नेपाल ने भारत-चीन व्यापार बिंदु लिपुलेख पर आपत्ति जताई, विदेश मंत्रालय ने दावे को अनुचित कहा

भारत और चीन द्वारा तीन बिंदुओं पर सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति जताए जाने के एक दिन बाद नेपाल ने औपचारिक रूप से आपत्ति जताते हुए दावा किया कि लिपुलेख दर्रे का क्षेत्र उसका ‘अभिन्न अंग’ हैं. इसका विरोध करते हुए भारत ने कहा कि ऐसे दावे ‘न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित’.

नई दिल्ली: भारत और चीन द्वारा तीन बिंदुओं पर सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति जताए जाने के एक दिन बाद नेपाल ने औपचारिक रूप से आपत्ति जताते हुए दावा किया कि लिपुलेख दर्रे का क्षेत्र उसका ‘अभिन्न अंग’ हैं.

इस संबंध में भारत ने नेपाल की आपत्ति का स्पष्ट रूप विरोध करते हुए कहा कि ऐसे दावे ‘न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित हैं’.

मालूम हो कि 19 अगस्त को भारत और चीन ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ बैठक के दौरान लिए गए कई फैसलों की जानकारी दी थी.

इन फैसलों में एक यह था कि एशियाई दिग्गज ‘तीन निर्दिष्ट व्यापारिक बिंदुओं, लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा और नाथू ला दर्रा के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से खोलने पर सहमत हुए हैं.’

इसके एक दिन बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि देश का आधिकारिक मानचित्र, जिसमें महाकाली नदी के पूर्व के तीन क्षेत्र शामिल हैं, पहले ही उसके संविधान में शामिल कर लिया गया है. इसमें कहा गया है कि नेपाल ने भारत से लगातार ‘उस क्षेत्र में सड़क निर्माण/विस्तार या सीमा व्यापार जैसी कोई भी गतिविधि न करने’ का आग्रह किया है और कहा कि इस स्थिति से चीन को भी अवगत करा दिया गया है.

मंत्रालय ने आगे कहा कि नेपाल भारत के साथ सीमा विवाद को ‘ऐतिहासिक संधियों और समझौतों, तथ्यों, मानचित्रों और साक्ष्यों के आधार पर कूटनीतिक माध्यमों से’ सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है, साथ ही दोनों पड़ोसियों के बीच घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के महत्व की ओर भी इशारा किया.

उल्लेखनीय है कि नेपाल की यह आपत्ति ऐसे समय में आई है, जब दोनों पड़ोसी देश अगले महीने नेपाली प्रधानमंत्री कृष्ण प्रसाद ओली की भारत यात्रा की तैयारी कर रहे हैं, जिसे द्विपक्षीय संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के एक तरीके के रूप में देखा जा रहा था.

भारत की प्रतिक्रिया

नेपाल की आपत्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि लिपुलेख पर नई दिल्ली की स्थिति ‘सुसंगत और स्पष्ट’ रही है.

उन्होंने कहा कि इस दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और ‘दशकों से’ चल रहा है. हालांकि, हाल के वर्षों में कोविड-19 और ‘अन्य घटनाक्रमों’ के कारण इसमें रुकावट आई है. यह टिप्पणी पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच चार साल पुराने सैन्य गतिरोध के संदर्भ में थी, जो अक्टूबर 2024 में समाप्त हुआ था.

उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्ष अब इसे फिर से शुरू करने पर सहमत हो गए हैं.’

जायसवाल ने ज़ोर देकर कहा कि नेपाल द्वारा किए गए क्षेत्रीय दावे निराधार हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा मानना ​​है कि ऐसे दावे न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित हैं. क्षेत्रीय दावों का कोई भी एकतरफ़ा कृत्रिम विस्तार अस्वीकार्य है.’

उन्होंने आगे कहा कि भारत ‘बातचीत और कूटनीति के ज़रिए लंबित सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए नेपाल के साथ रचनात्मक बातचीत’ के लिए तैयार है.

लिपुलेख: मानचित्र और विरोध

भारत-चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख दर्रा, पिछले एक दशक में ही नई दिल्ली और काठमांडू के बीच विवाद का एक विषय बन गया है.

इस संबंध में नेपाल ने पहली बार 2015 में कड़ी आपत्ति जताई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजिंग यात्रा के दौरान भारत और चीन लिपुलेख के ज़रिए सीमा व्यापार बढ़ाने पर सहमत हुए थे. काठमांडू ने विरोध जताया था कि इस क्षेत्र पर उसके दावे के बावजूद उससे सलाह नहीं ली गई.

नेपाल ने नवंबर 2019 में फिर से विरोध दर्ज कराया, जब भारत ने जम्मू-कश्मीर को दो नए केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाला एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किया. इस मानचित्र में कालापानी और लिपुलेख को भारतीय क्षेत्र का हिस्सा दिखाया गया था.

इस मामले में मई 2020 में लिपुलेख होते हुए कैलाश-मानसरोवर तक सड़क संपर्क के उद्घाटन ने नेपाल में और भी ज़्यादा आक्रोश पैदा कर दिया, जिसने इस कदम को ‘एकतरफ़ा कार्रवाई’ बताया. उस समय भी प्रधानमंत्री रहे ओली ने जवाब में एक संशोधित नक्शा जारी किया जिसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल के आधिकारिक क्षेत्र में शामिल किया गया. बाद में इस फैसले को नेपाल की संसद ने मंज़ूरी दे दी और इसे संविधान में शामिल कर लिया गया.

भारत ने नए राजनीतिक नक्शे को ‘अनुचित मानचित्रण‘ करार दिया, जिसे ‘स्वीकार नहीं किया जाएगा’.

मालूम हो कि हाल के वर्षों में चीन के रुख ने नेपाल के लिए इस मुद्दे को और कठिन बना दिया है. बीजिंग ने न केवल लिपुलेख के रास्ते भारत के साथ व्यापार व्यवस्था का समर्थन किया है, बल्कि 2023 में एक नक्शा भी जारी किया है जिसमें इस क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र में दिखाया गया है.

इसके बाद नेपाल को चीन से अपने संवैधानिक मानचित्र का सम्मान करने का आह्वान करना पड़ा.