जम्मू-कश्मीर: भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का ख़ुलासा- अनुच्छेद 370 हटने के बाद सरकारी भर्तियों में फ़र्ज़ीवाड़ा

जम्मू-कश्मीर एसीबी की शुरुआती जांच से पता चला है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद 2020 में अज्ञात अधिकारियों ने अग्निशमन विभाग में भर्ती के लिए एक कथित भर्ती कंपनी को काम दिया और बाद में सैकड़ों पदों पर चयनित उम्मीदवारों की फ़र्ज़ी सूची बनाई गई.

श्रीनगर: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा साल 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया था. एक आधिकारिक जांच में सामने आया है कि इस अनुच्छेद के हटाए जाने के सात महीने से भी कम समय के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन के अज्ञात अधिकारियों ने कथित तौर पर एक भर्ती कंपनी को अवैध रूप से सरकारी नौकरियों की भर्ती का काम दिया और बाद में सैकड़ों पदों पर चयनित उम्मीदवारों की फर्जी सूची बनाई गई.

जम्मू-कश्मीर के प्रमुख भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच ने एक बार फिर भाजपा के उस दावे की पोल खोल दी है, जिसमें अनुच्छेद 370 के हटने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद इसके केंद्रशासित प्रदेश बनने से केंद्रीय गृह मंत्रालय के शासन में इसे भ्रष्टाचार से मुक्त करने की बात कही जाती है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा पूर्ववर्ती राज्य का विशेष दर्जा छीनने के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो और एसीबी सहित अन्य जांच एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा शुरू की गई भर्ती अभियानों और योजनाओं में अनियमितताओं की ओर इशारा किया है.

जम्मू-कश्मीर में 690 फायरमैन और फायरमैन ड्राइवरों की भर्ती की अपनी नवीनतम जांच में एसीबी ने पाया है कि अधिकारियों ने महाराज कृष्ण वली के स्वामित्व वाली जम्मू स्थित एक निजी फर्म को काम पर रखने के लिए कथित तौर पर अवैध उपाय अपनाए थे, जिसे 2020 में इन पदों के लिए लिखित परीक्षा आयोजित करने का ठेका दिया गया था.

एसीबी की शुरुआती जांच से पता चला है कि चयन प्रक्रिया का आधिकारिक रिकॉर्ड और अंतिम चयन सूची कथित तौर पर अग्निशमन और आपातकालीन सेवा विभाग के अज्ञात अधिकारियों द्वारा ‘स्वयं को और लाभार्थियों को अनुचित लाभ प्रदान करने’ के लिए तैयार की गई थी.

कथित घोटाले की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जांच की गई थी, जिसने इस साल 24 जुलाई को एसीबी को अपने निष्कर्ष सौंपे थे. एसीबी जांच में पता चला है कि इन पदों के लिए चुने गए 690 उम्मीदवारों में पांच भाई, चचेरे भाई और अग्निशमन सेवा अधिकारियों के कुछ रिश्तेदार और साथ ही जम्मू-कश्मीर के एक ही इलाके के उम्मीदवारों के कई समूह शामिल थे.

जांच से पता चला है कि तीन उम्मीदवारों ने परीक्षा में क्रमशः 11, 17 और 24 अंक प्राप्त किए, लेकिन अंतिम चयन सूची में उनमें से प्रत्येक को 90 अंक प्राप्त दिखाया गया. एसीबी के एक अधिकारी ने कहा, कुल चयनित उम्मीदवारों में से 109 ने अंतिम कटऑफ से कम अंक हासिल किए थे.

ज्ञात हो कि उमर अब्दुल्ला द्वारा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के तीन महीने से भी कम समय बाद इस जांच के निष्कर्ष सार्वजनिक किए गए थे.

मालूम हो कि इन पदों के लिए भर्ती 2013 में अग्निशमन सेवा विभाग द्वारा शुरू की गई थी, लेकिन चयन प्रक्रिया में कुछ विसंगतियों को देखते हुए प्रक्रिया 2016 में समाप्त कर दी गई. 2018 में एक निविदा प्रक्रिया के बाद, मेसर्स टाइमिंग टेक्नोलॉजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद स्थित एक फर्म को जम्मू-कश्मीर में शारीरिक परीक्षण और लिखित परीक्षा आयोजित करने के लिए चुना गया था.

