अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार दावा कर रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम के लिए वॉशिंगटन ज़िम्मेदार है, जिसका इस्लामाबाद ने स्वागत किया है. हालांकि मंगलवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि युद्ध विराम का फैसला भारतीय सैन्य कार्रवाई के बाद लिया गया, जिसके कारण पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा.

नई दिल्ली: भारत पाकिस्तान के बीच गतिरोध शांत होने के बाद से भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार यह दावा कर रहे हैं कि दोनों देशों के बीच युद्ध विराम कराने के लिए वॉशिंगटन जिम्मेदार है, जिसका इस्लामाबाद ने स्वागत किया है, लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने 13 मई को सार्वजनिक रूप से कहा कि युद्ध विराम का फैसला भारतीय सैन्य कार्रवाई के बाद लिया गया, जिसके कारण पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा.
यह राष्ट्रपति ट्रंप के युद्ध विराम के बयान को भारत द्वारा पहली बार आधिकारिक और प्रत्यक्ष रूप से अस्वीकार करने का मामला था, जिसके कारण ड्रोन युद्ध और मिसाइल हमलों से जुड़ा चार दिनों का गतिरोध समाप्त हुआ था. हालांकि, विदेश मंत्रालय ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या भारत ने व्यापार को लाभ के तौर पर इस्तेमाल करने संबंधी ट्रंप की टिप्पणियों, कश्मीर पर मध्यस्थता के उनके सुझाव या संघर्ष के परमाणु आयाम के उनके संदर्भों पर कोई विरोध दर्ज कराया है.
मंगलवार (13 मई) को साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘आप निश्चित रूप से इस बात को समझेंगे कि 10 तारीख की सुबह हमने पाकिस्तान के प्रमुख वायु सेना ठिकानों पर बेहद प्रभावी हमला किया था. यही कारण था कि वे अब गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने को तैयार हुए. मैं स्पष्ट कर दूं, यह भारतीय हथियारों की ताकत थी जिसने पाकिस्तान को अपनी गोलीबारी रोकने के लिए मजबूर किया.’
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के बीच ‘समझौते की विशिष्ट तिथि, समय और समझ’ पर काम किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘इस कॉल के लिए विदेश मंत्रालय को पाकिस्तानी उच्चायोग से 12:37 बजे अनुरोध प्राप्त हुआ था. तकनीकी कारणों से पाकिस्तानी पक्ष को हॉटलाइन को भारतीय पक्ष से जोड़ने में शुरुआती दिक्कतें आईं. इसके बाद 15:35 बजे भारतीय डीजीएमओ की उपलब्धता के आधार पर समय तय किया गया.’
जायसवाल से इस तथ्य के बारे में पूछा गया कि अमेरिकी विदेश विभाग की प्रेस विज्ञप्ति में युद्ध विराम को ‘अमेरिका द्वारा मध्यस्थता’ के रूप में वर्णित किया गया था और बार-बार इस बात पर जोर दिया गया कि क्या भारत ने कथित गलत चित्रण का औपचारिक रूप से विरोध किया था. उन्होंने सीधे जवाब देने से परहेज किया, केवल इतना कहा कि वह मीडिया ब्रीफिंग में भारत की स्थिति को रिकॉर्ड पर रख रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘आप जानते हैं, जब मैंने युद्ध विराम के बारे में बात की थी, तो मैंने आपके उन सवालों का जवाब पहले ही दे दिया था – जैसे कि किसने निर्णय लिया, शर्तें क्या थीं, यह कब हुआ, आदि. इसलिए मैं आपसे मेरी उन टिप्पणियों को देखने का आग्रह करूंगा…मैंने यहां अपनी स्थिति को रिकॉर्ड पर व्यक्त किया है, इसलिए मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप उस पर गौर करें.’
जहां तक अन्य देशों के साथ बातचीत का सवाल है, जायसवाल ने बस इतना कहा कि भारत ने उन्हें बताया कि उसका ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल को पहलगाम हमले का जवाब था और वह पाकिस्तान पर तभी गोलीबारी बंद करेगा जब वह गोलीबारी बंद कर देगा.
जायसवाल ने कहा, ‘जहां तक दूसरे देशों के साथ बातचीत का सवाल है, भारत का संदेश स्पष्ट और सुसंगत था. और बिल्कुल वही संदेश जो हम सार्वजनिक मंचों से दे रहे थे, वही निजी बातचीत में भी दिया गया… यह स्वाभाविक है कि हमसे यह बात सुनने वाले कई विदेशी नेताओं ने इसे अपने पाकिस्तानी वार्ताकारों के साथ साझा किया होगा.’
