साहित्य अकादेमी सचिव पर यौन उत्पीड़न के आरोप, पीड़िता को नौकरी से निकाला; हाईकोर्ट ने कहा- बदले की कार्रवाई

साहित्य अकादेमी ने यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिला कर्मचारी का साथ देने के बजाय उन्हें नौकरी से निकाल दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बर्ख़ास्तगी को अवैध और बदले की कार्रवाई मानते हुए, महिला को उनके पद पर फिर से नियुक्त कर दिया है. साथ ही आदेश दिया है कि आरोपी सचिव के ख़िलाफ़ जांच लोकल कंप्लेंट्स कमेटी करेगी.

नई दिल्ली: जब 2018 में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव पर उनकी महिला सहकर्मी के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा और महिला ने शिकायत लोकल कंप्लेंट्स कमेटी (एलसीसी) में की, तो अकादेमी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और कारण बताया काम में ‘खराब प्रदर्शन’ को.

अब दिल्ली हाईकोर्ट ने अकादेमी के इस कदम को न केवल अनुचित और अवैध बताया है, बल्कि ‘बदले की कार्रवाई’ माना है. 28 अगस्त, 2025 को सुनाए फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अकादेमी और सचिव दोनों की दलीलों को पूरी तरह खारिज करते हुए महिला को उनके पद पर दोबारा बहाल कर दिया है.

उल्लेखनीय है कि, अदालत ने आदेश से अकादेमी और सचिव का नाम हटाने (गोपनीय रखने) का निर्देश दिया है, लेकिन उन पर रिपोर्टिंग करने पर कोई रोक नहीं लगाई है.

कोर्ट में एलसीसी के अधिकारक्षेत्र पर सवाल उठाते हुए साहित्य अकादेमी ने मामले की जांच का विरोध किया था. अकादेमी चाहती थी कि मामला उसकी इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (आईसीसी) देखे. लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि एलसीसी को इस जांच का अधिकार है, आईसीसी को नहीं.

ज्ञात हो कि एलसीसी का गठन सेक्शुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) एक्ट, 2013 (पॉश एक्ट) के तहत होता. यह समिति ऐसे मामलों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों की सुनवाई करती है, जहां आईसीसी न हो या आरोपी ‘नियोक्ता’ हो, यानी उसने शिकायतकर्ता की नियुक्ति में प्रमुख भूमिका निभाई हो.

महिला का आरोप है कि अकादेमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक और आईसीसी के सदस्यों ने उन पर शिकायत वापस लेने का दवाब बनाया. आईसीसी की एक बैठक में उनसे यहां तक कह दिया गया कि सचिव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. ऐसे में महिला लगातार मानसिक पीड़ा और तनाव से गुजरती रही.

आश्चर्यजनक है कि इतने गंभीर मामले में लिप्त इस बड़े अधिकारी के खिलाफ जब पीड़िता संघर्ष कर रही है, सरकार अपने अधिकारी को सम्मानित कर रही है. उन्हें सत्ता के शीर्षस्थ नेताओं की अगवानी का मौका दिया जा रहा है. दुनिया भर में भारत के प्रतिनिधि के रूप में भेजा जा रहा है.

के. श्रीनिवास राव साल 2013 में साहित्य अकादेमी के सचिव नियुक्त हुए थे.
नौकरी और उत्पीड़न की शुरुआत

उत्तर पूर्व की निवासी जुगनू (बदला हुआ नाम) की फरवरी 2018 में साहित्य अकादेमी के एक बड़े पद पर नियुक्ति हुई थी. हाईकोर्ट के आदेश में उल्लिखित जुगनू की शिकायत के मुताबिक, इस पेशेवर सफर की शुरुआत में ही सचिव ने उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार बनाना शुरू कर दिया.

उनका आरोप है कि यह उत्पीड़न कई रूपों में हुआ — अनचाहा शारीरिक और यौन संपर्क, अश्लील टिप्पणियां, और यौन हमले.

वह कहती हैं कि यदि वह शारीरिक संबंध बनाने की मांगों का विरोध करतीं तो उन्हें परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती थी. पीड़िता ने अपनी क्षेत्रीय पहचान के चलते भेदभाव का भी आरोप लगाया है.

द वायर की पिछली रिपोर्ट से पता चलता है कि यौन उत्पीड़न की पहली घटना कथित रूप से 4 से 6 सितंबर 2018 के बीच हुई, जब जुगनू काम के सिलसिले में सचिव के साथ लेह गई थीं. तब महिला की हाल में शादी हुई थी. शिकायत में कहा गया है कि राव ने टिप्पणी की कि शादी के बाद वे ‘बड़ी’ हो गई हैं और उनके स्तनों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘पंपिंग-शम्पिंग हुआ है.’

