सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोहभंग

मप्र में शिक्षा का बजट बढ़ा लेकिन बच्चे घटे.

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र में शिक्षा का बजट तो बढ़ा है , किंतु बच्चे घट गए हैं। यह भी कह सकते हैं कि सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोहभंग हो रहा है। आलम यह है कि प्रदेश में 26 लाख बच्चे कम हो गए। पिछले 10 साल में सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली से आठवीं तक के 21 लाख बच्चे घटे है। इसी तरह निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों में भी 5 लाख विद्यार्थी भी स्कूल छोडक़र चले गए हैं। इसके पहले भी स्कूल शिक्षा विभाग की रिपोर्ट में यह आंकड़े सामने आने के बाद भी विभाग के अफसरों के कानों में जू तक नहीं रेगीं। वहीं साल 2024-25 में स्कूल शिक्षा विभाग के लिए मप्र में 33, 533 करोड़ रुपए का बजट का प्रावधान रखा गया था। इतनी बड़ी राशि बजट में रखने के बाद भी बच्चों की संख्या कम होना चिंताजनक बात है। दरअसल विधानसभा में स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह ग्रेवाल के सवाल के जवाब में सदन को यह जानकारी दी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने सदन में लिखित बताया कि वर्ष 2015-16 में शासकीय विद्यालय में नामांकन 78.96 लाख थे, जो 2024-25 में घटकर 58.17 लाख रह गए। इसी अवधि में निजी विद्यालयों में 2015-16 में 48.84 नामांकन 2024-25 में घटकर 43.93 लाख ही रह गए। वर्ष 2015-16 में शासकीय और निजी विद्यालय को मिलाकर 127.8 लाख बच्चे थे, जो वर्ष 2024-25 में घटकर 102.10 लाख रह गए। यानी शासकीय एवं निजी विद्यालयों में कक्षा 1 से लेकर 8 वीं तक के 25 लाख 70 हजार से अधिक बच्चे 10 साल में घटे हैं। स्कूलों के प्रवेश में यह गिरावट कक्षा 9 से 12 में भी रही। शासकीय विद्यालयों में वर्ष 2020-21 में 23.94 लाख से घटकर 2024-25 में 21.26 लाख छात्र रह गए और इसमें 2.68 लाख की कमी दर्ज हुई है। वहीं, निजी विद्यालयों में छात्रों की संख्या 13.5 लाख से घटकर 12.85 लाख रह गई है। पिछले पांच सालों में कक्षा 9वी से 12वी तक के 2.88 लाख छात्र-छात्राएं घटी हैं। विधायक प्रताप ग्रेवाल ने आरोप लगाया कि बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा में सकल नामांकन दर 98 प्रतिशत तथा माध्यमिक शिक्षा में 70 प्रतिशत और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में 67 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। शासकीय एवं निजी क्षेत्र में 1,25,000 विद्यालय संचालित हैं। जबकि विद्यालय में कम प्रवेश से यह सिद्ध हो रहा है कि प्रदेश में गुणवत्ताहीन शिक्षा के कारण विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर चौकाने वाली कमी हो रही है और खर्च लगातार बढ़ रहा है।
बेरोजगारों की फीस से बांटी स्कूटी और लैपटॉप
बेरोजगारों से परीक्षा फीस के रूप में सरकार द्वारा वसूले गए 297 करोड़ रुपए प्रावीण्य श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों को स्कूटी एवं लैपटॉप देने में लुटा दिए है, जबकि कर्मचारी चयन मंडल के पास जनवरी 2025 को 245.10 करोड़ की फिक्स डिपाजिट है। उधर, वर्ष 2022 में लोक शिक्षण संचालनालय को राशि देने की वजह से भी बैंक में जमा राशि में कमी आई है। बताया जाता है कि कर्मचारी चयन मंडल ने 2016 से 2024 तक 112 परीक्षाएं आयोजित की थी, जिससे सरकार ने फीस के नाम पर आवेदकों से 1058 करोड़ वसूला था। तत्कालीन व्यापमं को 530 करोड़ रुपए मिले थे और इसमें से 297 करोड़ रुपए लोक शिक्षण संचालनालय को बांट दिए गए।

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