हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि बिना भारत की निंदा किए किसी अन्य देश की प्रशंसा करना राजद्रोह नहीं है. अदालत ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ वाले सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में आरोपी को ज़मानत देते हुए माना कि धारा 152 के तहत लगाए आरोपों से उन्हें जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 19 अगस्त को कहा कि भारत की निंदा किए बिना किसी दूसरे देश की प्रशंसा करना राजद्रोह नहीं है.
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने एक व्यक्ति को ज़मानत दे दी, जिन पर सोशल मीडिया पर एक ऐसी तस्वीर शेयर करने का आरोप था जो कथित तौर पर ‘भड़काऊ और राष्ट्रहित के खिलाफ’ थी.
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पांवटा साहिब गांव के निवासी सुलेमान ने कथित तौर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एआई-जनरेटेड तस्वीर को ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ शब्दों के साथ शेयर किया था.
इसके बाद, सुलेमान (जो एक फल विक्रेता है) के एक परिचित ने 27 मई को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 152 के तहत उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें उन पर ‘पाकिस्तान के पक्ष में’ और प्रधानमंत्री के ‘खिलाफ’ लिखने का आरोप लगाया गया. 8 जून को सुलेमान ने आत्मसमर्पण कर दिया और तब से हिरासत में है.
अपनी ज़मानत याचिका में सुलेमान ने दलील दी कि वह निर्दोष है और उन्हें झूठा फंसाया गया है. सुलेमान के वकील ने तर्क दिया कि ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ लिखना अपने आप में किसी भी तरह से नफ़रत भड़काने के बराबर नहीं है, और उन्होंने एक पुराने मामले का हवाला दिया जहां हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे बरकरार रखा था.
हालांकि, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि जब यह पोस्ट शेयर की गई थी, तब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण थे और ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखना ‘राष्ट्र-विरोधी’ है.
19 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश राकेश कैंथला ने कहा कि सुलेमान के खिलाफ शिकायत से यह साबित नहीं होता कि ‘भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति नफ़रत या असंतोष फैलाया गया था.’
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘मातृभूमि की निंदा किए बिना किसी देश की प्रशंसा करना राजद्रोह का अपराध नहीं है, क्योंकि यह सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को नहीं भड़काता है या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित नहीं करता है.’
न्यायाधीश ने फल विक्रेता को जमानत देते हुए कहा कि सुलेमान पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया था, उससे उन्हें जोड़ने के लिए ‘अपर्याप्त सामग्री’ है.
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 152 ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों’ को दंडित करती है. इस धारा में राजद्रोह शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता की धारा 124A का स्थान लेती है, जो राजद्रोह से संबंधित थी. हालांकि, बीएनएस के लागू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के तहत लंबित आपराधिक मुकदमों और अदालती कार्यवाही को तब तक के लिए स्थगित कर दिया था जब तक कि सरकार कानून पर पुनर्विचार नहीं कर लेती.
बीएनएस 2023 की धारा 152 वही धारा है जिसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने द वायर चलाने वाले ट्रस्ट और उसके संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को ‘दंडात्मक कार्रवाई’ से राहत दी है. असम पुलिस ने 28 जून को प्रकाशित एक खबर एक खबर (IAF Lost Fighter Jets to Pak Because of Political Leadership’s Constraints’: Indian Defence Attache) के लिए इस धारा के तहत उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
द वायर ने सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया था कि बीएनएस की धारा 152 के प्रावधान अस्पष्ट हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से मीडिया के सरकार पर रिपोर्ट करने और सवाल उठाने के अधिकार को प्रभावित करते हैं. 12 अगस्त को अदालत ने फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म के सदस्यों, द वायर के स्वामित्व वाले ट्रस्ट, के साथ-साथ संस्थापक संपादक वरदराजन को इस संबंध में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचाने का आदेश पारित किया.
विशेषज्ञों ने पहले भी बीएनएस की धारा 152 को लेकर कई चिंताएं जताई हैं. हालांकि बीएनएस की धारा 152 ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों’ को आपराधिक बनाती है, लेकिन द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के खतरे को क़ानून में परिभाषित नहीं किया गया है और यही बात इसे ‘अस्पष्ट’ बनाती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘आरोपी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने से पहले भाषण और उसके वास्तविक परिणाम के बीच कारण संबंध स्थापित करने के लिए वैधानिक आवश्यकता का अभाव धारा 152 को दुरुपयोग के लिए जवाबदेह बनाता है.’