गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण में घोर लापरवाही

सीएजी की रिपोर्ट में खुली प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल.

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। प्रदेश में सरकार का प्रयास है कि हर व्यक्ति को समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल सके। लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदेश में गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण में घोर लापरवाही बरती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण में हो रही लापरवाही के कारण नवजात बच्चों की मौत हो रही है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के बुरे हाल सामने आए हैं। वर्ष 2017 से 2022 के बीच प्रदेश में 32 लाख 30 हजार गर्भवती महिलाओं को टिटनेस टॉक्साइड (टीटी 2) का टीका नहीं लगा। यह संख्या इस अवधि में पंजीकृत कुल गर्भवती की 34 प्रतिशत है। इसके परिणामस्वरूप नवजातों में टिटनेस के 240 मामले सामने आए। रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रसवपूर्व देखभाल के लिए इन पांच वर्षों में पंजीकृत 93 लाख 88 हजार गर्भवती महिलाओं का पंजीयन हुआ, पर इनमें 68 प्रतिशत महिलाएं ही पहली तिमाही में पंजीकृत हुई। इसी प्रकार 21 लाख 85 हजार महिलाओं की प्रसव पूर्व चारों जांचें नहीं हुई।
48 प्रतिशत नहीं जाते सरकारी अस्पतालों में
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार देखभाल की खराब गुणवत्ता के चलते 48 प्रतिशत लोग नहीं जाते सरकारी अस्पतालों में। 41 प्रतिशत मानते हैं प्रतीक्षा समय अधिक है। 41 प्रतिशत इसलिए नहीं जाते कि उनके नजदीक कोई अस्पताल नहीं है। एसएनसीयू में भर्ती शिशुओं को भारत सरकार द्वारा निर्धारित दो जोड़ी पोशाक दी जानी थी, पर कई जगह नहीं दी गई। हीमोग्लोबिन का पता करने के लिए केंद्र सरकार ने 12 हजार 700 हीमोग्लोबिनो मीटर के क्रय के लिए प्लान में 46 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया था, पर स्वास्थ्य विभाग खरीदी नहीं कर पाया। इस कारण बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं और किशोरों की हीमोग्लोबिन की जांच नहीं हो सकी। एक वर्ष तक के शिशुओं की मौत के मामले में देश में सबसे बुरी स्थिति मप्र की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार एक हजार में से 41 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते। नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में जीवनरक्षक दवाओं की कमी थी। रिपोर्ट के अनुसार धार के एसएनसीयू में 85 में से 18 उपकरण नहीं मिले। चयनित 10 जिला अस्पतालों में महत्वपूर्ण उपकरणों की कमी 24 से 44 प्रतिशत तक थी। इसी तरह से सैंपल के रूप में लिए गए आठ सिविल अस्पतालों में अति आवश्यक उपकरणों की 53 से 60 प्रतिशत तक कमी थी। जिला अस्पतालों के एसएनसीयू तक में सभी महत्वपूर्ण उपकरण नहीं मिले। धार के एसएनसीयू में 85 में से 18 अहम उपकरण नहीं थे।
सीजेरियन प्रसव की सुविधा ही नहीं
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्षों में 93,88,000 गर्भवती महिलाओं का पंजीयन हुआ। लेकिन 21,85,000 महिलाओं की प्रसव पूर्व चारों जांचें नहीं हुई। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि 20 में से 17 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सीजेरियन प्रसव की सुविधा ही नहीं है। वहीं एक हजार में से 41 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रतिशत तक कम अस्पताल हैं। 2022 की अनुमानित जनसंख्या के मापदंड से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), 604 होने चाहिए पर 355 हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 1257 और उप स्वास्थ्य केंद्र 10 हजार 225 हैं।
प्रदेश के अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी
प्रदेश में 8 हजार 882 लोगों पर केवल एक सरकारी डॉक्टर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में स्वास्थ्य सुविधा से जुड़े संसाधन नहीं बढ़े हैं। सबसे ज्यादा परेशानी डॉक्टर्स की कमी के कारण हो रही है। प्रदेश की लगभग साढ़े आठ करोड़ जनसंख्या के उपचार के लिए सरकारी अस्पतालों में (स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और गैस राहत के अस्पताल मिलाकर) 9 हजार 635 डाक्टर ही हैं। इस हिसाब से 8 हजार 882 लोगों पर केवल एक सरकारी डॉक्टर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक एक हजार लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर का है। प्रदेश के लगभग 16 हजार निजी डॉक्टरों को भी मिला दें तो भी यह मापदंड पूरा नहीं होता। डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सेवा शर्तें बेहतर करनी होंगी। साथ ही अन्य विषय भी हर राजनीतिक दल के एजेंडे में प्राथमिकता से शामिल होने चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में है बड़ी चुनौती
राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों की सेहत सुधारना है। हाल कितने खराब हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि लगभग 375 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) बंधपत्र के अंतर्गत एक वर्ष के लिए नियुक्त डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं। 114 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में तो कोई डॉक्टर ही नहीं है। हाल यह है कि मेडिकल कालेज के अस्पताल को मिलाकर भी सिर्फ 139 अस्पतालों में सर्जरी से प्रसव की सुविधा है। इसकी बड़ी वजह भी डॉक्टरों की कमी ही है।