स्टार्स परियोजना को स्कूल शिक्षा विभाग ने लगाया पलीता
भोपाल/मंगल भारत। स्टार्स परियोजना (स्ट्रेंथनिंग टीचिंग-लर्निंग एण्ड रिजल्ट्स फॉर स्टेट्स प्रोजेक्ट)के तहत प्रदेश के उन प्राचार्यों और शिक्षकों को सिंगापुर के दौरे पर जाना था, जिनके स्कूल का बोर्ड एग्जाम का रिजल्ट 90 प्रतिशत या इससे ज्यादा रहा है। लेकिन मप्र स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्टार्स परियोजना को पलिता लगाते हुए नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए खुद को पात्र बनाया और सिंगापुर यात्रा पर निकल गए। गौरतलब है कि सिंगापुर यात्रा के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने परफॉर्मेंस, पद और उम्र का क्राइटेरिया तय किया था। इस क्राइटेरिया के मुताबिक वे प्राचार्य और शिक्षक दौरे के लिए पात्र है, जिनके स्कूल का बोर्ड एग्जाम का रिजल्ट 90 प्रतिशत या इससे ज्यादा रहा है। इस क्राइटेरिया के मुताबिक स्कूलों के प्रिंसिपल और ऐसे टीचर जो प्रिंसिपल के समकक्ष पद पर नियुक्त है वो पात्र हैं। वहीं ऐसे अधिकारी और प्राचार्य जिनका जन्म जनवरी 1966 से पहले नहीं हुआ हो, यानी उनकी उम्र 58 साल से ज्यादा न हो, या वे 2028-29 में रिटायर न हो रहे हो। लेकिन मप्र के स्कूल शिक्षा विभाग का जो 68 सदस्यीय दल 5 जनवरी को सिंगापुर गया है, उसमें कई इसके लिए पात्र ही नहीं हैं।
उम्र-पद का नियम तोड़ दिया
स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से इस विदेश यात्रा के लिए उम्र, पद और परफॉर्मेंस का क्राइटेरिया तय किया गया था। अधिकारियों ने परफॉर्मेंस का क्राइटेरिया तो बरकरार रखा मगर उम्र और पद का नियम खुद ही तोड़ दिया। खास बात ये है कि जिस अफसर ने ये नियम बनाए वे खुद भी इस अध्ययन दल में शामिल हैं और वो खुद उम्र के क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठते। साथ ही कुछ अफसरों ने विदेश यात्रा पर जाने के लिए अपना पद ही बदल दिया। वे काम कम्प्यूटर प्रोग्रामर का करते हैं और विदेश यात्रा के लिए वो प्रिंसिपल बन गए। विदेश जाने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरों ने किस तरह से नियमों को तोड़ा है? इसमें ऐसे चार अधिकारी और प्रोग्रामर को भेजा गया है, जो अगले साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसमें अतिरिक्त संचालक ओएल मंडलोई व सितांशु शुक्ला, प्रोग्रामर शेखर सराठे, कंट्रोलर फाइनेंस पंकज मोहन शामिल हैं। वहीं, दूसरा दल 13 जनवरी से जाने वाला है। उसमें भी जिन्हें शामिल किया है, उनमें से कई अधिकारी अगले साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। बता दें कि इस यात्रा के लिए शासन की ओर से चार करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
9 अधिकारी इस दौरे पर
इस यात्रा में कई ऐसे प्राचार्य भी दल में शामिल हैं, जिनके स्कूलों का परिणाम पांच सालों में बेहतर नहीं आया है। मालूम हो कि स्कूल शिक्षा विभाग के 19 अधिकारी इस दौरे पर गए हैं। इसमें महेश मूलचंदानी और शेखर सराठे राज्य शिक्षा केंद्र में प्रोग्रामर के पद पर काम कर रहे हैं। इन्हें उच्च पद प्रभार के तहत प्राचार्य पद मिला है, लेकिन ये आइटी व कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का काम देखते हैं। इसके साथ ही ओएसडी चंद्रशेखर सोलंकी विधि शाखा देखते हैं। सिंगापुर यात्रा के लिए इन्होंने अपने नाम के आगे प्रिंसिपल, आईटी( डेटा मैनेजमेंट) लिखवाया। देवेंद्र सिसौदिया का नाम लिस्ट में शामिल था, लेकिन बाद में उनका नाम हट गया और वे ट्रेनिंग प्रोग्राम पर नहीं गए। साथ ही ऐसे अधिकारी जो दूसरे विभाग से प्रतिनियुक्ति पर स्कूल शिक्षा विभाग में आए हैं वे भी इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए सिंगापुर गए हैं। इसमें प्रतिनियुक्ति पर तैनात ओएसडी चंद्रशेखर सोलंकी है। सोलंकी 5 साल पहले दक्षिण कोरिया के दौरे पर भी गए थे। हालांकि स्कूल शिक्षा विभाग के आला अफसरों को कहना है कि यात्रा के लिए तीन मापदंड तय किए गए थे। चयन में सभी नियमों का पालन किया गया है। जहां तक अगले साल सेवानिवृत्त वाले अधिकारियों की बात है तो इस पद तक पहुंचते-पहुंचते सेवानिवृत्त होने लगते हैं। वहीं, जो प्रोग्रामर गए हैं, वे प्राचार्य भी हैं। वहीं स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव और आईएएस अधिकारी संजय गोयल का कहना है कि इस स्टडी टूर पर शिक्षकों को भेजने का मकसद है कि वे लोग यहां से पढ़ाने की नई तकनीकें सीखें और लौटकर प्रदेश के छात्रों को उन तकनीकों का लाभ दिलाएं। जो लोग इस टूर पर गए हैं वो प्रदेश के मास्टर ट्रेनर होंगे। ये सभी लोग वापस आएंगे तब इनसे प्रेजेंटेशन के जरिए पूछा जाएगा कि इन्होंने 6 दिन में वहां क्या सीखा और देखा। जहां तक उन लोगों का सवाल है जो नियमों को तोड़कर विदेश यात्रा पर गए हैं। यदि ये साबित हो जाता है कि उन्होंने नियम तोड़े हैं, तो उनसे यात्रा का पूरा खर्च वसूल किया जाएगा।
पांच साल पहले भी हुई थी विदेश यात्रा
पांच साल पहले, स्कूल शिक्षा विभाग ने दक्षिण कोरिया की यात्रा आयोजित की थी, जिसमें तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी, प्रमुख सचिव और अन्य विभागीय अधिकारी सहित 200 से अधिक लोग शामिल थे। यह यात्रा तीन चरणों में आयोजित की गई थी और इसमें करीब 10 करोड़ रुपए का खर्च आया था। दक्षिण कोरिया की इस यात्रा के बाद टीम ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, और तत्कालीन प्रमुख सचिव को प्रेजेंटेशन भी दिया था। रिपोर्ट में शैक्षणिक सुधारों के लिए कई सिफारिशें की गई थीं। इनमें स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार, हाई-टेक क्लास रुम और व्यवसायिक पाठ्यक्रम को शामिल करने जैसे सुझाव शामिल थे। इन सुधारों को लागू करने के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कोई खास असर नहीं दिखा। इसके अलावा विभाग दिल्ली के सरकारी स्कूलों और फिर बेंगलुरु के स्कूलों को देखने के लिए भी प्राचार्यों को भेज चुका है। इन यात्राओं पर भी 5-7 लाख रु. खर्च हुए थे।