50% टैरिफ: निर्यातक संघ ने कहा- कपड़ा निर्माताओं ने तिरुपुर, नोएडा, सूरत में उत्पादन रोका

भारत से अमेरिका को निर्यात पर 50% टैरिफ बुधवार से लागू हो गया है. भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ ने भारतीय वस्तुओं पर उच्च अमेरिकी टैरिफ पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि तिरुपुर, नोएडा और सूरत में कपड़ा और परिधान निर्माताओं ने भारी शुल्कों के कारण बिगड़ती लागत प्रतिस्पर्धा के बीच उत्पादन रोक दिया है.

नई दिल्ली: भारत से अमेरिका को निर्यात पर 50% टैरिफ बुधवार (27 अगस्त) से लागू हो गया है. भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ ने अमेरिका द्वारा 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने के फैसले के कारण लागत प्रतिस्पर्धा में गिरावट के बीच तिरुपुर, नोएडा और सूरत में कपड़ा और परिधान निर्माताओं ने उत्पादन रोक दिया है.

निर्यात महासंघ, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन्स (एफआईईओ) ने 26 अगस्त को भारतीय वस्तुओं पर उच्च अमेरिकी टैरिफ पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि तिरुपुर, नोएडा और सूरत में कपड़ा और परिधान निर्माताओं ने इन भारी शुल्कों के कारण बिगड़ती लागत प्रतिस्पर्धा के बीच उत्पादन रोक दिया है.

संस्था ने ‘सरकारी सहायता की तत्काल आवश्यकता’ पर ज़ोर दिया है. बता दें कि भारत एशिया में सबसे ज़्यादा टैरिफ का सामना कर रहा है.

भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ 27 अगस्त से बढ़कर 50% हो गया है. एफआईईओ के अध्यक्ष एससी रल्हन ने कहा है कि इस कदम से उसके सबसे बड़े निर्यात बाजार में भारतीय वस्तुओं का प्रवाह बुरी तरह बाधित होगा.

रल्हन ने इस घटनाक्रम को एक झटका बताया है और कहा है कि इससे अमेरिका को भारत के निर्यात पर गंभीर असर पड़ सकता है.

उन्होंने कहा कि 30-35% की मूल्य निर्धारण संबंधी कमियां उन्हें चीन, वियतनाम, कंबोडिया, फिलीपींस और अन्य दक्षिण-पूर्वी तथा दक्षिण एशियाई देशों के प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कमजोर बनाती हैं.

उन्होंने कहा, ‘एफआईईओ अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने पर गंभीर चिंता व्यक्त करता है – जिससे कई निर्यात श्रेणियों पर कुल शुल्क 50% तक बढ़ जाएगा, जो 27 अगस्त, 2025 से प्रभावी हो गया.’

उन्होंने कहा कि, ‘तिरुपुर, नोएडा और सूरत के कपड़ा और परिधान निर्माताओं ने लागत प्रतिस्पर्धा में गिरावट के बीच उत्पादन रोक दिया है.’

रल्हन ने कहा कि यह क्षेत्र वियतनाम और बांग्लादेश के कम लागत वाले प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है.

एफआईईओ के बयान में कहा गया है कि, ‘समुद्री खाद्य पदार्थों, विशेषकर झींगा के लिए – चूंकि अमेरिकी बाजार भारतीय समुद्री खाद्य पदार्थों (सीफूड) के निर्यात का लगभग 40% हिस्सा लेता है, इसलिए टैरिफ वृद्धि से स्टोर की गई सामग्री के नुकसान, सप्लाई चैन में बाधा और किसानों के संकट का खतरा है.’

रल्हन ने दोहराया कि निर्यात के अन्य श्रम-प्रधान क्षेत्रों – चमड़ा, चीनी मिट्टी, रसायन, हस्तशिल्प, कालीन आदि में उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मकता में भारी गिरावट का सामना करना पड़ रहा है, मुख्य रूप से यूरोपीय, दक्षिण-पूर्वी और मैक्सिकन उत्पादकों के मुकाबले. देरी, ऑर्डर कैंसल होना और लागत लाभ घटना इन क्षेत्रों पर भारी पड़ रहा है.

वर्तमान उभरते परिदृश्य को देखते हुए एफआईईओ प्रमुख ने ‘तत्काल सरकारी सहायता का आह्वान किया है जिसमें कार्यशील पूंजी और इसके प्रवाह को बनाए रखने के लिए ब्याज अनुदान योजनाओं और निर्यात ऋण सहायता को बढ़ावा देना शामिल है.’

कम मार्जिन वाली और श्रम-प्रधान वस्तुओं, जैसे परिधान, कपड़ा, रत्न और आभूषण से लेकर समुद्री भोजन, खासकर झींगा – कालीन और फर्नीचर का निर्यात टैरिफ से अनिवार्य रूप से ऊंची कीमतों के कारण अमेरिकी बाजार में अव्यावहारिक हो सकता है. इससे भारत में कम-कुशल नौकरियों पर बुरा असर पड़ सकता है, जो पहले से ही गंभीर बेरोजगारी संकट, पिछले दो वर्षों में कुशल कर्मियों की छंटनी और सभी क्षेत्रों में स्थिर वेतन से जूझ रहा है.

विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि 2025-26 में अमेरिका को भारत के व्यापारिक निर्यात का मूल्य पिछले वर्ष की तुलना में 40-45% तक कम हो सकता है, मूल्य के हिसाब से अमेरिका को दो-तिहाई निर्यात पर 50% टैरिफ लगेगा, जिससे कुछ श्रेणियों में वास्तविक टैरिफ दरें 60% से अधिक हो जाएंगी.

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने अनुमान लगाया है कि इससे अमेरिका को उत्पाद निर्यात 2024-25 में लगभग 87 बिलियन डॉलर से घटकर इस वर्ष 49.6 बिलियन डॉलर रह सकता है.

द वायर ने पहले ही अनुमान लगाया था कि नई योजना के तहत बुने हुए और सिले हुए (knitted and woven) दोनों प्रकार के कपड़ों पर सबसे अधिक टैरिफ दर लागू होगी, तथा अन्य वस्त्र भी बुरी तरह प्रभावित होंगे.

कर विशेषज्ञ वेद जैन ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘तीन देशों के बीच लड़ाई में किसी तीसरे देश पर किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए दबाव डालना कैसे उचित है, जहां एक देश केवल वार्ताकार है?’

अन्य वरिष्ठ राजनयिकों ने मोदी सरकार, खासकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर के ट्रंप के दूसरे अवतार, जिसके कारण सरकार उच्च टैरिफ के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी, के व्यवहार को लेकर सवाल उठाए हैं. विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव विवेक काटजू ने कहा है कि भारत को जवाब चाहिए.