एमपी: उत्पीड़न के आरोपी अधिकारी को हाईकोर्ट जज नियुक्त करने के विरोध में महिला जज का इस्तीफ़ा

मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले में कार्यरत सिविल जज अदिति शर्मा, जिनकी बर्ख़ास्तगी को इस साल ही सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था, ने उत्पीड़न के आरोपी एक वरिष्ठ जिला जज राजेश कुमार गुप्ता की पदोन्नति के विरोध में इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि न्याय ने उसी संस्थान के भीतर अपना रास्ता खो दिया है जिसने इसकी रक्षा करने की शपथ ली थी.

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में कार्यरत महिला सिविल जज अदिति शर्मा, जिनकी बर्खास्तगी को इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, ने एक वरिष्ठ जिला जज राजेश कुमार गुप्ता की पदोन्नति के विरोध में अपनी सेवा से इस्तीफा दे दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदिति शर्मा ने राजेश गुप्ता पर उत्पीड़न, अधिकार का दुरुपयोग और संस्थागत प्रतिशोध का आरोप लगाया था.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित करते हुए अदिति शर्मा ने कड़े शब्दों वाले अपने त्यागपत्र में कहा कि वह इसलिए अपना पद नहीं छोड़ रही हैं कि उनका न्याय में विश्वास खत्म हो गया है, बल्कि इसलिए इस्तीफा दे रही हैं कि न्याय ने उसी संस्थान के भीतर अपना रास्ता खो दिया है जिसने इसकी रक्षा करने की शपथ ली थी.

उन्होंने आगे लिखा, ‘मैं इस संस्था को बिना किसी पदक, बिना किसी उत्सव और बिना किसी कड़वाहट के छोड़ रही हूं – सिर्फ़ इस कड़वे सच के साथ कि न्यायपालिका ने मुझे निराश किया. लेकिन इससे भी बदतर- यह ख़ुद ही विफल रही. यह इस्तीफ़ा पत्र कोई अंतिम निर्णय नहीं है. यह विरोध का एक बयान है. इसे अपने अभिलेखागार में एक याद के रूप में रहने दीजिए कि मध्य प्रदेश में कभी एक महिला न्यायाधीश थीं, जिन्होंने न्याय के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था, और उस व्यवस्था ने उन्हें तोड़ दिया जिसने इसका सबसे ज़ोरदार प्रचार किया था.’

मालूम हो कि अदिति शर्मा का इस्तीफ़ा ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में यौन उत्पीड़न के एक मामले में ज़मानत पर बाहर आए भाजपा सांसद सुभाष बराला के बेटे विकास को हरियाणा के विधि अधिकारी नियुक्त किया गया था.

हालांकि, द ट्रिब्यून ने खबर दी है कि चौतरफा विरोध के बाद उनका नाम विधि अधिकारियों की सूची से हटा दिया गया है.

सरकार द्वारा गुप्ता के नाम पर मंजूरी के कुछ ही घंटों बार महिला जज ने इस्तीफा दिया

अदिति शर्मा का मामला देखें, तो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा 2 जुलाई को उज्जैन के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में पदोन्नत करने की सिफ़ारिश की गई थी, जिस पर सरकार ने सोमवार (28 जुलाई) को मंज़ूरी दी थी.

इसके कुछ ही घंटों बाद ही शर्मा ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.

गुप्ता की पदोन्नति को ‘न्याय शब्द के साथ एक क्रूर मजाक’ बताते हुए शर्मा ने कहा कि यह कदम ‘न्यायपालिका की अपनी बेटियों की सुरक्षा करने में विफलता’ को दर्शाता है और महिला अधिकारियों को संकेत देता है कि ‘सच्चाई चुप्पी से कहीं अधिक भारी कीमत पर मिलती है.’

शर्मा ने अपने पत्र में लिखा, ‘मैं न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे रही हूं, इसलिए नहीं कि मैंने संस्थान को विफल किया, बल्कि इसलिए कि संस्थान ने मुझे विफल कर दिया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने निरंतर उत्पीड़न सहन किया, न केवल शरीर या मन का, बल्कि मेरी गरिमा, मेरी आवाज और एक महिला न्यायाधीश के रूप में मेरे अस्तित्व का, जिसने बोलने का साहस किया.’

ज्ञात हो कि अदिति का यह इस्तीफा भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के अन्य सदस्यों को दिए गए उस ज्ञापन के बाद आया है, जिसमें उन्होंने गुप्ता की पदोन्नति पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था. उस पत्र में शर्मा ने चेतावनी दी थी कि न्यायपालिका विश्वसनीय आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को पदोन्नति देकर दंड से मुक्ति और व्हिसलब्लोअर्स को चुप कराने का जोखिम उठा रही है.

