एसबीआई की फ्रॉड आइडेंटिफिकेशन कमिटी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस को भेजे पत्र में कहा कि उनके द्वारा लिए गए लोन की राशि के इस्तेमाल में गड़बड़ियां पाई गई हैं. बैंक अब कंपनी के पूर्व निदेशक अनिल अंबानी से जुड़ी जानकारी आरबीआई को सौंपने की तैयारी में है.

नई दिल्ली: भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने रिलायंस कम्युनिकेशंस के कर्ज खाते को ‘धोखाधड़ी’ (फ्रॉड) के रूप में वर्गीकृत कर दिया है और वह भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों के अनुसार इसके पूर्व निदेशक अनिल अंबानी से जुड़ी जानकारी आरबीआई को सौंपने की तैयारी में है.
द हिंदू के अनुसार, अन्य बैंक जिन्होंने इस कंपनी को ऋण दिया है, वे भी जल्द इसी दिशा में कदम उठा सकते हैं.
आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, जब कोई बैंक किसी खाते को ‘फ्रॉड’ घोषित करता है, तो उसे 21 दिनों के भीतर आरबीआई को इसकी रिपोर्ट देनी होती है और मामला पुलिस या सीबीआई के पास भेजना होता है.
गौरतलब है कि रिलायंस कम्युनिकेशंस पहले ही 2016 के इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया (सीआइआरपी) में है.
कंपनी ने एक रेगुलेटरी फाइलिंग में बताया कि उसे 23 जून को एसबीआई से लोन खातों के संबंध में पत्र मिला था.
फाइलिंग के अनुसार, रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहायक कंपनियों- रिलायंस इंफ्राटेल और रिलायंस टेलिकॉम ने कुल 31,580 करोड़ रुपये के लोन लिए थे. एसबीआई की फ्रॉड आइडेंटिफिकेशन कमिटी (एफआईसी) ने कंपनी को भेजे पत्र में बताया कि लोन की राशि के उपयोग में भारी गड़बड़ियां पाई गई हैं.
बैंक ने कहा, ‘हमने शो-कॉज़ नोटिस के जवाबों का संज्ञान लिया और उनकी विस्तार से जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि ऋण दस्तावेजों में तय शर्तों का पालन न किए जाने और खाते में पाई गई अनियमितताओं के संबंध में कंपनी ने कोई संतोषजनक कारण प्रस्तुत नहीं किया है.’
कमेटी के अनुसार, रिलायंस कम्युनिकेशंस को मिले कुल ऋण में से 13,667 करोड़ (लगभग 44%) रुपये का उपयोग पुराने कर्ज और देनदारियों को चुकाने में किया गया, जबकि 12,692 करोड़ रुपये की राशि आपस में जुड़ी कंपनियों या संबंधित पक्षों को भुगतान करने में खर्च की गई.
फाइलिंग के अनुसार, 6,265.85 करोड़ रुपये की राशि अन्य बैंकों से लिए गए ऋणों की चुकाने में और 5,501.56 करोड़ रुपये आपस में जुड़ी या संबंधित इकाइयों को भुगतान में खर्च की गई, जो बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.
देना बैंक द्वारा दिए गए 250 करोड़ रुपये के ऋण को रिलायंस कम्युनिकेशंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरसीआईएल) को इंटर कॉरपोरेट डिपोज़िट के रूप में ट्रांसफर कर दिया गया, जो एक असुरक्षित ऋण होता है, जिसे एक कंपनी दूसरी को देती है. बाद में दावा किया गया कि इस राशि का उपयोग एक बाहरी वाणिज्यिक ऋण (ईसीबी) को चुकाने में किया गया. जबकि लोन की राशि का उपयोग इस उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता.
कमेटी ने कहा, ‘लोन का उपयोग उस उद्देश्य के लिए नहीं किया गया, जिसके लिए उसे लिया गया था. ऐसा लगता है कि फंड को एक सहायक या संबद्ध कंपनी के माध्यम से रूट किया गया ताकि ईसीबी लोन मामले में जरूरी मंजूरी से बचा जा सके.’
आईआईएफसीएल द्वारा दिए गए 248 करोड़ रुपये के ऋण का उपयोग पूंजीगत खर्च के लिए होना था, लेकिन 63 करोड़ रुपये रिलायंस इंफ्राटेल और 77 करोड़ रुपये आरआईईएल को उनके कर्ज चुकाने के लिए दिए गए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘लेकिन यह पैसा सीधे उन कंपनियों को न भेजकर आरसीआईएल के जरिए भेजा गया. और इसके पीछे का कारण अनिल अंबानी या कंपनी द्वारा नहीं बताया गया. देना बैंक और आईआईएफसीएल के ऋणों का जो उपयोग हुआ है, वह फंड का दुरुपयोग और विश्वासघात है.’
आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी कंपनी के प्रमोटर डायरेक्टर या पूर्णकालिक डायरेक्टर अगर फ्रॉड के दोषी पाए जाते हैं तो उन पर पांच साल तक बैंकों, सरकारी वित्तीय संस्थानों और एनबीएफसी से फंड लेने पर रोक लगाई जा सकती है, जब तक कि धोखाधड़ी की पूरी राशि चुकता न हो जाए.