश अरोरा, गोपाल शिवहरे, लवकुश और प्रदीप जायसवाल की संपत्ति की जानकारी जुटाकर नीलाम करने की बात कही थी, लेकिन अब तक घोटाले की राशि की वसूली नहीं हो पाई।
विधानसभा में भी उठा मुद्दा
इंदौर में हुए आबकारी घोटाले की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी। विधानसभा में 17 दिसंबर को यह मामला कांग्रेस विधायक महेश परमार समेत अन्य पांच विधायकों ने उठाया। उन्होंने कहा कि फर्जी चालान मामले में दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई है, जबकि पूर्व आईएएस स्नेहलता श्रीवास्तव की अध्यक्षता में गठित कमेटी जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए रिपोर्ट सौंप चुकी है। इधर आबकारी आयुक्त के द्वारा 4 जुलाई 2024 को भेजी गई जानकारी में इस बात की पुष्टि की गई है कि 2015-16 और 2016-17 के दौरान इंदौर जिले में कोषालयीन चालान में कूट रचना एवं हेराफेरी कर शासकीय राजस्व में नुकसान पहुंचाने की जानकारी सामने आई है। जांच में 41 करोड़ 65 लाख रुपए कम राशि जमा होना पाया गया, जिसमें 22 करोड़ 16 लाख रुपए की राशि ठेकेदारों से वसूली कर जमा कराई गई, 22 करोड़ रुपए की इस राशि को जमा कराए जाने के मामले में ईडी ने मनी लान्ड्रिंग के तहत जांच कर रही है।