मुख्यमंत्री डॉ. यादव को करनी पड़ रही है भारी मशक्कत
मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। प्रदेश में डेढ़ दशक से अधिक समय तक सरकार के मुखिया रहे शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में जिस तरह से नर्मदा जल के उपयोग में लापरवाही बरती गई है, वह अब प्रदेश को भारी पड़ सकती है। यही वजह है कि अब मुख्यमंत्री डां. मोहन यादव को इसके लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। हालांकि माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री यादव के प्रयासों से प्रदेश का नुकसान होने से बच सकता है। दरअसल, नर्मदा जल के उपयोग को लेकर समझौते के तहत मप्र को अपने हिस्से के नर्मदा जल के उपयोग के लिए निर्धारित 45 साल की डेडलाइन बीते माह समाप्त हो चुकी है। ऐसे में समझौते की शर्त के अनुसार यह पानी अब गुजरात के हिस्से में जाना है। दरअसल, पूर्व की सरकार इस मामले में गंभीर नहीं रही है, जिससे पानी के उपयोग के लिए समय पर परियोजनाओं को न तो तैयार किया गया और न ही उन पर काम ही किया गया। यही वजह है कि तय शर्तों के अनुसार प्रदेश में नर्मदा जल का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। शर्तों के अनुसार जब इसकी समय सीमा समाप्त होने का समय आया, तब सरकार ने आनन -फॅानन में इससे संबंधित परियोजनाओं पर काम शुरु किया , जिसकी वजह से सरकार की ओर से पिछले कुछ वर्षों में हजारों करोड़ की नर्मदा सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें से कई का निर्माण कार्य भी अभी शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन इन सिंचाई परियोजनाओं के जरिए सरकार यह साबित करने का प्रयास करेगी कि वह अपने हिस्से के 18.25 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) नर्मदा जल का उपयोग कर रही है, क्योंकि अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाई, तो मप्र के हिस्से का बचा पानी गुजरात को चला जाएगा। दरअसल, नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण (एनडीडब्ल्यूटी) ने वर्ष 1979 में नर्मदा जल समझौते के तहत चार राज्यों में पानी का बंटवारा किया था। इसमें सबसे ज्यादा 18.25 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) मप्र के हिस्से में आया। चारों राज्यों को कुल 28.0 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था। गुजरात को 9.0, राजस्थान को 0.5 और महाराष्ट्र को 0.25 एमएएफ पानी उपयोग का अधिकार मिला।
नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण करेगा समीक्षा
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण अब वापस बैठेगा। इसके बाद चारों राज्यों को आवंटित जल बंटवारे की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। इस दौरान मप्र को न्यायाधिकरण के समक्ष साबित करना होगा कि वह अपने हिस्से के पूरे नर्मदा जल का उपयोग कर रहा है। अगर वह न्यायाधिकरण को यह समझाने में असमर्थ रहा कि वह अपने हिस्से के पानी का पूरा उपयोग नहीं कर रहा है, तो उसका पानी गुजरात चला जाएगा।
चार दशक में 13.14 एमएएफ पानी का उपयोग
नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने मप्र के 18.25 एमएएफ जल का उपयोग करने के लिए दिसंबर, 2024 तक का समय दिया था। न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया था कि इस अवधि में मप्र अपने हिस्से के जितने जल का उपयोग कर पाएगा, उस पर उसका अधिकार बना रहेगा, वरना यह अन्य राज्यों को आवंटित कर दिया जाएगा। शुरुआती वर्षों में सरकारों ने अपने हिस्से के नर्मदा जल के उपयोग के लिए बहुत ज्यादा गंभीरता से काम नहीं किया। वर्ष 2019 में इस मुद्दे पर फोकस तेज हुआ। 1979 से 2019 तक 40 वर्षों में एमपी केवल 13.14 एमएएफ पानी का उपयोग कर सका। वर्ष 2019 में सरकार ने शेष पांच वर्षों में 5.11 एमएएफ पानी का उपयोग करने के लिए 70,000 करोड़ रुपए की राशि का अनुमान लगाया गया था। नर्मदा घाटी विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार के प्रयासों से राज्य इस अंतर को भरने में कामयाब रहा। पिछले साल सितंबर में मप्र निर्मित और निर्माणाधीन सिंचाई परियोजनाओं के जरिए 17.62 एमएएफ जल के उपयोग की स्थिति में पहुंच गया था। इसके बाद हजारों करोड़ की सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी दी गई और आज मप्र अपने हिस्से के पूरे नर्मदा जल के उपयोग की स्थिति में पहुंच गया है।
नर्मदा जल उपयोग के लिए प्रयास
जुलाई, 2024-नर्मदा घाटी विकास विभाग की 9,271 करोड़ 96 लाख रुपए की लागत की सात परियोजनाओं की स्वीकृति दी गई। इसके पहले मार्च 2022 में 26 हजार 716 करोड़ रुपए लागत की 12 नर्मदा सिंचाई परियोजनाएं मंजूर की गई। जून 2020 में मप्र सरकार ने प्रदेश को आवंटित नर्मदा जल का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय व्यवस्था जुटाने सरकार के स्वामित्व की नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट कंपनी और पॉवर फाइनेंस कार्पोरेशन नई दिल्ली के मध्य 20 हजार करोड़ का एमओयू हस्ताक्षरित किया, ताकि नर्मदा घाटी की निर्माणाधीन परियोजनाओं को पूरा और नई स्वीकृत योजनाओं को तत्काल शुरू किया जा सके। फिलहाल नर्मदा नदी से सिंचाई के साथ जबलपुर, नर्मदापुरम, भोपाल, देवास सहित अन्य जिलों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है।