मई में चार दिनों तक भारत और पाकिस्तान के बीच चले सैन्य टकराव के बाद युद्धविराम में मध्यस्थता के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगातार दावों के बीच केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में अपनी पहली टिप्पणी में कहा कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

नई दिल्ली: बीते मई महीने में चार दिनों तक भारत और पाकिस्तान के बीच चले सैन्य टकराव के बाद युद्धविराम में मध्यस्थता के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगातार दावों के बीच, केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार (28 जुलाई) को ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में अपनी पहली टिप्पणी में कहा कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.
जयशंकर ने यह भी कहा कि ऑपरेशन के दौरान भारत को कई देशों से फोन आए, जिनमें यह स्पष्ट कर दिया गया कि ‘कोई मध्यस्थता नहीं होगी.’
जहां ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने दोनों देशों को परमाणु युद्ध के कगार से बचाने के लिए व्यापार को एक मज़बूती के तौर पर इस्तेमाल किया, वहीं जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच बातचीत में किसी भी बिंदु पर ‘व्यापार से कोई संबंध’ नहीं था.
उनके इस बयान का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी समर्थन किया.
22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा के दौरान लोकसभा में जयशंकर की टिप्पणी ऐसे समय में आई जब ट्रंप ने यह दावा दोहराया कि उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टारमर के साथ खड़े होकर स्कॉटलैंड के टर्नबेरी में भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम की मध्यस्थता की थी.
विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं सदन को सूचित करना चाहूंगा कि 9 मई को उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री को फ़ोन करके अगले कुछ घंटों में पाकिस्तान द्वारा बड़े हमले की चेतावनी दी थी. प्रधानमंत्री ने अपने जवाब में स्पष्ट कर दिया था कि अगर ऐसा कोई हमला हुआ, तो हमारी ओर से उचित जवाब दिया जाएगा. वह हमला हुआ और हमारे सशस्त्र बलों ने उसे नाकाम कर दिया. मुझे लगता है कि सदन को 9 और 10 मई को हुए इस बड़े हमले को रोकने में हमारे सशस्त्र बलों के प्रदर्शन की सामूहिक रूप से सराहना करनी चाहिए. प्रधानमंत्री ने जिस तरह का वादा किया था, हमारी प्रतिक्रिया विनाशकारी प्रभाव के साथ दी गई.’
उन्होंने भारत की पूर्व स्थिति दोहराई कि शत्रुता समाप्त करने का कदम पाकिस्तान की ओर से आया था और कहा कि यह बात अन्य देशों को भी बता दी गई थी.
जयशंकर ने कहा, ‘10 मई को हमें फ़ोन कॉल्स आए जिनमें दूसरे देशों की राय साझा की गई कि पाकिस्तान लड़ाई रोकने के लिए तैयार है. हमारा रुख़ यह था कि हमें यह अनुरोध डीजीएमओ चैनल से प्राप्त करना होगा. यह अनुरोध बिल्कुल इसी तरह आया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं दो बातें स्पष्ट करना चाहता हूं, अमेरिका के साथ किसी भी बातचीत में, किसी भी स्तर पर व्यापार और जो कुछ चल रहा था, उससे कोई संबंध नहीं था.’
उन्होंने आगे कहा कि अप्रैल और जून के बीच ट्रंप और मोदी के बीच भी कोई बातचीत नहीं हुई. उन्होंने जून में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘दूसरी बात 22 अप्रैल से लेकर 17 जून तक, जब राष्ट्रपति ट्रंप ने कनाडा के प्रधानमंत्री को फ़ोन करके पूछा कि वे क्यों नहीं मिल सकते, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.’
जयशंकर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब ट्रंप ने 10 मई से अब तक 26 बार भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में मध्यस्थता का दावा किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि उन्होंने व्यापार को अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल किया और लड़ाई में कुछ भारतीय विमान भी नष्ट हो गए.
इस बयान पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए विपक्ष पर भारतीय विदेश मंत्री पर नहीं, बल्कि दूसरे देश पर भरोसा करने का आरोप लगाया.
विपक्षी दलों के ज़ोरदार विरोध के बीच शाह अपनी सीट से उठे और विपक्ष पर भारत के विदेश मंत्री के बजाय दूसरे देश के नेता पर भरोसा करने का आरोप लगाया.
शाह ने कहा, ‘मुझे एक बात पर आपत्ति है कि जब भारत के विदेश मंत्री, जिन्होंने शपथ ले ली है, बोल रहे होते हैं, तो वे किसी दूसरे देश के व्यक्ति पर विश्वास करना पसंद करते हैं. मैं उनकी पार्टी में विदेशी देशों के महत्व को समझता हूं, लेकिन वे इसे सदन पर थोप नहीं सकते.’
उन्होंने आगे कहा, ‘आप भारत के विदेश मंत्री पर भरोसा नहीं करेंगे? वे ज़िम्मेदार हैं. इसी रवैये के कारण वे आज विपक्ष में बैठे हैं और अगले 20 साल तक वहीं बैठे रहेंगे.’
जबकि विपक्षी सदस्यों ने ऑपरेशन सिंदूर से प्राप्त उपलब्धियों और भारत को अन्य देशों से प्राप्त समर्थन पर सवाल उठाए थे, जयशंकर ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बयान का हवाला दिया.
जयशंकर ने कहा, ‘उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि आतंकवाद अपने सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिषद ने आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य के अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.’
द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि पुलवामा हमले के बाद के बयान के विपरीत इस बयान में सदस्य देशों से भारत के साथ विशेष रूप से सहयोग करने का आग्रह नहीं किया गया था.
जबकि विपक्षी सदस्यों ने दुनिया भर में फैले सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों की उपलब्धियों पर सवाल उठाए थे, जयशंकर ने कटाक्ष करते हुए कहा कि यह सवाल उन विपक्षी सदस्यों से पूछा जाना चाहिए जो इन प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा थे और उनके द्वारा की गई गतिविधियों के लिए उनके ट्वीट देखे जाने चाहिए.
पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर युद्ध के सवालों का सामना करते हुए जयशंकर ने कांग्रेस पर आरोप लगाया और कहा कि दोनों के बीच यह सहयोग 60 साल पहले शुरू हुआ था.
उन्होंने कहा, ‘1966 में पहली चीनी सैन्य आपूर्ति पाकिस्तान गई, परमाणु सहयोग 1976 में शुरू हुआ, जब भुट्टो ने चीन-पाकिस्तान को एक साथ लाने की व्यवस्था की. 1980 के दशक में जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन और पाकिस्तान की यात्रा पर थे, तब परमाणु सहयोग अपने चरम पर था; 2005 में चीन-पाकिस्तान मैत्री और सहयोग संधि; 2006 में, पाकिस्तान-चीन मुक्त व्यापार समझौता; 2013 में, ग्वादर बंदरगाह (बलूचिस्तान, पाकिस्तान) को चीन को सौंपना; मई 2013 में, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की घोषणा.’
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को आईएमएफ से ऋण मिलने पर प्रतिक्रिया देते हुए जयशंकर ने कहा कि पाकिस्तान एक ‘लगातार कर्जदार’ देश है.
उन्होंने कहा, ‘जो लोग आज 7 अरब डॉलर के पैकेज को लेकर चिंतित हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके कार्यकाल में पाकिस्तान के लिए 15 अरब डॉलर का पैकेज आया था.’