मराठा आरक्षण: अनिश्चितकालीन अनशन पर जरांगे-पाटिल, सीएम बोले- लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए

मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे-पाटिल ने 29 अगस्त को मुंबई के आज़ाद मैदान में अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की है. साथ ही आरक्षण की मांग पूरी न होने तक मुंबई न छोड़ने की कसम खाई. वहीं, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ओबीसी कोटे में मराठों के लिए 10% कोटा की मांग को ‘अतार्किक’ बताया.

मुंबई: मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे-पाटिल ने शुक्रवार (29 अगस्त) को दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान में अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी और दूसरे दिन भी जारी रहा. उन्होंने महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनके समुदाय के लिए आरक्षण की मांग पूरी न होने तक मुंबई न छोड़ने की कसम खाई है.

43 वर्षीय कार्यकर्ता, जो पहले भी इसी मांग को लेकर कई बार भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं, ने कहा कि यह उनका अंतिम आह्वान है और भले ही वह ‘मर जाएं’ या ‘गोली मार दी जाएं’, लेकिन इस बार वह तब तक नहीं हटेंगे जब तक मांगें पूरी नहीं हो जातीं.

मराठा समुदाय के लोग 29 अगस्त की सुबह मुंबई में उमड़ पड़े. कई समर्थक, खासकर युवा – विभिन्न जिलों से मुंबई के आजाद मैदान में पहुंचे, जो विरोध प्रदर्शन के लिए निर्धारित स्थान है. राज्य सरकार, जिसने पहले विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी थी, ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार को सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक ही मुंबई में विरोध प्रदर्शन की अनुमति दी.

हालांकि, प्रदर्शनकारी समुदाय ने पीछे हटने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके नेता अपनी भूख हड़ताल पर अड़े रहे.

ज्ञात हो कि जरांगे-पाटिल राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के अंतर्गत अपने समुदाय के लिए 10% आरक्षण की मांग कर रहे हैं. मराठा समुदाय, अपने राजनीतिक प्रभुत्व के साथ-साथ, संख्यात्मक रूप से भी एक बड़ा समुदाय माना जाता है और कई राज्य-गठित आयोगों और शोधों के अनुसार, इस समुदाय की जनसंख्या राज्य की जनसंख्या का लगभग 30% है. चूंकि गणना वैज्ञानिक तरीके से नहीं की जाती है, इसलिए कई लोगों ने इस संख्या पर भी सवाल उठाए हैं.

ओबीसी समुदायों के लिए मौजूदा 27% कोटे में 350 से ज़्यादा बड़े और छोटे समुदाय अपने हिस्से के लिए संघर्ष कर रहे हैं. संख्यात्मक और सामाजिक रूप से प्रभावशाली कुछ समुदायों को छोड़कर कई समुदाय अभी भी सरकारी नौकरियों के लिए पर्याप्त शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

उधर, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ओबीसी कोटे में मराठों के लिए 10% कोटा की मांग को ‘अतार्किक’ बताया है.

मुंबई में जरांगे-पाटिल के विरोध प्रदर्शन के बाद उन्होंने कहा, ‘यह समझना होगा कि राज्य में 350 से ज़्यादा ओबीसी समुदाय हैं. मराठा समुदाय को शामिल करते हुए हम उनके साथ अन्याय नहीं कर सकते.

जरांगे-पाटिल ने 27 अगस्त को मुंबई से 400 किलोमीटर दूर जालना ज़िले के अंतरवाली सरती गांव से विरोध प्रदर्शन शुरू किया. विरोध प्रदर्शन का आह्वान गणेश चतुर्थी समारोह के समय हुआ, जो राज्य का एक महत्वपूर्ण त्योहार है और जो अपने आप में राज्य पुलिस के लिए कानून-व्यवस्था की एक बड़ी चुनौती है.

राज्य सरकार ने दावा किया कि विरोध प्रदर्शन को राज्य की राजधानी तक लाने का उनका फैसला, सरकार को मांगों के आगे झुकाने की एक रणनीति है.

