हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हमारा इरादा हर छोटी घटना पर क़ानून बनाने या निगरानी का नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि उसका इरादा देश में हेट स्पीच के हर मामले पर क़ानून बनाने या उसे निगरानी करने का नहीं है और परेशान लोग थाने और हाईकोर्ट जा सकते हैं. हालांकि पहले की कई सुनवाइयों के दौरान हेट स्पीच की आलोचना की है.

Supreme Court – 1

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 नवंबर) को कहा कि उसका देश में हेट स्पीच के हर मामले पर कानून बनाने या उसे निगरानी करने का कोई इरादा नहीं है और परेशान लोग पुलिस स्टेशन और हाईकोर्ट जा सकते हैं.

ये टिप्पणी जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने की, जो पत्रकार कुर्बान अली और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न राज्यों में मुस्लिम समुदाय को व्यवस्थित तरीके से अलग-थलग किए जाने के मामलों का ज़िक्र किया था.

दिलचस्प बात यह है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने हेट क्राइम (घृणा अपराध) की आलोचना की थी और कहा था कि हेट क्राइम से नागरिकों की इज्ज़त और जान की रक्षा करना सरकार का ‘कर्तव्य’ है. लेकिन मंगलवार को उसने अपनी ही पिछली बातों को गलत बताया.

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने मंगलवार को कहा, ‘हम इस याचिका की आड़ में कोई कानून नहीं बना रहे हैं. बेफिक्र रहें, हम इस देश के X, Y, Z इलाकों में होने वाली हर छोटी घटना पर कानून बनाने या उसे निगरानी करने के लिए तैयार नहीं हैं.’

पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा, ‘यह कोर्ट पूरे देश में ऐसे सभी मामलों पर कैसे नज़र रख सकता है? आप अथॉरिटीज़ से संपर्क करें. उन्हें कार्रवाई करने दें; नहीं तो हाईकोर्ट जाएं.’

इससे पहले 2022 में अपनी पिछली टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर को फिर से इस बात पर अफसोस जताया था कि 21वीं सदी में ‘हमने धर्म को किस दुखद’ स्तर तक गिरा दिया है. इसने कहा था कि ‘देश में नफ़रत का माहौल है.’

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और प्रशासन को हेट स्पीच देने वालों के ख़िलाफ़ किसी के शिकायत दर्ज करने का इंतज़ार किए बिना खुद से केस दर्ज करने का भी आदेश दिया था. इसके अलावा 2023 में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत जैसे एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर नफरत की भावना से किए जाने वाले अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है.

शीर्ष न्यायालय ने कहा था, ‘नफरती भाषण पर किसी भी तरह से भी कोई समझौता नहीं किया जा सकता.’ न्यायालय ने कहा था कि यदि सरकार नफरती भाषण की समस्या को समझेगी, तभी समाधान निकलेगा. अदालत ने यह भी कहा था कि इस तरह के किसी अपराध से अपने नागरिकों की हिफाजत करना सरकार का कर्तव्य है.

मंगलवार को याचिकार्ताओं की तरफ से वकील निज़ाम पाशा ने असम के एक मंत्री के बारे में ज़िक्र किया, जिन्होंने बिहार में भाजपा की चुनावी जीत के बाद एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा था कि ‘बिहार गोभी की खेती को मंज़ूरी देता है.’

पाशा ने आरोप लगाया कि यह 1989 के भागलपुर क़त्लेआम के बारे में था, जिसमें मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को मार दिया गया था और उनकी लाशों को फूलगोभी के खेत में दफना दिया गया था.

अदालत ने कहा, ‘आपको जिस भी राज्य से समस्या है, आप सही राहत के लिए वहां के हाईकोर्ट में जाएं.’

मालूम हो कि इस प्रतीक का संदर्भ साल 1989 के बिहार के भागलपुर दंगों से जोड़ा जाता है, जिसमें 900 से अधिक मुस्लिम मारे गए थे. भागलपुर के लोगांइन गांव में 110 मुसलमानों की हत्या कर उन्हें खेत में दफना दिया गया था. कहा जाता है कि उनकी लाशों पर गोभी के पौधे लगाए गए थे.