कई अन्य न्यायिक अधिकारियों ने भी राजेश गुप्ता के खिलाफ शिकायत दी थी

उन्होंने गुप्ता के खिलाफ अन्य न्यायिक अधिकारियों द्वारा दायर कई शिकायतों का भी हवाला दिया था, जिनमें एक दलित जिला न्यायाधीश द्वारा उन पर जाति-आधारित उत्पीड़न का आरोप लगाना और एक प्रमुख जिला न्यायाधीश द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और उनके परिवारों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से दुर्व्यवहार, धमकी और अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाना शामिल है.

शर्मा के अनुसार, इनमें से किसी भी शिकायत की न तो जांच की गई और न ही उस पर कोई कार्रवाई की गई.

उन्होंने गुप्ता पर वर्षों तक उन्हें ‘लगातार प्रताड़ित’ करने का आरोप लगाया और कहा कि संस्था ने उन्हें निराश किया है और उन्हीं सिद्धांतों को कायम रखने में विफल रही है जिनकी रक्षा करने की यहां शपथ ली जाती है.

अपने त्यागपत्र में शर्मा ने न्यायपालिका पर ‘सच्चाई के खिलाफ सत्ता का दुरुपयोग’ करने का आरोप लगाया और ज़ोर देकर कहा कि उनके विस्तृत आरोपों की कोई जांच, नोटिस या यहां तक कि एक सामान्य सुनवाई भी नहीं की गई.

गुप्ता की पदोन्नति का ज़िक्र करते हुए उन्होंने लिखा, ‘वही संस्था जो क़ानून के समक्ष समानता का पाठ पढ़ाती है… उसने समन की बजाय एक पदवी दी.’

उल्लेखनीय है कि शर्मा उन छह महिला न्यायाधीशों में भी शामिल थीं, जिनकी सेवाएं मध्य प्रदेश सरकार ने जून 2023 में असंतोषजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए समाप्त कर दी थीं. सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का संज्ञान लिया था और अदिति शर्मा की बर्खास्तगी को मनमाना और अवैध करार देते हुए उनकी बहाली का आदेश सुनाया था.

इस सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि शर्मा की बर्खास्तगी अनुचित मूल्यांकन और प्रक्रियागत खामियों के कारण हुई थी.

अदालत ने इस दौरान यह भी कहा कि न्यायिक संस्थानों को महिला अधिकारियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय केवल दिया ही न जाए, बल्कि न्यायपालिका के भीतर भी दिखे. इसके बाद शर्मा ने मार्च 2024 में शहडोल में दोबारा कार्यभार संभाला था.

अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट की याचिका में शर्मा ने गुप्ता द्वारा कथित उत्पीड़न का विस्तृत विवरण दिया था. उन्होंने गुप्ता के अधीन प्रशिक्षु न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान दुर्व्यवहार के उदाहरणों का ज़िक्र किया था. उनकी याचिका में दावा किया गया था कि प्रशासनिक न्यायाधीश के रूप में कार्यरत गुप्ता ने उनके कार्य निष्पादन की रेटिंग भी कम कर दी थी.

‘हर जायज़ रास्ता अपनाया लेकिन हर जगह चुप्पी मिली’

शर्मा ने अपने इस्तीफ़े में कहा है कि उन्होंने हर जायज़ रास्ता अपनाया. उन्होंने हाईकोर्ट रजिस्ट्रार, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और यहां तक कि भारत के राष्ट्रपति से की गई अपनी अपीलों का ज़िक्र किया. लेकिन इन सबकी चुप्पी ही उनका फ़ैसला थी.

शर्मा के अपने 10 जुलाई के अभ्यावेदन में चेतावनी दी थी कि गुप्ता की पदोन्नति से ‘कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता पर दाग लगेगा और उनकी चिंताओं का समाधान न करने से अन्य अधिकारी शक्तिशाली सहकर्मियों के खिलाफ शिकायत करने से बचेंगे.

इस दौरान शर्मा ने न्यायपालिका से इस बारे में आत्मचिंतन करने का आग्रह किया कि वह उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करती है जो ‘सच बोलने की हिम्मत करते हैं.’

गौरतलब है कि द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने शर्मा सहित कुछ शिकायतों के मद्देनजर गुप्ता का नाम खारिज कर दिया था.

इसके साथ ही उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को शिकायत की जांच करने के लिए कहा गया था. हालांकि, इसके बाद गुप्ता को क्लीन चिट दे दी गई और अप्रैल में उनका नाम नए सिरे से विचार के लिए कॉलेजियम को भेजा गया.

रिपोर्ट के अनुसार, जब यह जांच चल रही थी, तब शर्मा को अपना बयान दर्ज कराने के लिए कभी नहीं बुलाया गया.

अपने पत्र के अंत में शर्मा ने लिखा कि यह इस्तीफ़ा कोई अंत नहीं, बल्कि ‘विरोध का एक बयां’ है.