पिछली बार जब जरांगे-पाटिल ने मुंबई में प्रदर्शन करने की कोशिश की थी, तो उन्हें कई किलोमीटर दूर नवी मुंबई के वाशी में ही रोक दिया गया था. इस बार उनकी दृढ़ता और समुदाय में पनपते गुस्से को देखते हुए फडणवीस सावधानी से कदम उठा रहे हैं.

फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार के दरवाजे बातचीत के लिए खुले हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि जरांगे पाटिल को ‘लक्ष्मण रेखा’ पार नहीं करनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार (मराठा) समुदाय के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन हम उस दबाव के आगे नहीं झुक सकते जिससे ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय हो.’

अतीत में जब जरांगे-पाटिल ने मराठा आरक्षण की मांग उठाई थी, तो महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने उन पर राजनीति से प्रेरित होने और समुदाय के सामाजिक हितों को ध्यान में न रखने का आरोप लगाया था.

दिलचस्प बात यह है कि जब त्रि-दलीय महायुति सरकार में मराठा समुदाय के नेताओं के नेतृत्व वाली दो पार्टियां शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) हैं, तब भी जरांगे पाटिल ने केवल ब्राह्मण समुदाय से आने वाले फडणवीस पर ही निशाना साधा है.

इससे पहले जरांगे-पाटिल और कई प्रदर्शनकारी मराठा युवकों को पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है और कुछ आंदोलनों के दौरान पुलिस ने हिंसा का भी सहारा लिया था. जरांगे पाटिल ने ‘गृह’ विभाग संभाल रहे फडणवीस पर हिंसक पुलिस कार्रवाई के पीछे होने का आरोप लगाया था.

फडणवीस ने बिना नाम लिए विपक्षी नेताओं उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर इस आंदोलन के पीछे होने का आरोप लगाया है.
ठाकरे ने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, ‘वे आतंकवादी नहीं हैं. वे अपने जायज़ अधिकारों के लिए मुंबई आए हैं, अराजकता फैलाने नहीं. अगर मराठा लोग मुंबई में विरोध प्रदर्शन नहीं करेंगे, तो फिर सूरत या गुवाहाटी में कहां करेंगे? मुंबई मराठा लोगों की राजधानी है.’

हालांकि, ठाकरे ने समुदाय के लिए आरक्षण पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘इसका जवाब फडणवीस और (एकनाथ) शिंदे को देना है… जिन्होंने वास्तव में ऐसे वादे किए और समुदाय को धोखा दिया.’

मराठा आरक्षण का मांग लंबे समय से चल रहा है

ज्ञात हो कि महाराष्ट्र विधानसभा ने फरवरी 2024 में विरोध प्रदर्शनों के बीच शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया था. तब मराठा समुदाय के नेताओं ने तर्क दिया था कि विधेयक एक चुनावी चाल है और अदालतों में क़ानूनी जांच में नहीं टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इसे ठीक से तैयार नहीं किया गया है.

20 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा ने तीसरी बार राज्य द्वारा आरक्षण विधेयक पेश किया गया था. इससे पहले दो प्रयासों को अदालतों ने कानूनी रूप से अनुचित बताकर खारिज कर दिया था.

हालांकि, इस आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे विपक्षी नेता और मराठा नेता दोनों ही नए विधेयक से सहमत नहीं थे. तब मनोज जरांगे ने कहा था कि मराठा समुदाय को एक अलग आरक्षित वर्ग के रूप में जोड़ने के बजाय ओबीसी समुदाय में शामिल किया जाना चाहिए था.

मई 2021 में शीर्ष अदालत ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि यह 50% कोटा सीमा का उल्लंघन करता था. अदालत ने अपने 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की गई थी.

अदालत ने आगे कहा था कि उसे मराठा समुदाय को कोटा लाभ देने के लिए 50% की सीमा को तोड़ने के लिए कोई ‘असाधारण परिस्थितियां’ या ‘असाधारण स्थिति’ नहीं मिली.