भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने एक संयुक्त संसदीय समिति को बताया कि ‘एक देश एक चुनाव’ पर प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग को ‘अनियंत्रित विवेकाधिकार’ देता है. साथ ही, विधेयक विभिन्न राज्यों और लोकसभा में अलग-अलग चुनाव चक्रों के कारण उत्पन्न नीतिगत गतिरोध को कम करने के मूल उद्देश्य को पूरा नहीं करता है.

नई दिल्ली: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मंगलवार (19 अगस्त, 2025) को एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को बताया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने का प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग को ‘अनियंत्रित विवेकाधिकार’ देता है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा सांसद और वरिष्ठ नेता पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक 2024, जिसे आमतौर पर ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक कहा जाता है, की समीक्षा कर रही है.
जस्टिस (सेवानिवृत्त) खन्ना भारत के पांचवें पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं जिन्होंने प्रस्तावित विधेयक के साथ इस मुद्दे को रेखांकित किया है. उनसे पहले, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी प्रस्तावित विधेयक में विभिन्न कानूनी खामियों की ओर इशारा किया था.
समिति की तीन घंटे की बैठक हुई जिसमें सदस्यों ने जस्टिस खन्ना से विधेयक के सभी पहलुओं पर पूछताछ की.
संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024, संविधान के अनुच्छेद 82A के साथ-साथ अनुच्छेद 83 और 172 में कुछ खंड जोड़ने का प्रस्ताव करता है.
‘मनमाना खंड’
जस्टिस खन्ना ने कहा कि प्रस्तावित अनुच्छेद 82ए का खंड 5, भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को यह तय करने का ‘अनियंत्रित विवेकाधिकार’ देता है कि कब विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते.
उन्होंने अपने लिखित निवेदन में कहा, ‘यह खंड मनमाना होने और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने के आधार पर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन और अपमान के कारण सवालों के घेरे में रहेगा.’
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह खंड चुनाव आयोग और सरकार को संविधान के अनुच्छेद 356 में प्रदत्त शक्तियों से परे अधिकार प्रदान करता है. जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘चुनाव आयोग द्वारा चुनाव स्थगित करने से अप्रत्यक्ष राष्ट्रपति शासन लग सकता है – दूसरे शब्दों में केंद्र सरकार राज्य सरकार की बागडोर अपने हाथ में ले लेगी. यह न्यायिक रूप से संदिग्ध होगा, क्योंकि यह संविधान द्वारा कल्पित संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है.’
जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह विधेयक विभिन्न राज्यों और लोकसभा में अलग-अलग चुनाव चक्रों के कारण उत्पन्न नीतिगत गतिरोध को कम करने के मूल उद्देश्य को पूरा नहीं करता है.
अखबार ने सूत्रों के हवाले से कहा कि उन्होंने तर्क दिया कि जब भी राज्य विधानसभाओं के समय से पहले विघटन के कारण चुनाव होंगे, आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी; इसलिए, यह उस उद्देश्य को विफल कर देता है जिसके लिए यह विधेयक लाया गया है.
समिति के अध्यक्ष चौधरी ने अखबार को बताया कि समिति अब प्रस्तावित कानून के वित्तीय प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए अर्थशास्त्रियों से मुलाकात करेगी. सरकार का तर्क है कि इस कानून से खर्च में उल्लेखनीय कमी आएगी.
गौरतलब है कि बीते साल 17 दिसंबर को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए पेश किए गए विधेयक का विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया था. इसका 269 सांसदों ने समर्थन किया था, जबकि 198 सांसदों द्वारा विरोध देखने को मिला था. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संसदीय मामलों के मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव रखा था.
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में दो विधेयक पेश किए थे- एक संविधान संशोधन विधेयक, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने के लिए है, और दूसरा विधेयक, जो केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए प्रासंगिक अधिनियमों में संशोधन करने के लिए है, ताकि वहां भी एक साथ चुनाव कराए जा सकें.
‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए संविधान में 129वां संशोधन कर इसके तीन अनुच्छेदों में संशोधन और एक नया अनुच्छेद 82ए जोड़ने का प्रस्ताव है. इस संशोधन के मुताबिक, राष्ट्रपति को लोकसभा के पहले सत्र के बाद एक ‘नियुक्त तिथि’ की अधिसूचना जारी करनी होगी, और इस तिथि के बाद चुनी गई किसी भी राज्य विधान सभा का कार्यकाल लोकसभा के समापन के साथ समाप्त हो जाएगा.
इन प्रस्तावित संशोधनों की सिफारिश पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने की थी, जिसने पिछले वर्ष मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.