मराठा आरक्षण आंदोलन: मुंबई पुलिस ने मनोज जरांगे को नोटिस देते हुए आज़ाद मैदान खाली करने को कहा

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान में मनोज जरांगे-पाटिल की भूख हड़ताल मंगलवार को पांचवें दिन में प्रवेश कर गई. इस बीच मुंबई पुलिस एक नोटिस जारी कर आज़ाद मैदान को खाली करने को कहा है. सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मनोज और उनके समर्थकों को मंगलवार तक सभी सड़कें खाली करने और मुंबई में सामान्य स्थिति बहाल करने का आदेश दिया था.

नई दिल्ली: मुंबई पुलिस ने मंगलवार (2 सितंबर) को मराठा अधिकार कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल और उनकी टीम को एक नोटिस जारी कर मुंबई के आज़ाद मैदान को खाली करने को कहा, जहां वे मराठा आरक्षण की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल कर रहे हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने बताया कि चूंकि मराठा आरक्षण प्रदर्शनकारियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार पुलिस द्वारा आंदोलन-पूर्व निर्धारित शर्तों का उल्लंघन किया है, इसलिए आज़ाद मैदान पुलिस ने जरांगे और उनकी मुख्य टीम को नोटिस जारी किया.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार (1 सितंबर) को मनोज जरांगे-पाटिल और उनके समर्थकों को मंगलवार तक सभी सड़कें खाली करने और मुंबई में सामान्य स्थिति बहाल करने का आदेश दिया था.

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान में जरांगे की भूख हड़ताल मंगलवार को पांचवें दिन में प्रवेश कर गई. जरांगे-पाटिल 29 अगस्त से आज़ाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं, जिसे वे अपनी ‘आखिरी’ भूख हड़ताल बता रहे हैं. वे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए 10% आरक्षण की मांग कर रहे हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जरांगे के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन ने शहर को ठप कर दिया है. उनके प्रदर्शन के कारण जनता को हुई असुविधा को देखते हुए अदालत ने गणेश उत्सव की छुट्टियों के बीच विशेष सुनवाई की थी.

ज्ञात हो कि 29 अगस्त की सुबह मराठा समुदाय के हज़ारों लोग मुंबई पहुंच गए थे, उनके कई समर्थक, खासकर युवा, महाराष्ट्र के विभिन्न ज़िलों से आए थे. राज्य सरकार, जिसने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, ने शुक्रवार को सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक ही मुंबई में विरोध प्रदर्शन की अनुमति दी थी.

हालांकि, पीठ ने पाया कि प्रदर्शनकारी निर्धारित विरोध स्थल आजाद मैदान से आगे बढ़ गए हैं और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, चर्चगेट स्टेशन, मरीन ड्राइव और यहां तक ​​कि हाईकोर्ट भवन के बाहर भी एकत्र हो रहे हैं, प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर रहे हैं और न्यायाधीशों और वकीलों की आवाजाही में बाधा डाल रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए लगाई गई शर्तों का उल्लंघन किया गया और पुलिस को दिए गए जरांगे के आश्वासन का सम्मान नहीं किया गया.

ज्ञात हो कि जरांगे-पाटिल राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के अंतर्गत अपने समुदाय के लिए 10% आरक्षण की मांग कर रहे हैं. मराठा समुदाय, अपने राजनीतिक प्रभुत्व के साथ-साथ, संख्यात्मक रूप से भी एक बड़ा समुदाय माना जाता है और कई राज्य-गठित आयोगों और शोधों के अनुसार, इस समुदाय की जनसंख्या राज्य की जनसंख्या का लगभग 30% है. चूंकि गणना वैज्ञानिक तरीके से नहीं की जाती है, इसलिए कई लोगों ने इस संख्या पर भी सवाल उठाए हैं.

ओबीसी समुदायों के लिए मौजूदा 27% कोटे में 350 से ज़्यादा बड़े और छोटे समुदाय अपने हिस्से के लिए संघर्ष कर रहे हैं. संख्यात्मक और सामाजिक रूप से प्रभावशाली कुछ समुदायों को छोड़कर कई समुदाय अभी भी सरकारी नौकरियों के लिए पर्याप्त शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

ज्ञात हो कि महाराष्ट्र विधानसभा ने फरवरी 2024 में विरोध प्रदर्शनों के बीच शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया था. तब मराठा समुदाय के नेताओं ने तर्क दिया था कि विधेयक एक चुनावी चाल है और अदालतों में क़ानूनी जांच में नहीं टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इसे ठीक से तैयार नहीं किया गया है.
20 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा ने तीसरी बार राज्य द्वारा आरक्षण विधेयक पेश किया गया था. इससे पहले दो प्रयासों को अदालतों ने कानूनी रूप से अनुचित बताकर खारिज कर दिया था.

हालांकि, इस आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे विपक्षी नेता और मराठा नेता दोनों ही नए विधेयक से सहमत नहीं थे. तब मनोज जरांगे ने कहा था कि मराठा समुदाय को एक अलग आरक्षित वर्ग के रूप में जोड़ने के बजाय ओबीसी समुदाय में शामिल किया जाना चाहिए था.

मई 2021 में शीर्ष अदालत ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि यह 50% कोटा सीमा का उल्लंघन करता था. अदालत ने अपने 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की गई थी.

अदालत ने आगे कहा था कि उसे मराठा समुदाय को कोटा लाभ देने के लिए 50% की सीमा को तोड़ने के लिए कोई ‘असाधारण परिस्थितियां’ या ‘असाधारण स्थिति’ नहीं मिली.