सुप्रीम कोर्ट के दो वकीलों ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के ख़िलाफ़ अवमानना याचिका शुरू करने की अनुमति मांगी है. संजीव सान्याल ने हाल ही में कहा था कि भारतीय न्यायपालिका, स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ तक ‘विकसित राष्ट्र’ बनाने की भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी पहल विकसित भारत के लिए ‘सबसे बड़ी बाधा’ है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के दो वकीलों ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के खिलाफ अवमानना याचिका शुरू करने की अनुमति मांगी है.
मालूम हो कि संजीव सान्याल ने हाल ही में कहा था कि भारतीय न्यायपालिका, स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ तक ‘विकसित राष्ट्र’ बनाने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की महत्वाकांक्षी पहल विकसित भारत के लिए ‘सबसे बड़ी बाधा’ है.
समाचार रिपोर्ट्स के अनुसार, यह अनुरोध सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व सचिव, अधिवक्ता रोहित पांडे और एसोसिएशन के सदस्य एवं अधिवक्ता उज्ज्वल गौड़ द्वारा किया गया है.
ज्ञात हो कि न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत, निजी व्यक्तियों द्वारा न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से पहले अटॉर्नी जनरल की अनुमति लेना आवश्यक है.
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वकीलों के अनुसार सान्याल को इस बात के लिए फटकार लगानी चाहिए कि उन्होंने देश की न्यायिक व्यवस्था और कानूनी पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित भारत के लिए सबसे बड़ी बाधा बताया.’
उल्लेखनीय है कि 20 सितंबर को न्याय निर्माण 2025 सम्मेलन में बोलते हुए सान्याल ने कहा था, ‘हमारे पास विकसित भारत बनने के लिए प्रभावी रूप से 20-25 साल का समय है.’
उन्होंने आगे कहा था कि ‘न्यायिक प्रणाली और कानूनी पारिस्थितिकी तंत्र, विशेष रूप से न्यायिक प्रणाली अब मेरे विचार से विकसित भारत बनने और तेज़ी से आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है.’
खबरों के अनुसार, ‘पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य ने धीमे विवाद समाधान और अनुबंधों को समय पर लागू करने या न्याय देने में असमर्थता को प्रमुख समस्याओं के रूप में रेखांकित किया था, जो नीति निर्माताओं को नियमों को ज़रूरत से ज़्यादा संशोधित करने के लिए मजबूर करती हैं.’
अवमानना मामले में अटॉर्नी जनरल को लिखे पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने सान्याल द्वारा न्यायपालिका पर की गई कुछ अन्य टिप्पणियों, जिनमें अवकाश का ज़िक्र भी शामिल है, पर भी प्रकाश डाला.
सान्याल ने कथित तौर पर कहा था, ‘न्यायपालिका भी राज्य के किसी भी अन्य हिस्से की तरह एक सार्वजनिक सेवा है. मान लीजिए कि डॉक्टर तय करते हैं कि हम गर्मी की छुट्टियां, दशहरा की छुट्टियां, सर्दियों की छुट्टियां लेंगे और अस्पताल बंद कर देंगे… तो क्या यह स्वीकार्य होगा? अदालतों के लिए यह स्वीकार्य क्यों है?’
पत्र में उल्लेख किया गया है कि सान्याल ने ‘कानूनी पेशे की तुलना ‘स्तरीकरण की जाति व्यवस्था वाले मध्ययुगीन तरीके’ से की है, और वरिष्ठ अधिवक्ताओं, अधिवक्ताओं के अस्तित्व पर सवाल उठाया है, और यहां तक कि अदालत में मामलों पर बहस करने के लिए कानून की डिग्री की आवश्यकता पर भी सवाल उठाया है.’
पत्र में आगे कहा गया है, ‘हालांकि, लोकतंत्र में कानूनी प्रक्रियाओं की सम्मानजनक और रचनात्मक आलोचना स्वीकार्य और वांछनीय दोनों है, लेकिन उपरोक्त टिप्पणियां, विशेष रूप से न्यायपालिका को राष्ट्रीय प्रगति में ‘सबसे बड़ी बाधा’ बताना और बार को ‘मध्ययुगीन संघ’ बताकर खारिज करना, पूरी न्यायिक व्यवस्था पर एक व्यापक हमला है.’
गौरतलब है कि अपने विवादास्पद बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले सान्याल इस महीने की शुरुआत में सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक ऑनलाइन विवाद में फंस गए थे, जब उन्होंने चार्ली किर्क की हत्या के बाद अमेरिका में राजनीतिक तनाव की तुलना अमेरिकी गृहयुद्ध के पहले के समय से की थी.
इससे पहले अप्रैल में सान्याल पुणे स्थित प्रतिष्ठित गोखले राजनीति एवं अर्थशास्त्र संस्थान के कुलाधिपति पद से हटाए जाने को लेकर चर्चा में थे, क्योंकि वे संस्थान के पुनरुद्धार के लिए कोई ‘ठोस कार्ययोजना’ पेश करने में विफल रहे थे.