संसद के मानसून सत्र के दौरान पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर मंगलवार (29 जुलाई) को भी लोकसभा में चर्चा जारी रही. पक्ष-विपक्ष की करीब 16 घंटे तक चली बहस के आखिर में मोदी सरकार अपने पुराने रुख़ पर क़ायम नज़र आई और विपक्ष के ज़्यादातर सवाल बिना जवाब के ही रह गए.

नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र के दौरान पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर मंगलवार (29 जुलाई) को भी लोकसभा में चर्चा जारी रही. पक्ष-विपक्ष की करीब 16 घंटे तक चली बहस के आखिर में मोदी सरकार अपने पुराने रुख पर कायम नज़र आई और विपक्ष के ज्यादातर सवाल बिना जवाब के ही रह गए.
चर्चा के दौरान पीएम मोदी और उनके मंत्री विपक्षी सासंदों की चिंताओं को दूर करने के बजाय ऑपरेशन सिंदूर का बचाव और अपने हिंदुत्व समर्थकों के बीच नई ऊर्जा का संचार करने की कोशिश करते नज़र आए.
इस चर्चा में भाग लेने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के नेता एक के बाद एक ऑपरेशन सिंदूर का बचाव करते और उसका जश्न मनाते दिखाई दिए. वहीं, सत्ता पक्ष की ओर से इस ऑपरेशन में कांग्रेस द्वारा पर्याप्त सहयोग न करने के भी आरोप लगाए गए.
कई मंत्रियों समेत खुद पीएम की ओर से पाकिस्तान के साथ कई पुराने संघर्षों का जिक्र करते हुए कांग्रेस की तत्कालीन सरकारोंं और उसके नेतृत्व को आज की मोदी सरकार के मुकाबले कमजोर दिखाने की कोशिश की गई.
सदन में भाषण देने वाले सभी मंत्रियों, खासतौर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने चिरपरिचित आक्रामक तेवर में नज़र आएं. उन्होंने विपक्षी दलों को पाकिस्तान और इस्लाम का समर्थक बताकर उनका उपहास किया, साथ ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खुद को शुद्धतावादी हिंदू राष्ट्रवादी बताने की कोई कसर नहीं छोड़ी.
गृह मंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर के सवालों से बचने के लिए ऑपरेशन महादेव का जिक्र किया
गृह मंत्री का भाषण स्पष्ट रूप से उन लोगों को संबोधित करता प्रतीत हुआ, जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे सैन्य टकराव पर संघर्षविराम की घोषणा को लेकर सार्वजनिक तौर पर गुस्सा और निराशा व्यक्त की थी. जबकि उस समय खुद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेता और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लगातार युद्ध उन्माद को बढ़ावा दे रहा था.
ऑपरेशन सिंदूर की कथित सफलता पर जश्न के माहौल में अमित शाह ने ऑपरेशन महादेव का जिक्र किया, जिसे 28 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में एक संयुक्त सैन्य अभियान के तहत अंजाम दिया गया था.
शाह ने बताया कि इस अभियान में मारे गए तीन कथित आतंकवादी वास्तव में वही थे, जिन्होंने पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले को अंजाम दिया था. यह घोषणा सत्ता पक्ष के लिए एक उत्साहवर्धक खबर थी. इसके बाद गृह मंत्री ने अपने भाषण में कांग्रेस की कथित विफलताओं की ओर इशारा करते हुए मोदी सरकार के कार्यकाल में सफलताओं के कई किस्से गढ़े.
हालांकि, इस बहस के दौरान ऑपरेशन सिंदूर के केवल दो पहलुओं आतंकी ठिकानों पर हमला और पहलगाम के आंतकियों की मौत पर ही स्थिति स्पष्ट हो सकी. इसके अलावा सरकार द्वारा दिए गए अप्रत्यक्ष स्पष्टीकरणों के बीच कुछ और सवाल भी खड़े हो गए.
इस बहस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सभी ने दोहराया कि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमला था, न कि कोई उग्र सैन्य युद्ध.
मंत्रियों ने बताया कि 6 मई की दरमियानी रात को लक्ष्य पूरा होने, जिसमें पाकिस्तानी सीमा में अंदर तक घुसकर आतंकी ठिकानों पर अभूतपूर्व हवाई हमला भी शामिल था, के बाद केंद्र सरकार ने इसे समाप्त करने का फैसला किया. उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने 9-10 मई की रात को अपने सैन्य अभियान केवल पाकिस्तान के उकसावे वाले हमलों के कारण ही फिर से शुरू किए, जिसमें भारतीय सुरक्षा बल पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों को ध्वस्त करने में सफल रही.
प्रधानमंत्री ने कहा कि 9-10 मई को जवाबी कार्रवाई इतनी ज़बरदस्त थी कि पाकिस्तान के कुछ सैन्य ठिकाने ‘अभी भी आईसीयू में हैं.’
