केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संविधान का 130वां संशोधन विधेयक संसद में पेश करने जा रहे हैं. इसमें प्रावधान है कि कोई मुख्यमंत्री, मंत्री या प्रधानमंत्री यदि लगातार 30 दिन तक जेल में रहता है तो उसे बर्ख़ास्त किया जा सकेगा. कांग्रेस ने इसे विपक्षी राज्यों को कमज़ोर करने का हथकंडा बताया है.
मिली जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने

मंगलवार शाम (19 अगस्त) लोकसभा के महासचिव को पत्र लिखकर सूचित किया है कि वे संसद के जारी मानसून सत्र में बुधवार (20 अगस्त, 2025) को संविधान का 130वां संशोधन विधेयक-2025, केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक-2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2025 पेश करने वाले हैं.
संशोधन में यह प्रावधान है कि अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री या कोई भी राज्य मंत्री जेल में 30 दिन तक हिरासत में रहता है (चाहे उसे दोषी करार न दिया गया हो), तो राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर उन्हें बर्खास्त कर सकते हैं.
यह संशोधन प्रधानमंत्री पर भी लागू होगा. यानी राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वे प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर सकें. हालांकि, इस संभावना को शून्य माना जा रहा है कि केंद्र सरकार की कोई जांच एजेंसी उस व्यक्ति को (यानी प्रधानमंत्री को) गिरफ्तार करे, जो उन्हीं एजेंसियों को नियंत्रित करता है, और फिर उसे 30 दिन तक जेल में रखे.
इस नए नियम को लागू करने के लिए शाह संविधान का 130वां संशोधन विधेयक पेश करेंगे. इस विधेयक के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 75 (‘मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान’) में निम्नलिखित धारा जोड़ने का प्रस्ताव है:
‘यदि कोई मंत्री, पद पर रहते हुए लगातार तीस दिनों की अवधि तक, किसी अपराध के आरोप में गिरफ़्तार होकर हिरासत में रहता है – और वह अपराध वर्तमान में लागू किसी भी क़ानून के तहत आता है, जिसकी सज़ा पाँच साल या उससे अधिक की क़ैद हो सकती है – तो राष्ट्रपति उसे उसके पद से हटा देंगे. यह हटाना प्रधानमंत्री की सलाह पर किया जाएगा, जो उस मंत्री को हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन तक दी जानी होगी.’
‘यदि प्रधानमंत्री द्वारा ऐसे मंत्री को हटाने की सलाह 31वें दिन तक राष्ट्रपति को नहीं दी जाती है, तो उसके बाद वाले दिन से वह मंत्री अपने पद पर नहीं रहेगा.’
‘यह भी प्रावधान होगा कि यदि प्रधानमंत्री, अपने कार्यकाल के दौरान लगातार तीस दिनों तक किसी अपराध के आरोप में, जो किसी कानून के तहत दंडनीय है और जिसकी सज़ा पांच वर्ष या उससे अधिक हो सकती है, गिरफ्तार होकर हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन तक इस्तीफ़ा देना होगा. अगर वह इस्तीफ़ा नहीं देता है, तो उसके बाद वाले दिन से वह प्रधानमंत्री पद पर नहीं रहेगा.’
नए नियम के बारे में बिल में कहा गया है कि किसी चुने हुए मुख्यमंत्री को भी पद से हटाया जा सकता है, अगर उन्हें 30 दिन या उससे अधिक समय तक हिरासत में रखा जाता है या गिरफ्तार किया जाता है, भले ही उनका दोष साबित न हुआ हो.
यह नया नियम 1963 के गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज़ एक्ट की धारा 45, उपधारा (5) में संशोधन के रूप में जोड़ा गया है.
वहीं, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल में – राज्य का दर्जा वापस मिलने की अटकलों के उलट – एक समान प्रावधान शामिल किया गया है. इसमें कहा गया है कि अगर जम्मू-कश्मीर का कोई मंत्री लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रहता है और उस पर ऐसा अपराध का आरोप है जिसकी सज़ा पांच साल या उससे अधिक हो सकती है, तो उसे अब लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा, या मुख्यमंत्री की सलाह पर, हटाया जा सकेगा.
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल में लिखा है:
‘यदि कोई मंत्री, अपने पद पर रहते हुए लगातार तीस दिनों तक किसी अपराध के आरोप में, जो वर्तमान समय में लागू किसी भी कानून के तहत दंडनीय है और जिसकी सज़ा पांच वर्ष या उससे अधिक हो सकती है, गिरफ्तार होकर हिरासत में रहता है, तो उसे उस हिरासत में लिए जाने के बाद 31वें दिन तक मुख्यमंत्री की सलाह पर, लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा पद से हटा दिया जाएगा.’