14-15 सितंबर, 2018 को असम की यात्रा के दौरान, सचिव ने कार की पिछली सीट पर बैठी जुगनू के आगे बड़ी पेंटिंग (जो सचिव को उपहार में मिली थी) रखकर कथित रूप से कहा कि अगर पेंटिंग थोड़ी ऊंची होती तो वह उनके साथ ‘काफ़ी काम कर सकते थे.’

14 नवंबर, 2018 को गंगटोक यात्रा के दौरान, सचिव ने एक शाम उनके कंधे पर हाथ फेरा. जब महिला ने चिल्लाकर विरोध किया, तो सचिव का कहना था कि ‘नॉर्थ-ईस्ट की महिलाएं तो ‘कूल’ मानी जाती हैं.’

13-15 सितंबर, 2019 को रांची में सादरी भाषा सम्मेलन के दौरान, सचिव ने प्रेस क्लब की लिफ्ट में उनके मुंह में जबरन उंगली डालने की कोशिश की.

आखिरकार, 7 नवंबर, 2019 को महिला ने संस्थान के अध्यक्ष को ईमेल कर मामले की जानकारी दी और एक बाहरी स्वतंत्र कमेटी गठित करने की मांग की. लेकिन अध्यक्ष ने आईसीसी से ही जांच कराने का निर्णय लिया.

गौर करें, उन्होंने आईसीसी में शिकायत दर्ज नहीं कराई थी, लेकिन उनका कहना है कि ‘अध्यक्ष ने मेरे ईमेल को शिकायत मानकर उसे मेरी सहमति के बिना आईसीसी को भेज दिया.’

याचिकाकर्ता ने तुरंत 09 नवंबर, 2019 को उप-सचिव को पत्र लिखकर चिंता जताई, जो कार्यकारी समिति को भी भेजा गया. याचिकाकर्ता ने 09 दिसंबर, 2019 को आईसीसी को लिखा कि 5 दिसंबर, 2019 की बैठक के दौरान अध्यक्ष ने उन पर दबाव डालकर शिकायत वापस लेने के लिए कहा और स्पष्ट कर दिया कि सचिव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.

आखिरकार, 29 नवंबर, 2019 को जुगनू ने उत्पीड़न की लिखित शिकायत नई दिल्ली जिले के जिला मजिस्ट्रेट के एलसीसी में की. यह पॉश एक्ट 2013 के तहत गठित एक निकाय है.
एलसीसी ने 16 दिसंबर 2019 और 16 जनवरी 2020 के आदेशों में कहा कि मामला प्रारंभिक तौर पर सुनवाई योग्य है और माना कि ‘सचिव’ का पद पॉश अधिनियम की धारा 2(g) के तहत ‘नियोक्ता’ की परिभाषा में आता है. नतीजतन, समिति ने जुगनू को अंतरिम राहत के रूप में तीन महीने के वेतन सहित अवकाश देने की सिफारिश की.

अदालत में कैसे पहुंचा मामला?

महिला के मुताबिक, जब अकादेमी ने एलसीसी की सिफारिशों को नहीं माना तब उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया. इस बीच, अकादेमी ने एक अलग रिट याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने एलसीसी की अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी. अकादेमी का कहना था कि सचिव ‘नियोक्ता’ नहीं हैं.

उच्च न्यायालय ने 29 जनवरी, 2020 और 5 मार्च, 2021 के अंतरिम आदेशों के ज़रिये एलसीसी में लंबित जांच पर रोक लगा दी क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि आरोपी ‘नियोक्ता’ है या नहीं. एलसीसी में नियोक्ता के खिलाफ ही मामला चल सकता है.

लेकिन इस दौरान, न्यायालय ने अकादेमी को कई मौकों पर निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को वेतन दिया जाए और उसे वेतन सहित अवकाश पर माना जाए. ताकि अंतिम निर्णय आने तक याचिकाकर्ता आजीविका और आर्थिक सुरक्षा से वंचित न हो. लेकिन अकादेमी ने अदालत के निर्णय का पालन करने की बजाए, जुगनू को नौकरी से निकालने का रास्ता चुना.

हाईकोर्ट ने पहली बार 13 फरवरी, 2020 को महिला को वेतन सहित अवकाश देने का आदेश दिया था. इस फैसले के अगले ही दिन यानी 14 फरवरी, 2020 को अकादेमी ने एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी कर जुगनू की नौकरी समाप्त कर दी और 8 मई 2020 से वेतन का भुगतान भी बंद कर दिया.

