सीबीआई की एसआईटी ने एक पुलिसकर्मी को कथित तौर पर हिरासत में यातना दिए जाने के मामले में जम्मू-कश्मीर के दो पुलिस अधिकारियों और चार अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ़्तार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को सीबीआई को कथित अपराधियों को गिरफ्तार करने का निर्देश देते हुए 50 लाख रुपये मुआवज़ा देने को कहा था.

श्रीनगर: एक पुलिसकर्मी को कथित तौर पर हिरासत में यातना दिए जाने के दो साल से भी ज़्यादा समय बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस मामले में जम्मू-कश्मीर के दो पुलिस अधिकारियों और चार अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया है.
पिछले महीने आए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद केंद्रीय एजेंसी ने पुलिस उपाधीक्षक सुभाष चंद्र की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था, जो कथित तौर पर हिरासत में प्रताड़ित किए गए पुलिस कांस्टेबल खुर्शीद अहमद चौहान के मामले की जांच करेगा.
आरोपियों- पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) ऐजाज़ अहमद नायकू, सब-इंस्पेक्टर रियाज़ अहमद और पुलिसकर्मी इम्तियाज़ अहमद, हज़ग्निर अहमद, शाकिर अहमद और मोहम्मद यूनिस – को जांच के दौरान पूछताछ के लिए बुलाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया. ख़बरों के अनुसार, ‘वे श्रीनगर की एक जेल में बंद हैं.’
पद के दुरुपयोग के आरोप में पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ आधिकारिक फटकार का एक दुर्लभ उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को केंद्रीय एजेंसी को कथित अपराधियों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया था और 50 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा था.
चौहान का मामला यातना के पीड़ितों और सुरक्षा बलों की हिरासत में मारे गए लोगों के परिवारों में एक आशा की किरण जगाएगा, जो अधिकारियों से प्रतिशोध के डर से न्याय के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने से कतरा रहे हैं.
लंबी प्रताड़ना
बारामुला ज़िला पुलिस लाइन में कांस्टेबल के पद पर तैनात चौहान को नाइकू ने 20 फरवरी, 2023 को एक मादक पदार्थ मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (कुपवाड़ा) के कार्यालय में रिपोर्ट करने का निर्देश दिया था. बाद में उन्हें ज़िले के एक संयुक्त पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया.
चौहान के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि उन्हें कुपवाड़ा के संयुक्त पूछताछ केंद्र (जेआईसी) में रखा गया था और कथित तौर पर छह दिनों तक प्रताड़ित किया गया, जिसके कारण वह कोमा में चले गए और कुपवाड़ा पुलिस ने कथित अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय 26 फरवरी, 2023 को उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 309 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज कर लिया.
कुपवाड़ा पुलिस द्वारा उसी दिन दर्ज की गई एफआईआर में कहा गया था कि चौहान ने ‘ब्लेड से अपनी नस काटने की कोशिश’ कर खुद को घायल कर लिया था.
चौहान के परिवार द्वारा बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अधिकारियों ने चौहान की मेडिकल जांच रिपोर्ट उनके परिवार के साथ साझा करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उनकी पत्नी रुबीना अख्तर ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगी. इस आरटीआई ने कानूनी लड़ाई का रुख बदल दिया.
मेडिकल रिपोर्ट ने मामले को बदला गया
चौहान का इलाज श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एसकेआईएमएस) में हुआ था, जहां से उनकी पत्नी को आरटीआई के माध्यम से मेडिकल रिपोर्ट मिली, जिसमें उनकी चोटों की प्रकृति के बारे में महत्वपूर्ण विवरण सामने आए.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘चौहान के अंडकोष पर घाव थे और दोनों अंडकोष शल्यक्रिया द्वारा निकाल दिए गए थे, नितंबों पर जांघों तक फैले चोट के निशान थे, हथेलियों और तलवों पर घाव थे, मलाशय में वनस्पति कणों की उपस्थिति और कई फ्रैक्चर थे’.
सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में खामियां निकालते हुए कहा कि ‘यह सुझाव देना मूर्खतापूर्ण है कि एक विवेकशील व्यक्ति नशीली दवाओं के मामले में पूछताछ से बचने के लिए अपने जननांगों को पूरी तरह से विकृत करवाएगा और शरीर के दुर्गम अंगों पर चोट पहुंचाएगा’.
अख्तर की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारी अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है कि 26 फरवरी, 2023 को जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर द्वारा पीड़ित के साथ विच्छेदित जननांगों को एक प्लास्टिक बैग में एसकेआईएमएस लाया गया था.
पुलिस जांच पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 21 जुलाई, 2025 को कहा कि यह ‘व्यवस्थित कवर-अप’ और ‘प्राधिकार के दुरुपयोग’ का एक परेशान करने वाला पैटर्न उजागर करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस मामले की अभूतपूर्व गंभीरता, जिसमें क्रूर और अमानवीय हिरासत में यातनाएं शामिल हैं, जिसमें अपीलकर्ता के जननांगों को पूरी तरह से विकृत कर दिया गया, पुलिस अत्याचार के सबसे बर्बर उदाहरणों में से एक है, जिसे राज्य अपनी पूरी शक्ति से बचाने और छिपाने की कोशिश कर रहा है.’
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि 50 लाख रुपये की मुआवजा राशि आरोपी पुलिसकर्मियों के वेतन से वसूल की जाए.
गौरतलब है कि 1990 के दशक की शुरुआत में सशस्त्र विद्रोह के भड़कने के बाद से जम्मू-कश्मीर में यातना और न्यायेतर हत्याओं की व्यापक रूप से खबरें आती रही हैं. सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) जैसे कानूनों सहित कई कारकों के कारण इस तरह की यातना के कथित अपराधी आधिकारिक जांच से काफी हद तक बच निकले हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जम्मू-कश्मीर के 715 बंदियों का विवरण दर्ज किया है जिनकी 1990-1994 के बीच सुरक्षा बलों की हिरासत में मृत्यु हो गई. इनमें से कुछ को कथित तौर पर यातना दी गई जिसके परिणामस्वरूप उनकी मौत हो गई, जबकि कई अन्य को गोली मारकर हत्या कर दी गई.
2019 में अब निष्क्रिय हो चुके जम्मू कश्मीर सिविल सोसाइटी गठबंधन – श्रीनगर स्थित एक मानवाधिकार वकालत समूह, जिसके संयोजक खुर्रम परवेज आतंकवाद रोधी यूएपीए के आरोपों के तहत जेल में बंद हैं – और एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपियर्ड पर्सन्स की एक रिपोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 1990-2017 के बीच सुरक्षा बलों द्वारा यातना के 432 मामलों का दस्तावेजीकरण किया, जिनमें से 70% पीड़ित नागरिक थे.