सरकार का यह दावा स्पष्ट रूप से उस युद्धोन्माद का खंडन करता है जो हिंदुत्ववादी ताकतों, जिनमें कई भाजपा नेता भी शामिल हैं और टेलीविजन मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा फैलाया गया था, जिन्होंने यह झूठा दावा भी किया कि भारतीय सुरक्षा बल पाकिस्तान के महत्वपूर्ण शहरों और रणनीतिक क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के लिए आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहे हैं.
केंद्र सरकार ने अपने समर्थकों को हमेशा के लिए यह संकेत दे दिया कि उन्हें पाकिस्तान पर सुनियोजित हमलों की आश्चर्यजनक सफलता से संतुष्ट हो जाना चाहिए और यही ऑपरेशन सिंदूर था.
सरकार ने जिस दूसरे पहलू पर ध्यान आकर्षित किया वह शाह द्वारा ऑपरेशन महादेव की घोषणा थी, जिसमें पहलगाम हमले के तीन कथित उग्रवादी मारे गए. सरकार ने ऑपरेशन महादेव के जरिए विपक्ष के इस सवाल पर अपनी चुप्पी तोड़ी कि क्या सरकार पहलगाम के हमलावरों को सज़ा दे पाएगी.
ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दूसरे दिन संयोग से शाह का यह दावा आलोचनाओं के एक वर्ग को चुप कराने में कामयाब रहा.
हालांकि, सरकार ने दावा किया था कि ऑपरेशन सिंदूर ने लगभग 100 खूंखार आतंकवादियों को मार गिराया, लेकिन पिछले तीन महीनों से वह इस बात पर चुप थी कि वह पहलगाम में हमलावरों को पकड़ या मार पाएगी या नहीं.
कई सवाल, जिनके जवाब नहीं मिले
हालांकि, इन दो पहलुओं को छोड़कर सरकार ने पहलगाम हमले को लेकर उठाए गए अन्य सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दिया और विपक्ष पर पलटवार करके उनसे बचने का विकल्प चुना.
विपक्ष की सबसे पहली और सबसे बड़ी चिंता ट्रंप का बार-बार यह दावा करना था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की मध्यस्थता की है.
इस मामले पर मोदी सरकार अपने इस रुख पर अड़ी रही कि ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को इस हद तक घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया कि उसे भारत की शरण में आना पड़ा. लेकिन न तो पीएम मोदी, न ही गृह मंत्री शाह या विदेश मंत्री जयशंकर या राजनाथ सिंह ने इस पर सीधे तौर पर एक शब्द भी कहा.
इस पूरे मामले पर सरकार की ओर से सबसे ज़्यादा बातें विदेश जयशंकर ने कहीं. उन्होंने बताया कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच ट्रंप और मोदी के बीच कोई बातचीत नहीं हुई और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत से संपर्क करने वाले कई देशों को साफ़ तौर पर कहा गया था कि ‘कोई मध्यस्थता नहीं होगी.’
विदेश मंत्री ने अपने भाषण में ये बताया कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने 9 मई को पीएम मोदी से बात की थी और उन्हें पाकिस्तान द्वारा बड़े हमले की चेतावनी दी थी. हालांकि, विदेश मंत्री और पीएम मोदी दोनों ने कहा कि वेंस को बताया गया था कि भारत ऐसे किसी भी हमले का उचित जवाब देगा.
पीएम मोदी ने भी मंगलवार को यही बात दोहराई, जो विदेश मंत्री जयशंकर ने पहले कही थी.
उन्होंने कहा, ‘नौ मई की रात को अमेरिकी उप राष्ट्रपति एक घंटे से बात करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन मेरी सेना के साथ बैठक चल रही थी, तो मैं उठा नहीं पाया, लेकिन बाद में मैंने कॉल बैक किया.’
पीएम मोदी ने आगे कहा, ‘उन्होंने मुझसे कहा कि पाकिस्तान बड़ा हमला करने वाला है. मेरा जवाब था- अगर पाकिस्तान का ये इरादा है तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा और हम उससे भी बड़ा हमला करके जवाब देंगे.’
हमने पहले कहा था, ‘हम गोली का जवाब गोले से देंगे. दस मई की सुबह तक हमने पाकिस्तान की सैन्य शक्ति को तहस-नहस कर दिया. यही हमारा जवाब था और यही हमारा जज्बा था.’
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की चुनौती
मालूम हो कि इससे पहले लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को ट्रंप के सीज़फ़ायर के दावों पर घेरा था और संसद में इस पर बयान देने की चुनौती देते हुए कहा था कि ट्रंप ने 29 बार सीज़फ़ायर कराने का श्रेय लिया, अगर वो झूठ बोल रहे हैं तो अगर पीएम मोदी के पास इंदिरा गांधी का 50 प्रतिशत भी साहस हो तो वो बोलें कि ऐसा नहीं था. अगर पीएम में दम है तो बोलें कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं. लेकिन सरकार इस पूरी चर्चा के दौरान सतर्क रही और ट्रंप का एक बार भी नाम नहीं लिया गया.
विपक्ष ने स्वाभाविक रूप से इस मुद्दे पर ज़ोर दिया और पूछा कि अगर सरकार सही है, तो ट्रंप दो दक्षिण एशियाई देशों के बीच युद्धविराम कराने का श्रेय क्यों ले रहे हैं.