हाईकोर्ट का कन्सॉलिडेटेड जजमेंट और सुप्रीम कोर्ट की एंट्री

25 अक्टूबर 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट ने जुगनू की सेवाएं समाप्त करने वाले ऑफिस मेमोरेंडम को रद्द कर दिया.

इस निर्णय के खिलाफ अकादेमी और उसके सचिव ने अपील दायर कर दी. 12 नवंबर 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट के एक डिवीजन बेंच ने पिछले निर्णय के क्रियान्वयन पर रोक (स्टे) लगा दी. ऐसे में महिला को कोर्ट से मिली राहतों (जैसे नौकरी में पुनर्नियुक्ति और वेतन का भुगतान) का रास्ता बंद हो गया.

अब जुगनू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उच्चतम न्यायालय ने 12 अप्रैल, 2022 के आदेश के तहत कहा कि महिला को 1 अप्रैल, 2022 से लेकर अपील पर अंतिम निर्णय आने तक वेतन दिया जाए.

अब उच्च अदालत को तीन बिंदुओं पर विचार करना था

अब हाईकोर्ट के सामने तीन प्रश्न थे:

(1) क्या एलसीसी को यह अधिकार है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा अकादेमी के सचिव के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर सके?

(2) क्या महिला की सेवाएं समाप्त करने वाला ऑफिस मेमोरेंडम रद्द किया जाना चाहिए?

(3) उपरोक्त दोनों सवालों के आधार पर, महिला को कौन सी राहतें दी जानी चाहिए?

अदालत का विश्लेषण

बिंदु एक:
सचिव जोर देते रहे कि वे अकादेमी के संविधान की धारा 8 के तहत कार्यकारी बोर्ड द्वारा नियुक्त हैं और अध्यक्ष के अंतर्गत काम करते हैं, इसलिए उन्हें पॉश अधिनियम की धारा 2(g) के अर्थ में ‘नियोक्ता’ नहीं माना जा सकता.

लेकिन अदालत ने कहा कि अकादेमी के संविधान की धारा 8(I) स्पष्ट रूप से सचिव को इसका ‘प्रधान कार्यकारी अधिकारी’ नियुक्त करती है. धारा 8(III)(f) के तहत, सचिव को अकादेमी की ओर से अनुबंध के क्रियान्वयन का अधिकार प्राप्त है. संसदीय स्थायी समिति ने भी सचिव को अकादेमी का प्रमुख कार्यकारी और प्रशासनिक प्रमुख माना है. अकादेमी द्वारा प्रस्तुत दलीलों में भी सचिव को संस्था का प्रशासनिक प्रभारी बताया गया है.

इस तरह सचिव ‘नियोक्ता’ एकदम माने जा सकते हैं.

इसलिए एलसीसी को सचिव के खिलाफ जांच करने का अधिकार था.

बिंदु दो:

महिला ने इन कार्यवाहियों के लंबित रहने के दौरान अपनी सेवाओं की समाप्ति को भी चुनौती दी. अकादेमी का तर्क था कि वह दो साल की अवधि के लिए प्रोबेशन पर थीं, जो 14 फरवरी, 2020 को समाप्त हो गई. चूंकि उनकी नियुक्ति अनुबंधात्मक प्रकृति की थी, अकादेमी का कहना है कि प्रोबेशनरी कर्मचारी की सेवा समाप्ति को रिट याचिका के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती.

न्यायालय ने कहा कि दुर्भावनापूर्ण कारणों से या बाहरी/अप्रासंगिक कारणों समाप्त की गई सेवा को चुनौती दी जा सकती है. याचिकाकर्ता की सेवा उस समय समाप्त हुई जब सचिव के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत लंबित थी, इससे प्रतिशोधी इरादे का संकेत मिलता है. कार्यकारी बोर्ड को किसी भी कदम को तब तक टालना चाहिए था जब तक शिकायत का निपटारा नहीं हो जाता.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त करने का तरीका भी संदेहास्पद है. समाप्ति एक तथाकथित ‘रिव्यू कमिटी’ की सिफारिशों के आधार पर की गई थी, जो अकादेमी के संविधान या सेवा उपनियमों में कहीं वर्णित नहीं है.

इस तरह यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति यौन उत्पीड़न की शिकायत को दबाने और सचिव को जांच से बचाने के लिए की गई बदले की कार्रवाई थी.

