चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर उठे विवाद और ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर सफाई दी, लेकिन अहम सवालों पर जवाब नहीं दिया. राहुल गांधी से हलफ़नामा मांगा गया, जबकि भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर पर चुप्पी साधी गई. विदेशी प्रवासियों, दस्तावेज़ों और वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों पर भी स्पष्ट जवाब नहीं मिला.

नई दिल्ली: विपक्षी दलों की आलोचना के बीच, जहां ‘वोट चोरी’ के आरोप लगे हैं और बिहार में मतदाता सूची की विवादित विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया चल रही है, जिसमें 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए हैं, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार (17 अगस्त) को अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
एक घंटे से ज़्यादा चली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुमार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि चुनाव आयोग ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव में एक लाख से अधिक वोट चोरी होने के उनके आरोपों पर शपथपत्र क्यों मांगा है, और भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से ऐसा शपथपत्र क्यों नहीं मांगा गया है.
गौरतलब है कि अनुराग ठाकुर ने भी रायबरेली, वायनाड, डायमंड हार्बर और कन्नौज में मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का आरोप लगाया था और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अभिषेक बनर्जी और अखिलेश यादव से लोकसभा सांसद पद से इस्तीफा देने की मांग की थी.
कुमार ने इस बात पर भी कोई जवाब नहीं दिया कि बिहार में कितने गणना प्रपत्र आवश्यक दस्तावेज़ों के साथ जमा किए गए हैं और एसआईआर के दौरान कितने विदेशी अवैध प्रवासी पाए गए. उन्होंने इस आरोप पर भी कुछ नहीं कहा कि क्या यह पूरी कवायद राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने की कोशिश का हिस्सा है.
जब उनसे पूछा गया कि विधानसभा चुनावों से ठीक पहले और वह भी बाढ़ के मौसम में एसआईआर क्यों कराया जा रहा है, तो कुमार ने जवाब दिया कि इस प्रक्रिया का पिछला चक्र 2003 में भी जुलाई में हुआ था. लेकिन उन्होंने यह ज़िक्र नहीं किया कि उस समय विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2005 तक होने वाले नहीं थे.
कुमार का प्रेस कॉन्फ्रेंस भाषणबाज़ी से भरा था. मतदाता सूची में मकान संख्या के समाने ‘शून्य’ लिखे जाने को लेकर उठे सवाल को उन्होंने ग़रीबों पर एक ‘मज़ाक’ बता दिया. इतना ही नहीं कुमार ने दावा किया कि किसी मतदाता का नाम कई बार सूची में आना ‘वोट चोरी’ का सबूत नहीं है और न ही इसका मतलब यह है कि उस व्यक्ति ने एक से अधिक बार मतदान किया है.
उन्होंने तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अल्टीमेटम भी दिया, जिसमें कहा गया कि वे सात दिनों के भीतर शपथ-पत्र दाखिल करें या फिर पूरे देश से माफी मांगें.
यहां चुनाव आयुक्त की प्रेस कॉन्फ्रेंस के सात ऐसे बिंदु हैं, जिसे किसी सवाल का जवाब नहीं माना जा सकता है:
राहुल गांधी से हलफ़नामा मांगा गया, लेकिन भाजपा से नहीं
ज्ञानेश कुमार ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में कहा कि चुनाव आयोग के लिए कोई ‘पक्ष या विपक्ष’ नहीं होता. उन्होंने कहा, ‘चुनाव आयोग के लिए न कोई सत्तापक्ष है और न विपक्ष; सभी बराबर हैं. कोई भी राजनीतिक दल हो, चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने से पीछे नहीं हटेगा.’
लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में आगे कुमार ने गांधी के आरोपों को ‘निराधार’ बताया और उनसे हलफ़नामा देने की मांग कर डाली.
कुमार ने कहा:
अगर किसी वोटर से जुड़ी कोई शिकायत आती है तो चुनाव आयोग उसकी जांच करता है. लेकिन अगर आरोप 1.5 लाख वोटरों पर हो, तो क्या हम बिना किसी सबूत या हलफ़नामे के 1.5 लाख वोटरों को नोटिस भेज दें? क्या यह क़ानूनी होगा? न तो कोई सबूत है, न हलफ़नामा. क्या हमें 1.5 लाख वोटरों को एसडीएम (उप-मंडल मजिस्ट्रेट) के दफ़्तर बुलाकर कहना चाहिए कि आप नकली वोटर हैं? क्या वोटर सबूत नहीं मांगेंगे? बिना किसी सबूत के, सही वोटरों के नाम नहीं काटे जाएंगे.
