सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी और हिरासत में मौतों का स्वतः संज्ञान लिया

सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह एक मीडिया रिपोर्ट, जिसमें पिछले आठ महीनों में हिरासत में मौतों की ज्यारह घटनाओं को उजागर किया गया था, पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका शुरू की है. इस ख़बर में हिरासत में मौतों के मुद्दे को पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी से जोड़ा गया था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह गुरुवार (4 सितंबर) को एक अखबार की रिपोर्ट, जिसमें पिछले आठ महीनों में हिरासत में मौतों की ग्यारह घटनाओं को उजागर किया गया था, के बाद स्वत:संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका (पीआईएल) शुरू की.

उक्त खबर में इस मुद्दे को पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी से जोड़ा गया था.

शीर्ष अदालत के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामला दर्ज करने के लिए हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक रिपोर्ट का संज्ञान लिया.

‘पुलिस थानों में काम करने वाले सीसीटीवी की कमी’ शीर्षक से जनहित याचिका शुरू करने के अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘दैनिक भास्कर की खबर के आधार पर हम स्वत:संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका दायर करने का निर्देश दे रहे हैं… क्योंकि यह बताया गया है कि वर्ष 2025 में पुलिस हिरासत में पिछले 7-8 महीनों में 11 मौतें हुई हैं.’

यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 2020 के उस फैसले पर पुनर्विचार करता है जिसमें जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने देश भर के प्रत्येक थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था.

उस व्यापक फैसले में केंद्र सरकार को केंद्रीय जांच ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय सहित सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों के कार्यालयों में निगरानी प्रणाली स्थापित करने का भी निर्देश दिया गया था, जहां पूछताछ की जाती है. 2020 के फैसले में कहा गया था कि सभी सीसीटीवी सिस्टम ‘नाइट विज़न से लैस होने चाहिए और उनमें ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी शामिल होना चाहिए.’

इसने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर इन सिस्टम के लिए निर्बाध बिजली और इंटरनेट उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी भी डाली. इस फैसले का एक प्रमुख प्रावधान यह सुनिश्चित करना था कि कथित हिरासत में हिंसा के मामलों में मानवाधिकार न्यायालय सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने के लिए उसे साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने के लिए बुला सकें.

हालांकि, फैसले और उसके प्रावधानों को लागू करना एक चुनौती बना हुआ है. कानूनी न्यूज़ वेबसाइट बार एंड बेंच ने इस घटनाक्रम पर अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पुलिस विभाग अक्सर सबूत पेश करने के लिए कहे जाने पर फुटेज गायब होने या सीसीटीवी कैमरों के खराब होने का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ लेते हैं.

नई जनहित याचिका से यह अपेक्षा है कि वह राज्य और केंद्रीय प्राधिकारियों द्वारा अनुपालन के स्तर की जांच करेगी तथा उन्हें न्यायालय के पांच वर्ष पुराने आदेश का पालन करने के लिए बाध्य करेगी.