सीजेआई गवई पर जूता फेंकने वाले वकील ने कहा- कोई पछतावा नहीं, मैंने सही काम किया

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर ने कहा कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है. उन्होंने दावा किया कि यह कदम ईश्वर की प्रेरणा से उठाया. किशोर ने गवई पर ‘सनातन धर्म’ के अपमान का आरोप लगाया है.

नई दिल्ली: सोमवार (6 अक्टूबर) को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील ने कहा है कि उन्हें इस घटना का कोई पछतावा नहीं है और उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि उन्होंने ‘सही किया.’

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर की इस घटना की सभी दलों के नेताओं द्वारा निंदा की जा रही है.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, किशोर ने कहा, ‘कोई पछतावा नहीं, मैंने सही किया. मैंने सभी परिणामों पर विचार किया… कि मुझे जेल जाना पड़ेगा, मुझे वहां कष्ट सहना पड़ेगा… लेकिन यह ईश्वर के नाम पर था, क्योंकि ईश्वर मुझे यह सब करने के लिए प्रेरित कर रहे थे.’

इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर का लाइसेंस निलंबित करने का आदेश दिया, लेकिन अब तक उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.

कोर्ट नंबर 1 में एक मामले की सुनवाई के दौरान किशोर ने मुख्य न्यायाधीश गवई पर जूता फेंका, जिसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने उन्हें निलंबित कर दिया. बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा जारी एक आदेश में काउंसिल ने कहा कि किशोर का आचरण ‘अदालत की गरिमा के अनुरूप नहीं है’ और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार नियमों का उल्लंघन करता है.

घटना के बाद मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा था, ‘इस सब से विचलित न हों. हम विचलित नहीं हैं. ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं.’

घटना के बाद जब किशोर को अदालत कक्ष से बाहर ले जाया जा रहा था, तो वह चिल्ला रहे थे, ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे.’

किशोर ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मुख्य न्यायाधीश ने एक मामले की सुनवाई और मॉरीशस में एक भाषण के दौरान ‘सनातन धर्म का अपमान’ किया था.

किशोर कथित तौर पर मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की हालिया टिप्पणी पर नाराज़ थे.

इस जनहित याचिका में मध्य प्रदेश के खजुराहो के एक धरोहर स्थल में भगवान विष्णु की जीर्ण-शीर्ण मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग की गई थी. इस याचिका को ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ बताते हुए जस्टिस गवई ने टिप्पणी की थी, ‘जाओ और स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहो. अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हैं, तो आप प्रार्थना और ध्यान करें.’
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए किशोर ने कहा, ‘मुख्य न्यायाधीश को यह सोचना चाहिए कि जब वह इतने ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे हैं, तो उन्हें ‘माईलॉर्ड’ शब्द का अर्थ समझना चाहिए और उसकी गरिमा बनाए रखनी चाहिए. आप मॉरीशस जाकर कहते हैं कि देश बुलडोजर से नहीं चलेगा. मैं मुख्य न्यायाधीश और मेरा विरोध करने वालों से पूछता हूं: क्या योगी (आदित्यनाथ) जी द्वारा सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई गलत है? मैं आहत हूं और आगे भी रहूंगा.’

ज्ञात हो कि इस महीने की शुरुआत में मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर सर मौरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में बोलते हुए जस्टिस बीआर गवई ने दोहराया था कि भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन से निर्देशित होती है, न कि ‘बुलडोजर के शासन’ से. गवई ने अपने ही फैसले का हवाला दिया था जिसमें ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा की गई थी.

किशोर ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका अन्य समुदायों से जुड़े मामलों में अलग तरह से काम करती है. उन्होंने कहा, ‘हम देखते हैं कि जब कोई मामला दूसरे समुदायों के ख़िलाफ़ आता है, तो वही मुख्य न्यायाधीश बड़े कदम उठाते हैं… मैं एक उदाहरण देता हूं: हल्द्वानी में रेलवे की ज़मीन पर एक ख़ास समुदाय ने अतिक्रमण कर रखा है. जब अतिक्रमण हटाने की कोशिश की गई, तो सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले रोक लगा दी, जो आज भी लागू है. इसी तरह जब नूपुर शर्मा का मामला आया, तो कोर्ट ने कहा, ‘आपने माहौल बिगाड़ दिया है.’ वे ये सब करते हैं. यह बिल्कुल ठीक है.’

किशोर ने जल्लीकट्टू और दही हांडी का उदाहरण देते हुए कहा कि सनातन धर्म से जुड़े मुद्दों पर कोर्ट के रवैये से उन्हें निराशा हुई है. उन्होंने कहा, ‘जब भी हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मुद्दा आता है, तो यह सुप्रीम कोर्ट उस पर कोई न कोई आदेश जारी कर देता है. मुझे बहुत दुख है, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’