7 अगस्त को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में गांधी ने आरोप लगाया था कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच ‘साठगांठ’ है. उन्होंने चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट दिखाकर दावा किया कि महादेवपुरा में एक लाख से ज़्यादा वोट चोरी हुए हैं.
पत्रकारों ने कुमार से पूछा कि जब भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने भी लोकसभा सांसदों— राहुल गांधी (रायबरेली), प्रियंका गांधी वाड्रा (वायनाड), अखिलेश यादव (कन्नौज) और अभिषेक बनर्जी (डायमंड हार्बर)—के ख़िलाफ़ वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे, तो फिर आयोग उनसे हलफ़नामा क्यों नहीं मांग रहा है.
लेकिन इस सवाल पर कुमार ने कोई जवाब नहीं दिया कि भाजपा सांसद से हलफ़नामा क्यों नहीं मांगा जा रहा.
नियम 20(3)(b) का चुनिंदा इस्तेमाल
राहुल गांधी का नाम लिए बिना उनसे हलफ़नामा मांगते हुए, कुमार ने रजिस्ट्रेशन ऑफ़ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के नियम 20(3)(b) पर ज़ोर दिया.
उन्होंने कहा:
अगर आप उस निर्वाचन क्षेत्र के वोटर हैं तो आप फ़ॉर्म 6, 7 और 8 भर सकते हैं और निर्धारित समय सीमा के भीतर बूथ-स्तर अधिकारियों के पास जमा कर सकते हैं. लेकिन अगर आप उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं, तो आपके पास कानून के तहत केवल एक ही उपाय है और वह है नियम 20(3)(b).
कुमार ने आगे बताया:
इसमें लिखा है कि अगर आप उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं, तो आप गवाह के तौर पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं. इसके लिए आपको निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी के सामने शपथ लेनी होगी और यह शपथ उसी व्यक्ति की मौजूदगी में दिलाई जाएगी जिसके ख़िलाफ़ आपने शिकायत की है.
द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था कि नियम 20(3)(b) केवल तब लागू होता है जब चुनाव आयोग द्वारा रिविजन एक्सरसाइज़ के बाद ड्राफ़्ट मतदाता सूची तैयार की जाती है और उसके बाद दावे और आपत्तियां उठाई जाती हैं.
विशेषज्ञों ने कहा कि गांधी के आरोप महादेवपुरा लोकसभा क्षेत्र में 2024 चुनाव से जुड़े हैं, और चुनाव हुए एक साल से ज़्यादा समय हो चुका है. इसलिए यह मामला नियम 20(3)(b) के दायरे में नहीं आता.
कुमार ने यह नहीं बताया कि नियम 20(3)(b) केवल ड्राफ़्ट मतदाता सूची बनने के बाद उठाए गए दावों और आपत्तियों पर लागू होता है. इसके बजाय, गांधी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर त्रुटियां 45 दिन के भीतर नहीं उठाई जातीं, तो यह ‘जनता को गुमराह करने’ जैसा है.
उन्होंने कहा:
या तो हलफ़नामा दीजिए या देश से माफ़ी मांगिए. तीसरा कोई विकल्प नहीं है. अगर हमें सात दिनों के भीतर हलफ़नामा नहीं मिलता है, तो इसका मतलब होगा कि ये सभी आरोप बेबुनियाद हैं और जो व्यक्ति यह कह रहा है कि ‘हमारे मतदाता फर्जी हैं’ — उसे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए.
2003 में जुलाई में हुआ था एसआईआर, लेकिन यह नहीं बताया कि उस साल चुनाव ही नहीं थे
कुमार से बिहार में एसआईआर के समय को लेकर सवाल पूछा गया – कि इसे चुनाव से ठीक पहले और ऐसे वक्त में क्यों किया जा रहा है जब राज्य मानसून की बाढ़ से प्रभावित रहता है.
इस पर कुमार ने कहा कि जब यह अभ्यास 2003 में हुआ था, तब भी जुलाई में ही हुआ था. उन्होंने कहा:
सवाल आया है कि जुलाई में यह क्यों किया जा रहा है जबकि मौसम ठीक नहीं रहता. मैं आपको बताना चाहता हूं कि बिहार में जब 2003 में एसआईआर हुआ था, तो यह 14 जुलाई से 14 अगस्त के बीच हुआ था. तब भी यह सफलतापूर्वक किया गया था और अब भी सभी गणना फार्म इकट्ठा कर लिए गए हैं.
हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि 2003 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने ही नहीं थे.
मार्च 2000 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वासमत से एक दिन पहले इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद राष्ट्रीय जनता दल की राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं. वह 2005 के विधानसभा चुनाव तक पद पर बनी रहीं.
द वायर ने रिपोर्ट किया है कि 2003 में हुए एसआईआर का आदेश उपलब्ध नहीं है, इसलिए उस साल यह प्रक्रिया कितने समय तक चली, इसकी पुष्टि नहीं हो सकती. लेकिन यह साफ है कि एसआईआर की प्रक्रिया विधानसभा चुनावों के निर्धारित समय (2005) से काफी पहले ही शुरू कर दी गई थी.
कुमार ने 2004 में जारी एक गहन पुनरीक्षण आदेश से जुड़े सवालों का भी जवाब नहीं दिया. उस आदेश में चुनाव आयोग ने कहा था कि चूंकि अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में उसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए वहां पुनरीक्षण चुनावों के बाद ही होगा. द वायर ने उस आदेश की कॉपी देखी है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कानून के मुताबिक हर चुनाव से पहले पुनरीक्षण की प्रक्रिया जरूरी है. उन्होंने बताया कि इस साल जनवरी में बिहार में एक संक्षिप्त पुनरीक्षण किया गया था, लेकिन यह नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए पर्याप्त नहीं था. इसी कारण जुलाई को क्वालिफ़ाइंग डेट तय किया गया.
अवैध प्रवासियों पर कोई जवाब नहीं
24 जून को बिहार में एसआईआर की घोषणा करते समय चुनाव आयोग ने कहा था कि यह प्रक्रिया कई कारणों से ज़रूरी है, जिनमें से एक है ‘ग़ैर-क़ानूनी विदेशी प्रवासियों’ का मतदाता सूची में शामिल होना.
चुनाव आयोग ने पहले कुछ मीडिया संस्थानों को ‘स्रोतों’ के ज़रिए बताया था कि मतदाता सूची में नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से आए ग़ैर-क़ानूनी प्रवासी पाए गए हैं, लेकिन उनकी संख्या नहीं बताई गई थी.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब इन अवैध प्रवासियों की संख्या को लेकर सवाल पूछा गया, तो कुमार ने कोई आंकड़ा नहीं दिया. उन्होंने कहा:
मैं साफ़ करना चाहता हूं कि भारत के संविधान के
मैं साफ़ करना चाहता हूं कि भारत के संविधान के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को है. दूसरे देशों के लोगों को यह अधिकार नहीं है. अगर ऐसे लोग नामांकन फॉर्म भर देते हैं, तो एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कुछ दस्तावेज़ देने होंगे, जिनकी जांच 30 सितंबर तक होगी. जो भारतीय नागरिक नहीं होंगे, उन्हें ढूंढ लिया जाएगा और उन्हें मतदाता के रूप में शामिल नहीं किया जाएगा.
कुमार ने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया कि क्या एसआईआर की यह प्रक्रिया वास्तव में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने की दिशा में एक कदम है.
मांगे गए दस्तावेज़ों के साथ कितने गणना प्रपत्र मिले?
चुनाव आयोग ने कहा है कि एसआईआर प्रक्रिया के दौरान जब 25 जुलाई को गणना प्रपत्र जमा करने का चरण पूरा हुआ, तब तक 99.8% प्रपत्र मतदाताओं से इकट्ठा कर लिए गए थे.
लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में बड़ा विवाद यह है कि आयोग ने मतदाताओं से उनकी पात्रता साबित करने के लिए 11 दस्तावेज़ों की सूची तय की थी. इनमें से किसी एक दस्तावेज़ के साथ फॉर्म जमा करना था. कुमार ने इस पर कोई साफ़ जवाब नहीं दिया कि कितने फॉर्म ज़रूरी दस्तावेज़ों के साथ जमा हुए हैं, या अब यह फ़र्क क्यों किया जा रहा है कि किन मतदाताओं को बूथ-लेवल अधिकारियों ने ‘अनुशंसित’ किया और किन्हें ‘अनुशंसित नहीं’ किया.
