मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने न्यायपालिका में वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए कहा कि संवैधानिक न्यायालयों में जजों के चयन के लिए कॉलेजियम प्रणाली का अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के साथ ‘बेईमानी’ भरा व्यवहार रहा है.

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने रविवार (14 जुलाई) को न्यायपालिका में वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए कहा कि संवैधानिक न्यायालयों में न्यायाधीशों के चयन के लिए कॉलेजियम प्रणाली का अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों के साथ ‘बेईमानी’ भरा व्यवहार रहा है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित, ओबीसी, अल्पसंख्यक और आदिवासी संगठनों के परिसंघ (डोमा) द्वारा भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व जस्टिस कैत ने कहा कि वे दिल्ली हाईकोर्ट में पहले जज बने थे, जो एससी/एसटी वर्ग से अधिवक्ता के रूप में सीधे नियुक्त हुए.
उन्होंने आगे कहा, ‘आज तक कोई दूसरा जज ऐसे नहीं आया. ये सोचने वाली बात है.’
इस संबंध में अखबार द्वारा तैयार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के एक डेटाबेस से पता चलता है कि 1993 में कॉलेजियम प्रणाली को अपनाए जाने तक कार्यपालिका द्वारा नियुक्त किए गए न्यायाधीशों की तुलना में कॉलेजियम प्रणाली द्वारा नियुक्त ओबीसी और एससी न्यायाधीशों के अनुपात में ज्यादा अंतर नहीं आया है.
वहीं, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए ऐसा कोई डेटाबेस मौजूद ही नहीं है.
कैत ने अपने भाषण में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए कहा, ‘यह देश किसी एक जाति का नहीं, बल्कि सभी जातियों और सभी धर्मों का है. इसमें भागीदारी उतनी ही होनी चाहिए जितनी संख्या (जनसंख्या में अनुपात) हो.’
उन्होंने आगे कहा कि न्यायपालिका जैसी गैर-आरक्षण संस्थाओं में वंचितों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है. कैत के अनुसार, ‘मैं सिर्फ़ न्यायपालिका की बात कर रहा हूं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई समेत सिर्फ़ आठ जज ही एससी/एसटी और पिछड़े वर्गों से जज बने हैं. ऐसा नहीं है कि पिछड़े वर्गों से कोई योग्य वकील नहीं हैं.’
हालांकि, यह थोड़ा कम आंकड़ा हो सकता है. अखबार के डेटाबेस से पता चला है कि अब तक सुप्रीम कोर्ट के 279 जजों में से 27 ओबीसी, एससी या एसटी पृष्ठभूमि से रहे हैं, लेकिन निश्चित रूप से यह अभी भी एक कम अनुपात ही है.
कैत ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश की 90% आबादी ओबीसी, एससी और एसटी की है. लेकिन आज तक एक भी एसटी-एससी जज मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में न तो नौकरी से आया है और न ही एडवोकेट जज बना है.’
उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जातियों की संख्या 15.6% और अनुसूचित जनजातियों की संख्या 21.6% थी. राज्य में ओबीसी की संख्या का कोई अनुमान उपलब्ध नहीं है.
पूर्व जस्टिस कैत ने आरक्षण की मांग उठाते हुए कहा, ‘अगर मैं पूरे देश के उच्च न्यायालयों की बात करूं, तो आज की तारीख में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग मिलकर न्यायाधीशों का 15 से 16% हिस्सा बनाते हैं. जब तक आप आवाज़ नहीं उठाएंगे, यह स्थिति बनी रहेगी.’