बिंदु तीन:

अदालत ने आदेश के निष्कर्ष में लिखा:

उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र, सचिव को पॉश अधिनियम की धारा 2(g) के अंतर्गत ‘नियोक्ता’ माना जाता है. इसके परिणामस्वरूप, सचिव के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत केवल एलसीसी के समक्ष ही की जा सकती है और आईसीसी को ऐसी किसी भी शिकायत को स्वीकार करने या उसकी जांच करने का अधिकार नहीं होगा. इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता की सेवाओं की समाप्ति को अवैध और दुर्भावनापूर्ण इरादे से ग्रस्त पाया गया है. …याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त करने वाला 14 फरवरी, 2020 का कार्यालय ज्ञापन रद्द किया जाता है.

साहित्य अकादेमी के रवैये पर अदालत ने टिप्पणी की है, ‘यदि अकादेमी, एक प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान के रूप में, कानून द्वारा अपेक्षित खुलापन और जिम्मेदारी के साथ कार्य करती तो वर्तमान विवाद से बचा जा सकता था. …एलसीसी की भूमिका को घुसपैठ के रूप में देखने के बजाय, अकादेमी इसे पारदर्शिता सुनिश्चित करने और अपने कर्मचारियों और जनता के बीच विश्वास बहाल करने का अवसर मान सकती थी.’

अदालत ने अकादेमी को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता का वर्तमान माह का वेतन तुरंत जारी करे और यदि कोई बकाया वेतन शेष है तो उसे आज से चार सप्ताह के भीतर क्लियर करे.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है:

याचिकाकर्ता को तब तक वेतन सहित अवकाश पर माना जाएगा जब तक एलसीसी उसे सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने संबंधी उचित अंतरिम आदेश नहीं देती.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है:

याचिकाकर्ता को तब तक वेतन सहित अवकाश पर माना जाएगा जब तक एलसीसी उसे सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने संबंधी उचित अंतरिम आदेश नहीं देती.

अदालत ने एलसीसी को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता की शिकायत का पॉश अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार शीघ्रता से निपटारा करे.

अदालत के आदेश पर अकादेमी और सचिव ने क्या कहा?

अदालत के आदेश पर अकादेमी और सचिव का पक्ष जानने के लिए द वायर हिंदी ने उनसे संपर्क किया. अकादेमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक ने ईमेल किए गए सवालों का कोई जवाब नहीं भेजा.

‘यह मामला वर्तमान में दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं और लगाए गए आरोपों पर फैसला सक्षम अदालत द्वारा अभी किया जाना बाकी है. चूंकि मामला अदालत में लंबित है, इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा और ऐसा करना माननीय अदालत की अवमानना भी माना जा सकता है.’ सचिव ने द वायर हिंदी से कहा.

केस के दौरान सचिव को सम्मानित करती रही सरकार

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से केवल पांच दिन पहले यानी 23 अगस्त, 2025 को मुख्यमंत्री सचिवालय (पटना) में आयोजित ‘हिंदी सेवी सम्मान पुरस्कार‘ समारोह में सचिव को ‘हिंदी भाषा और साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान’ के लिए बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने ‘बाबू गंगा शरण सिंह पुरस्कार’ दिया. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें सम्मान पत्र और एक लाख रुपये का चेक प्रदान किया.
इस साल मार्च में राष्ट्रपति भवन में ‘विविधता का अमृत महोत्सव’ के दूसरे संस्करण का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी द्रौपदी मुर्मू ने किया था. इस दौरान अकादेमी के बुक स्टॉल पर राष्ट्रपति की अगवानी की जिम्मेदारी सचिव ने संभली थी.
डॉ. राव कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आवभगत कर चुके हैं.
साल 2024 में ब्रिक्स लिटरेचर फोरम का आयोजन रूस के कज़ान में हुआ था. इसमें ब्रिक्स देशों के प्रमुख लेखक, कवि, दार्शनिक, कलाकार और विद्वान शामिल हुए. इस फोरम पर भारत का प्रतिनिधित्व अकादेमी के अध्यक्ष के साथ सचिव ने भी किया था.

ध्यान रहे, ये सब कुछ सरकारी कानून से गठित एलसीसी के उस प्रारंभिक आदेश के बाद हो रहा था, जिसमें सचिव के खिलाफ लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को सुनवाई के योग्य मान गया था और पीड़िता के लिए सिफारिश की गई थी. दिल्ली हाईकोर्ट भी महिला के पक्ष में अंतरिम आदेश दे चुका था.