‘व्यापार का मुद्दा’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने 12 मई को ह्वाइट हाउस में यह भी कहा था, ‘मैंने कहा, चलो, हम आप लोगों के साथ बहुत सारा व्यापार करने जा रहे हैं. चलो इसे रोकते हैं. अगर आप इसे रोकते हैं, तो हम व्यापार करेंगे. अगर आप इसे नहीं रोकते हैं, तो हम कोई व्यापार नहीं करेंगे. लोगों ने वास्तव में कभी भी व्यापार का उस तरह से इस्तेमाल नहीं किया है, जैसा मैंने किया, यह मैं आपको बता सकता हूं, और अचानक, उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हम इसे रोकने जा रहे हैं.’
सोमवार को भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन आधिकारिक सूत्रों ने ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया और कहा कि ‘भारत अमेरिकी दावे का खंडन करता है.’
ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत से लेकर 10 मई को युद्ध विराम तक ‘भारतीय और अमेरिकी नेताओं के बीच विकसित सैन्य स्थिति पर बातचीत हुई.’
उन्होंने कहा, ‘इनमें से किसी भी चर्चा में व्यापार का मुद्दा नहीं उठा.’
भारतीय सूत्रों ने भारत और अमेरिका के बीच हुई चार कॉलों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की, विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने 8 और 10 मई को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से तथा 10 मई को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से बात की.
उसी कार्यक्रम में जहां उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को रोकने के लिए व्यापार का लाभ उठाने की बात की, ट्रंप ने दावा किया, ‘और हमने परमाणु संघर्ष को रोक दिया. मुझे लगता है कि यह एक बुरा परमाणु युद्ध हो सकता था. लाखों लोग मारे जा सकते थे, इसलिए मुझे इस पर बहुत गर्व है.’
ट्रंप के इस बयान पर कि वॉशिंगटन ने परमाणु संघर्ष टाल दिया है, जायसवाल ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंध पारंपरिक सीमाओं के भीतर ही रहे.
उन्होंने कहा, ‘सैन्य कार्रवाई पूरी तरह से पारंपरिक क्षेत्र में थी. ऐसी कुछ रिपोर्ट्स थीं कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण की बैठक 10 मई को होगी, लेकिन बाद में उन्होंने इसका खंडन किया.’
परमाणु ‘विकल्प’
उन्होंने सीएनएन को दिए एक साक्षात्कार का भी हवाला दिया जिसमें पाकिस्तानी विदेश मंत्री एम. इसहाक डार ने कहा था कि परमाणु विकल्प पर कभी विचार नहीं किया गया.
जायसवाल ने कहा, ‘जैसा कि आप जानते हैं, भारत का दृढ़ रुख है कि वह परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा या इसकी आड़ में सीमा पार आतंकवाद को संचालित होने नहीं देगा. विभिन्न देशों के साथ बातचीत में हमने उन्हें यह भी आगाह किया कि इस तरह के परिदृश्यों को अपनाना उनके अपने क्षेत्र में नुकसानदेह साबित हो सकता है.’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत की इस स्थिति को भी दोहराया कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रूप से चर्चा की जानी चाहिए. जायसवाल ने कहा, ‘यह नीति नहीं बदली है. जैसा कि आप जानते हैं, लंबित मामला पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली करना है.’
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति ट्रंप और विदेश मंत्री रुबियो दोनों ने दावा किया था कि अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच बातचीत को सुगम बनाएगा.
इस प्रश्न के उत्तर में कि क्या अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को एक ही श्रेणी में रख दिया है, जायसवाल ने कहा कि यह व्यापक अंतरराष्ट्रीय मान्यता है कि पहलगाम में आतंकवाद के शिकार भारतीय पर्यटक हैं और इस तरह के आतंकवाद का स्रोत सीमा पार पाकिस्तान में है.
उन्होंने यह भी दावा किया कि विदेशी नेताओं ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को स्वीकार किया है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रेस वक्तव्य की ओर इशारा किया, जिसमें आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य के अपराधियों, संचालकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.
हालांकि, अन्य देशों द्वारा जारी किए गए किसी भी आधिकारिक बयान या खुद यूएनएससी के बयान में पाकिस्तान को हमले के लिए जिम्मेदार नहीं बताया गया.