अभिषेक मनु सिंघवी की सीट से मिली नकदी: राज्यसभा के पास कोई जानकारी नहीं

दिसंबर 2024 में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट से नकदी बरामद होने का दावा किया था, लेकिन आरटीआई से खुलासा हुआ है कि राज्यसभा और लोकसभा सचिवालय के पास इस मामले से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है. दोनों सचिवालय एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं.

नई दिल्ली: दिसंबर 2024 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान जब कांग्रेस पार्टी ‘अडानी घोटाले’ पर चर्चा की मांग कर रही थी, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ यह कहकर चर्चा का रुख मोड़ दिया था कि कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट से ‘नकदी’ बरामद हुई है.

इसके बाद सत्ताधारी दल और विपक्षी नेताओं के बीच कुछ दिनों तक आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था. लेकिन अब आरटीआई के माध्यम से पता चला है कि राज्यसभा और लोकसभा सचिवालय के पास इस नकदी प्रकरण के संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है.

क्या है मामला?

6 दिसंबर, 2024 को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन में घोषणा की थी कि 5 दिसंबर को एंटी-सैबोटाज सुरक्षा जांच के दौरान सीट नंबर 222 से नकदी का बंडल बरामद किया गया है. वर्तमान में यह सीट कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी को आवंटित है.

धनखड़ ने कहा था, ‘मैंने सोचा कि कोई व्यक्ति इसे लेने के लिए आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नकदी असली है या नकली, यह जांच के बाद ही पता चलेगा. प्रारंभिक जांच में यह 500 रुपये के 100 नोटों की गड्डी लगती है, लेकिन इसकी पुष्टि जरूरी है.’ सभापति ने मामले की कानूनी जांच को आवश्यक बताया था.

वहीं अभिषेक मनु सिंघवी ने इस घटना को ‘हास्यास्पद’ करार देते हुए कहा था, ‘अगर यह सुरक्षा चूक न होती तो यह मजाकिया लग सकता था. क्या अब हमें अपनी सीटों को तारों से घेराबंदी करनी होगा या शीशे का बाड़ा बनवाना होगा ताकि कोई भी सीट पर कुछ भी न रख सके?’

सिंघवी ने जांच की मांग करते हुए कहा था कि यह भी पता लगाया जाए कि कोई बाहरी व्यक्ति सदन के अंदर कैसे घुसा और नकदी वहां कैसे रखी गई.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था, ‘सरकार संसद नहीं चलाना चाहती. जब हम अडानी घोटाले पर चर्चा चाहते हैं, तो यह नया मुद्दा उठा दिया गया. यह एक साजिश है.’

सीआईएसएफ की एंटी-सैबोटाज टीमें हर सुबह करीब तीन घंटे तक लोकसभा और राज्यसभा की सभी सीटों की जांच की करती है. ये टीमें विस्फोटकों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित खोजी कुत्तों की मदद लेती हैं. इस दौरान संसद का स्टाफ बाहर चला जाता है, और पूरा सदन सीआईएसएफ की सुरक्षा टीम के हवाले कर दिया जाता है.

आरटीआई से क्या मिला?

बिहार के सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया कुमार ने 25 दिसंबर, 2024 को आरटीआई दाखिल करते हुए राज्यसभा सचिवालय से चार जानकारी मांगी:

कृपया इस मामले की जांच शुरू करने के आदेश की प्रति उपलब्ध कराएं.
कृपया इस जांच की वर्तमान स्थिति का विवरण प्रदान करें.
यदि जांच पूरी हो गई है, तो कृपया जांच रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराएं.
कृपया जांच दल द्वारा उपयोग की गई सीसीटीवी फुटेज की प्रति प्रदान करें.

9 जनवरी, 2025 को राज्यसभा सचिवालय ने जवाब दिया, ‘मांगी गई जानकारी इस सचिवालय के पास उपलब्ध नहीं है. यह विषय लोकसभा सचिवालय से संबंधित हो सकता है. इसलिए, आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 6(3) के प्रावधानों के अनुसार, इस आवेदन की एक प्रति लोकसभा सचिवालय को स्थानांतरित कर दी गई है.’

6 फरवरी 2025 को लोकसभा सचिवालय ने जवाब दिया, जिसमें पहले तीन सवालों के जवाब में लिखा था- ‘यह मामला राज्यसभा सचिवालय से संबंधित है.’

और चौथे सवाल के जवाब में लिखा था, ‘मांगी गई जानकारी सुरक्षा कारणों से आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 8(1)(A) के तहत नहीं दी जा सकती है.’

यदि लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं, तो जांच की पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित होगी?

क्या यह संयोग है कि यह मामला उस समय उठा जब विपक्ष सरकार से अडानी मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहा था?

लोकसभा सचिवालय ने अपने जवाब में जोड़ा है, यह मामला लोकसभा सचिवालय के संयुक्त सचिव (सुरक्षा) से संबंधित हो सकता है, इसलिए यह आवेदन आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 6(3) के तहत उन्हें स्थानांतरित किया जा रहा है.

लेकिन यह प्रश्न बना हुआ है कि लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के पास इतने महत्वपूर्ण गंभीर आरोप की जांच के विषय में कोई जानकारी नहीं है. क्या इस विषय पर कोई जांच नहीं बिठाई गयी? क्या सभापति महोदय की घोषणा के बाद भी कोई जांच नहीं शुरू हुई?

ये सवाल अभी भी बने हुए हैं.