सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली की नियुक्ति विवादों में क्यों है?

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली की नियुक्ति को लेकर पांच सदस्यीय कॉलेजियम की एक सदस्य जस्टिस बीवी नागरत्ना सहमत नहीं थीं. उन्होंने चेताया था कि इस नियुक्ति से कॉलेजियम की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं. उन्होंने जस्टिस पंचोली के अलावा शीर्ष अदालत में पहले से गुजरात के दो जजों के होने की बात भी कही थी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (29 अगस्त) को पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली और मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आलोक अराधे की जज के तौर पर नियुक्ति हुई. ये नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के हस्ताक्षर के बाद की गईं. लेकिन जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली की नियुक्ति को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच सदस्यों वाली कॉलेजियम की एक सदस्य जस्टिस बीवी नागरत्ना इस फैसले से सहमत नहीं थीं और उन्होंने असहमति का नोट दिया था. हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना के इस असहमति नोट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है. इसलिए जो भी जानकारी सामने आ रही है वह मीडिया और सूत्रों के माध्यम से ही है.

अखबार के अनुसार, जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमति नोट में कहा है कि जस्टिस पंचोली वरिष्ठता क्रम में काफी नीचे हैं. वे मौजूदा जजों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में 57वें नंबर पर हैं, और उनकी सिफारिश करते वक्त कई प्रतिभाशाली और वरिष्ठ जजों को नजरअंदाज किया गया.

इसके अलावा वे गुजरात हाईकोर्ट से हैं और सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही गुजरात के दो जज हैं. तीसरा जज लाने से क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ेगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में कई राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है.

जस्टिस नागरत्ना ने जस्टिस पंचोली के गुजरात हाईकोर्ट से पटना हाईकोर्ट में हुए जुलाई 2023 ट्रांसफर के दौरान बनी थोड़ी विवादास्पद स्थिति का हवाला भी दिया.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ऐसी नियुक्ति न्याय प्रशासन पर विपरीत असर डालेगी और कॉलेजियम सिस्टम की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में होगी.

मालूम हो कि इससे पहले मई के महीने में भी जस्टिस नागरत्ना ने जस्टिस पंचोली की नियुक्ति पर अपनी आपत्ति जताई थी. तब कॉलेजियम ने उनकी जगह गुजरात हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस एनवी अंजारिया को सुप्रीम कोर्ट के लिए चुना था.

जस्टिस नागरत्ना ने अपने नोट में इस बात पर हैरानी जताई है कि तीन महीने के भीतर ही जस्टिस पंचोली का नाम फिर से कैसे सामने आ गया. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी नियुक्ति से कॉलेजियम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं.

उनके नोट में यह भी उल्लेख किया गया कि यदि जस्टिस पंचोली की नियुक्ति होती है, तो वे अक्टूबर 2031 से मई 2033 तक चीफ जस्टिस के रूप में कार्यरत हो सकते हैं, जो उनके अनुसार संस्थान के हित में नहीं होगा.

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त करने की सिफारिश करने वाले 5 जजों के कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस जेके महेश्वरी और बीवी नागरत्ना शामिल हैं.

कॉलेजियम की सिफारिश पर सवाल उठे

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कॉलेजियम की सिफारिश पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पदोन्नति में तीन महिला जजों की अनदेखी की गई है.

उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कई पोस्ट लिखे और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से भी सवाल किया कि क्यों जस्टिस विपुल पंचोली से सीनियर कम से कम तीन महिला जजों को इस नियुक्ति में नज़रअंदाज किया गया.

उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘जस्टिस विपुल पंचोली से सीनियर कई जज हैं जिनमें कम से कम तीन महिला जज हैं- गुजरात हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल, बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस लिसा गिल.’

उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि साल 2021 में जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस बेला त्रिवेदी की नियुक्तियों के बाद एक भी महिला जज की नियुक्ति नहीं हुई, जबकि इस दौरान चार चीफ जस्टिस के अधीन सुप्रीम कोर्ट में 28 न्यायिक नियुक्तियां की गईं.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा समय में सिर्फ बीवी नागरत्ना ही एकमात्र महिला जज हैं.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा समय में सिर्फ बीवी नागरत्ना ही एकमात्र महिला जज हैं.

गौरतलब है कि भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले की व्यवस्था कॉलेजियम प्रणाली द्वारा ही की जाती है, जो लंबे समय से बहस का विषय रही है. इसकी पारदर्शिता और विश्वसनीयता लगातार सवालों के घेरे में रही है. साथ ही भाई-भतीजावाद के आरोपों को लेकर भी ये सिस्टम विवादों में रहा है.