अगर यह संशोधन विधेयक पास हो जाता है तो यह केंद्र सरकार को अतिरिक्त अधिकार देगा कि वह किसी मुख्यमंत्री या उनके मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य को हटा सके. यह उस वादे के बिल्कुल उलट है जो केंद्र सरकार ने अदालत से किया था कि जम्मू-कश्मीर को जल्द ही पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिया जाएगा.
नया संशोधन बिल इसके बजाय केंद्र सरकार को पहले से अधिक प्रशासनिक शक्तियां देने का काम कर रहा है और जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित सरकार की तुलना में केंद्र के शासन को और मज़बूत करता है.
इस कदम पर शुरुआती प्रतिक्रिया में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने शाह के प्रस्तावों की आलोचना की है और इसे विपक्ष-शासित राज्यों को कमजोर करने का तरीका बताया है.
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया:
‘यह कितनी खतरनाक स्थिति है! गिरफ्तारी के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं! विपक्षी नेताओं की अंधाधुंध और बेहिसाब गिरफ्तारियां! नया प्रस्तावित कानून कहता है कि मुख्यमंत्री आदि को सिर्फ गिरफ्तारी पर तुरंत हटा दो.’
उन्होंने आगे लिखा:
‘विपक्ष को अस्थिर करने का सबसे आसान तरीका है – पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी पर लगा दो. चुनाव में हराने में असफल होने पर भी उन्हें मनमाने ढंग से गिरफ्तार कर हटाया जा सकता है!! और सत्ताधारी दल के किसी मुख्यमंत्री को कभी छुआ भी नहीं जाएगा!!’
द वायर को यह भी जानकारी मिली है कि शाह ने यह पत्र केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू, कानून और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग, लोकसभा सचिवालय और लोकसभा के विधायी कार्यालय को भी भेजा है.
शाह ने एक अलग पत्र में लोकसभा महासचिव से अनुरोध किया है कि उन्हें वर्तमान सत्र में दोनों संशोधन विधेयक पेश करने की अनुमति देने के लिए सदन के नियमों में कुछ ढील दी जाए.
बताया जा रहा है कि शाह ने ‘समय की कमी’ का हवाला देकर महासचिव से आग्रह किया कि लोकसभा के नियम 19 (ए) और 19 (बी) की प्रक्रियाओं और नियमों को आसान बनाया जाए ताकि यह प्रस्ताव मौजूदा सत्र में रखा जा सके, जो 21 अगस्त, 2025 को समाप्त होने वाला है.
नियम 19 (ए) कहता है कि किसी भी मंत्री को लोकसभा में विधेयक पेश करने से पूर्व सूचना देनी होगी. वहीं नियम 19 (बी) कहता है कि किसी भी विधेयक को औपचारिक रूप से पेश करने से पहले लोकसभा के सभी सदस्यों के बीच वितरित किया जाना चाहिए ताकि वे संबंधित विधेयक की समीक्षा और तैयारी कर सकें.
मंगलवार देर रात सरकार ने द वायर की पहली रिपोर्ट की पुष्टि कर दी, जिसमें शाह के प्रस्तावों को लेकर लोकसभा महासचिव को लिखे पत्र का ज़िक्र था. संसदीय कार्य मंत्रालय ने लोकसभा सचिवालय को संशोधित सरकारी कार्यसूची भेजी और उसमें इस एजेंडे को शामिल करने का अनुरोध किया. मंत्रालय ने यह भी कहा कि अगर चर्चाएं 21 अगस्त, 2025 तक खिंचती हैं, तो इन विधेयकों पर उस दिन भी चर्चा की जा सकती है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जब शाह ने अचानक लोकसभा महासचिव को पत्र भेजकर सत्र के आखिरी दो कार्य दिवस बचे होने के बावजूद इन विधेयकों को पेश करने का प्रस्ताव रखा, तो लोकसभा सचिवालय ने यह आपत्ति जताई कि यह नियम 19ए और 19बी का उल्लंघन हो सकता है.
बताया जा रहा है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सचिवालय से कहा है कि शाह के इस तात्कालिक अनुरोध को समायोजित करने का कोई समाधान निकाला जाए.
इसके बाद शाह को यह बताया गया कि वे लोकसभा महासचिव उत्पल कुमार सिंह को एक और पत्र लिखें और उनसे आग्रह करें कि वे नियम 19ए और 19बी में कुछ नरमी बरतें. यह संभावना जताई जा रही है कि जब शाह इन विधेयकों को पेश करेंगे, तो वे इन्हें किसी सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी रख सकते हैं, क्योंकि इतने अहम विधेयक बिना विपक्षी नेताओं को समीक्षा का पर्याप्त समय दिए पेश किए जा रहे हैं.