वहीं, सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय लड़ाकू विमानों के नुकसान पर उठाए गए सवाल का जवाब देने से भी परहेज किया. जहां ज़्यादातर नेताओं ने विपक्ष को यह सवाल उठाने के लिए उकसाया और धमकाया, वहीं कुछ ने तो विपक्षी नेताओं को पाकिस्तान समर्थक तक कह डाला. सिर्फ़ राजनाथ सिंह ने ही सीधे तौर पर इस सवाल को लिया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.
इस मसले पर राजनाथ सिंह का जवाब काफ़ी दिलचस्प था, जहां उन्होंने विपक्ष को ग़लत सवाल पूछने के लिए फटकार लगाई.
उन्होंने कहा, ‘मैं विपक्ष से कहना चाहता हूं कि अगर आपको सवाल पूछना ही है, तो ये पूछिए कि क्या ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा? जवाब है, हां. अगर आपको कोई सवाल पूछना है, तो ये पूछिए कि क्या हमारी बहन-बेटियों का सिंदूर पोंछने वाले आतंकवादियों से हमारी सेना ने ऑपरेशन सिंदूर में निपटा है, उनके आकाओं का सफाया किया है? जवाब है, हां. अगर आपको कोई सवाल पूछना है, तो ये पूछिए कि क्या इस ऑपरेशन में हमारे किसी वीर सैनिक को कोई नुकसान पहुंचा? जवाब है, नहीं, हमारे किसी भी सैनिक को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.’
इसके बाद उन्होंने कुछ ऐसा कहा जो इस दावे की स्वीकारोक्ति प्रतीत हुआ कि भारत को वास्तव में कुछ नुकसान हुआ था.
उन्होंने कहा, ‘किसी भी परीक्षा में परिणाम मायने रखता है. अगर कोई बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाता है, तो हमारे लिए वे अंक मायने रखते हैं. हमें इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि परीक्षा के दौरान उसकी पेंसिल टूट गई या उसका पेन खो गया. आखिर में परिणाम मायने रखता है और इसका परिणाम यह हुआ कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारे सशस्त्र बलों ने अपने निर्धारित उद्देश्यों को पूरी तरह से हासिल किया.’
सरकार ने इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि मोदी सरकार द्वारा वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को आतंकवाद-प्रवर्तक देश के रूप में घेरने के दावों के बावजूद, ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से अरबों डॉलर का कर्ज़ कैसे हासिल कर सका.
सरकार की ओर से वक्ताओं ने इस बात पर भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को अमेरिकी सेना दिवस पर निमंत्रण क्यों मिला और हाल ही में ट्रंप ने उन्हें भोज का निमंत्रण क्यों दिया.
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को मिली चीनी मदद के बारे में भी कोई साफ जवाब नहीं दिया गया, और न ही पहलगाम हमले के बाद किसी भी देश ने पाकिस्तान की निंदा क्यों नहीं की इसका कोई स्पष्टीकरण सामने आया.
विपक्ष द्वारा उठाई गई कुछ जायज़ चिंताओं को भी दबा दिया गया
सरकार के मंत्रियों ने केवल कांग्रेस सरकारों के दौरान कथित कूटनीतिक विफलताओं की ओर इशारा किया.
इसी तरह, पहलगाम हमले के दौरान गंभीर खुफिया विफलता के विपक्ष के आरोपों पर भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया.
इस मुद्दे पर कांग्रेस और विपक्ष के अन्य नेताओं ने एक सटीक सवाल पूछा था कि आतंकवादी बैसरन घाटी में कैसे घुसकर आसानी से निर्दोष भारतीय नागरिकों पर जानलेवा हमला कर मौके से फरार हो गए?
आरोप-प्रत्यारोप के बीच सरकार ने विपक्ष द्वारा उठाई गई कुछ जायज़ चिंताओं को भी दबा दिया. सरकार ने हमले के समय पर्यटन स्थल बैसरन घाटी में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और आपातकालीन स्वास्थ्य उपायों की कमी के बारे में भी कुछ नहीं कहा.
मोदी सरकार ने विपक्ष द्वारा उठाई गई इन जायज़ चिंताओं को दबाने के लिए स्पष्ट रूप से आक्रामकता, हिंदुत्व राष्ट्रवाद और बयानबाज़ी का सहारा लिया. संसद में इन चिंताओं को अंतिम रूप से शांत करने के बजाय, सरकार ने इस मामले को गर्म रखने का विकल्प चुना. सरकार ने स्पष्ट रूप से इस बहस का इस्तेमाल अपने नाराज़ और चिंतित समर्थकों को शांत करने के लिए किया.
हालांकि, ऐसा करते हुए जाने-अनजाने मोदी और उनके मंत्री अपने समर्थकों और संभावित समर्थकों के सामने यह स्वीकार करते नज़र आए कि भले ही ऑपरेशन सिंदूर से उन्हें अपेक्षित परिणाम न मिले हों, और इसमें बाहरी और आंतरिक कारक भी शामिल थे, लेकिन मोदी और भाजपा फिर भी कांग्रेस से बेहतर थे.