कुमार ने कहा:
बिहार में चल रही एसआईआर प्रक्रिया के दौरान कितने लोगों से दस्तावेज़ मिले हैं, कितनों को अनुशंसित किया गया है और हर बूथ-लेवल अधिकारी ने क्या अनुशंसा की है-यह डेटा इकट्ठा करने की प्रक्रिया अभी जारी है. चुनाव आयोग एक मल्टी-लेवल ढांचे पर काम कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा, ‘सबसे पहले बूथ-लेवल अधिकारी है, फिर बूथ-लेवल सुपरवाइज़र, उसके बाद एसडीएम, फिर डीएम और अंत में मुख्य निर्वाचन अधिकारी. न चुनाव आयोग और न ही कोई और बिना कानूनी प्रक्रिया के कोई वोट जोड़ सकता है. आपको समझना होगा कि इस विकेंद्रीकृत ढांचे के तहत कितने दस्तावेज़ लिए गए हैं या नहीं, यह अभी एसडीएम स्तर पर चल रहा है. यह जानकारी सामने आएगी. अभी कुछ कहना सही नहीं होगा.’
मकान संख्या ‘ज़ीरो’
बिहार की वोटर लिस्ट में कई मतदाताओं के घर का नंबर ‘0’ (शून्य) दर्ज होने की रिपोर्ट सामने आई है. इस पर कुमार ने कहा कि ऐसे प्रविष्टियों पर सवाल उठाना गरीब मतदाताओं का मज़ाक उड़ाने जैसा है.
उन्होंने कहा:
कई लोगों का अपना घर नहीं होता, लेकिन उनके नाम वोटर लिस्ट में दर्ज होते हैं. फिर उनका पता क्या दिया जाता है? वही जगह जहां वे रात में सोते हैं—कभी सड़क किनारे, कभी पुल के नीचे, कभी बिजली के खंभे के पास. और अगर कहा जाए कि ये नकली वोटर हैं, तो यह हमारे गरीब मतदाताओं, बहनों, भाइयों और बुज़ुर्गों का बड़ा मज़ाक है.
कुमार ने बताया कि ‘करोड़ों’ लोगों का पता शून्य लिखा हुआ है क्योंकि उनकी पंचायत या नगर पालिकाओं ने उनके घरों को नंबर नहीं दिया है. ऐसे में चुनाव आयोग इन मतदाताओं को एक काल्पनिक नंबर देता है, जो कंप्यूटर पर ‘0’ के रूप में दिखता है.
उन्होंने साफ़ किया, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि वे मतदाता नहीं हैं.’
कुमार ने बताया कि ‘करोड़ों’ लोगों का पता शून्य लिखा हुआ है क्योंकि उनकी पंचायत या नगर पालिकाओं ने उनके घरों को नंबर नहीं दिया है. ऐसे में चुनाव आयोग इन मतदाताओं को एक काल्पनिक नंबर देता है, जो कंप्यूटर पर ‘0’ के रूप में दिखता है.
उन्होंने साफ़ किया, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि वे मतदाता नहीं हैं.’
वोटर लिस्ट में बार-बार नाम दर्ज होने का मामला
राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि कई जगहों पर एक ही वोटर का नाम अलग-अलग मतदान केंद्रों में दर्ज है.
इस पर कुमार ने कहा कि भले ही किसी मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में कई बार दर्ज हो, लेकिन वह वोट केवल एक ही बार डाल सकता है.
हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि आखिर किसी मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में बार-बार क्यों दर्ज हो रहा है.
गांधी ने 7 अगस्त की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई उदाहरण दिखाए थे, जिनमें मतदाताओं का नाम अलग-अलग बूथों की वोटर लिस्ट में बार-बार दर्ज पाया गया.
कुमार ने कहा, ‘एक मतदाता ‘सिर्फ एक ही बार वोट डाल सकता है. अगर उसका नाम वोटर लिस्ट में दो बार दर्ज है, तो यह वोट चोरी कैसे हो सकती है? ऐसा संभव ही नहीं है. हर मतदाता सिर्फ एक बार वोट डाल सकता है. इसी वजह से हमने कहा कि चुनाव आयोग के आंकड़ों का गलत विश्लेषण किया गया है और यह कहा जा रहा है कि वोटर लिस्ट गड़बड़ है, इसलिए वोटिंग भी गलत हुई. लेकिन वोटर लिस्ट और वोटिंग – दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं.’