सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपने के आवेदन पर कड़ी आपत्ति जताई. इन याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ पहले से ही सुनवाई कर रही है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर को केंद्र सरकार द्वारा ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपने के आवेदन पर कड़ी आपत्ति जताई.
मालूम हो कि इन याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ पहले से ही सुनवाई कर रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई गवई और जस्टिस चंद्रन की पीठ ने कहा, ‘हमें यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि केंद्र सरकार ऐसा रुख अपना रही है. हमें इस तरह की ‘रणनीति’ केंद्र सरकार द्वारा अपनाने की उम्मीद नहीं थी.’
ज्ञात हो कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट के तहत अलग-अलग ट्रिब्यूनलों के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा शर्तें तय की जाती हैं. पीठ ने इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से अंतिम दलीलें पहले ही सुन ली हैं.
पीठ ने यह भी कहा कि इन मामलों में कार्यवाही 2021 से लंबित थी, लेकिन केंद्र सरकार ने अचानक 1 नवंबर को ही इन याचिकाओं को पांच जजों की संविधान पीठ को भेजने का आवेदन दायर कर दिया.
लाइव लॉ के अनुसार, एक दिन पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया था कि सरकार ने मामले को वर्तमान पीठ के बजाय पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष ले जाने के लिए एक आवेदन दायर किया है.
मुख्य न्यायाधीश की ‘तरकीब’ वाली टिप्पणी पर अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘बहुत सम्मान के साथ, कृपया इसे गलत न समझें.’
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा, ‘एक पक्ष को पूरी तरह सुनने के बाद आपने निजी कारणों से सुनवाई टालने का अनुरोध किया था, क्योंकि आप आकर बहस करना चाहते थे. हम केंद्र सरकार से ऐसी तरकीब अपनाने की उम्मीद नहीं करते हैं.’
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले को तभी किसी बड़ी पीठ को भेजेगी जब उसे इसमें कोई दम नज़र आएगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हम इस आवेदन को इस टिप्पणी के साथ खारिज करते हैं कि केंद्र सरकार पीठ से बचने की कोशिश कर रही है.’
शीर्ष अदालत ने सुनवाई 7 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है.
लाइव लॉ ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने पहले कहा था कि कई सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें उचित सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं.
गौरतलब है कि मद्रास बार एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने 4 नवंबर की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान आईटीएटी और कैट जैसे न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के मुद्दे की ओर आकर्षित किया और कहा कि अक्सर मेरिट सूची को भंग कर दिया जाता है और नए सिरे से चयन किया जाता है.