यूपी कॉन्स्टेबल भर्ती: अभ्यर्थियों के सरनेम के सवाल पर पुलिस ने कहा- टाइटल के आधार पर जाति निर्धारित नहीं

उत्तर प्रदेश कॉन्स्टेबल भर्ती के नतीजे आने के बाद से ओबीसी सूची में ‘पांडे, उपाध्याय, झा’ जैसे सरनेम दिखने पर सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना हो रही थी. अब उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने सफाई दी कि जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षण दिया गया है, न कि सरनेम के आधार पर.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (यूपीपीआरपीबी) ने 13 मार्च को सिविल पुलिस कॉन्स्टेबल के पदों पर भर्ती के लिए हुई परीक्षा के परिणाम घोषित किए थे. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बोर्ड को बधाई देते हुए कहा था कि ‘उत्तर प्रदेश के इतिहास की सबसे बड़ी सिपाही भर्ती परीक्षा के सफल आयोजन में संलग्न रहे यूपीपीआरपीबी के सभी अधिकारियों/कर्मचारियों को साधुवाद.’

लेकिन जल्द ही ‘सफल आयोजन’ के दावे पर सवाल खड़े होने लगे. वजह थी कि यूपीपीआरपीबी ने हमेशा की तरह अगल-अलग वर्गों की अलग-अलग मेरिट लिस्ट जारी की थी. ऐसे में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में कई ऐसे अभ्यार्थियों मिले, जिनका उपनाम (सरनेम)- पांडे, उपाध्याय और झा है. इन उपनामों को आमतौर पर देश की उन जाति समुदायों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो ओबीसी में नहीं आते.

ऐसे में जल्द में सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी और यूपी की योगी सरकार को पिछड़ों को हक मारने वाला बताया जाने लगा. राज्य के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी इस मुद्दे को उठाया.

अब यूपीपीआरपीबी ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि सरनेम के आधार पर किसी अभ्यर्थी की जाति निर्धारित नहीं की जाती है.

क्या है विवाद?

यूपीपीआरपीबी ने आरक्षी नागरिक पुलिस के 60,244 पदों पर भर्ती निकाली थीं , जिनके लिए 48,17,441 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. बीते सप्ताह परिणाम आए तो पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कट ऑफ ईडब्लूएस से ज्यादा है.

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इसके अलावा कुल सीटों में से ओबीसी के लिए आरक्षित 16,264 सीटों पर कई ऐसे उम्मीदवारों नज़र आए, जिनके सरनेम ऐसे थे, दो अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आने वाले जाति समुदाय इस्तेमाल नहीं करते हैं. जैसे- पंकज पांडे, दीपक झा और शिवानी उपाध्याय.

इससे सोशल मीडिया पर विवाद शुरू हुआ. सूर्या समाजवादी नाम के एक्स यूजर ने लिखा, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती में पंकज पांडेय ओबीसी कोटे में पास हो गए. योगी जी की महिमा निराली है. ओबीसी की किस्मत काली है.’

वहीं, सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने चुटकी लेते हुए एक्स के एआई चैटबॉट ग्रोक से पूछा ‘भारत के किस जिले में पांडे सरनेम वाले लोग ओबीसी होते हैं?’ ग्रोक ने जवाब दिया किसी जिले में नहीं.

कांग्रेस के ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय मीडिया इंचार्ज डॉ. अरुणेश यादव ने लिखा, ‘देखिए उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती में पंकज पांडेय ओबीसी कोटे से पास हो गए हैं! अभी तीन-चार दिन पहले जब परिणाम घोषित हुए थे तो मैं यही कयास लग रहा था, कम से कम इस बार यूपी सरकार कोई धांधली ना करें. बधाई हो!!’

यूपीपीआरपीबी का जवाब

19 मार्च को एक पोस्ट में यूपीपीआरपीबी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है, ‘भर्ती में आरक्षण संबंधित सभी शासनादेश व इस संबंध में माननीय उच्चतम व उच्च न्यायालय के संबंधित निर्णयों के अनुरूप पूर्ण शुचिता के साथ सभी कार्यवाही की गई है.’

सोशल मीडिया पोस्ट्स को भ्रामक बताते हुए लिखा, ‘सोशल मीडिया में कतिपय अभ्यर्थियों के सरनेम या टाइटल के आधार पर उनकी जातियों आदि पर भ्रामक टिप्पणियां की जा रही हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड इस संबंध में यह स्पष्ट करता है कि सरनेम या टाइटल के आधार पर किसी अभ्यर्थी की जाति निर्धारित नहीं की जाती है. अभ्यर्थियों को सक्षम अधिकारियों द्वारा निर्गत जाति प्रमाण पत्रों की वेरिफिकेशन की कार्यवाही की जाती है.’

जिन नामों पर विवाद है, उनमें से दो की जानकारी साझा करते हुए यूपीपीआरपीबी ने लिखा है, ‘पंकज पांडे नामक अभ्यर्थी की जाति उसके जारी प्रमाण पत्र के अनुसार गोसाई है, तथा अभ्यर्थी शिवानी उपाध्याय की जाति जोगी है. दोनों ही जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आती हैं. अन्य उल्लिखित अभ्यर्थियों के जाति प्रमाण पत्र के अनुसार वे ओबीसी के अभ्यर्थी पाए गए हैं.’