हालांकि, भर्ती प्रक्रिया फिर से अनियमितताओं के आरोपों के कारण बाधित हो गई, जिससे जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग को भर्ती फिर से रोकनी पड़ी. 1 अगस्त 2019 को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश करने से चार दिन पहले इसे रद्द कर दिया गया.

एक महीने और पांच दिन बाद 6 सितंबर, 2019 को प्रशासन ने अग्निशमन सेवा विभाग को जम्मू स्थित भर्ती एजेंसी को बदलने का निर्देश दिया.

कम बोली लगाने वाली कंपनी की अनदेखी की गई

इसके बाद 1 जनवरी, 2020 को अग्निशमन सेवा विभाग ने चयन प्रक्रिया आयोजित करने के लिए फिर से निविदाएं आमंत्रित कीं. एसीबी जांच में पाया गया कि छह फर्मों ने टेंडरिंग में भाग लिया, जिनमें से मेसर्स यूएमसी टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड शामिल थी. ये कोलकाता स्थित एक फर्म है, जिसने सबसे कम बोली लगाई. इसे कंपनी (एल1) कहा गया. इसने प्रति उम्मीदवार 107.50 रुपये की दर से बोली लगाई.

एल-1 बोलीदाता ने उम्मीदवारों और केंद्रों की संख्या से संबंधित कुछ वास्तविक प्रश्न उठाए, लेकिन बिना कोई कारण बताए, जम्मू स्थित फर्म मेसर्स एलएमईएस आईटी एलएलपी (एल-2) बोलीदाता के साथ 179 रुपये प्रति अभ्यर्थी की दर पर बातचीत की गई.

एसीबी अधिकारी ने कहा, ‘डीआरबी के अध्यक्ष से मंजूरी मिलने के बाद बिना किसी औचित्य के एल-1 बोलीदाता की अनदेखी करके अयोग्य एजेंसी मेसर्स एलएमईएस आईटी एलएलपी, जम्मू को 02.03.2020 को कार्य आदेश दिया गया.’

ये परीक्षा 20 सितंबर, 2020 को आयोजित की गई थी और 592 फायरमैन और 98 फायरमैन ड्राइवरों की चयन सूची 3 अक्टूबर, 2020 को जारी की गई थी.

जांच में पाया गया है कि एक ऐसी फर्म को अनुबंध देने में पक्षपात दिखाया गया, जिसके पास समान काम करने का कोई सिद्ध अनुभव नहीं था, जैसा कि निविदा आमंत्रण सूचना में बताया गया है.

इसमें पाया गया, ‘एल-2 की बोली विभाग द्वारा यह जानते हुए स्वीकार कर ली गई थी कि एल-2 नवंबर, 2017 में एक नवगठित फर्म थी और महाराज कृष्ण वली (99% शेयर के साथ मुख्य भागीदार) वही व्यक्ति थे, जो पहले भी मेसर्स टाइमिंग टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के साथ रिसोर्स पर्सन बने हुए थे.’

केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि सबसे कम बोली लगाने वाला किसी अनुबंध से पीछे हट जाता है, तो निविदा प्रक्रिया फिर से शुरू करनी होगी. लेकिन, अग्निशमन विभाग की ओर से इस गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया.

समझ से परे सवाल

एसीबी अधिकारी ने बताया कि जांच के दौरान प्रश्नपत्र उन उम्मीदवारों की समझ से परे पाए गए, जिन्होंने 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, जो इस सेवा की आवश्यक न्यूनतम योग्यता है. उत्तर कुंजी की तुलना में ओएमआर शीट की मैन्युअल समीक्षा से चयन प्रक्रिया में विसंगतियां सामने आईं.

एसीबी ने इस मामले में (एफआईआर संख्या: 1/2025) धारा 7 (लोक सेवक द्वारा आधिकारिक कार्य के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य संतुष्टि लेना), 13 (1) (ए) (लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार) और 13 (2) (कम से कम एक साल की कैद और जुर्माना जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है) और 120-बी (आपराधिक साजिश के लिए सजा), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (जालसाजी के लिए) धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया है.

इसमें अग्निशमन सेवा के अध्यक्ष और सदस्यों के साथ ही विभाग के भर्ती बोर्ड और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 471 (जाली दस्तावेज का धोखाधड़ी या बेईमानी से उपयोग) के तहत भी मामला दर्ज किया गया है. एसीबी अधिकारी ने आगे बताया कि इस मामले में आगे की जांच जारी है.