सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने साढ़े पांच साल में 6.15 लाख करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ किए

केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले साढ़े पांच वर्ष के दौरान कुल 6.15 लाख करोड़ रुपये का ऋण माफ़ किया है.

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने सोमवार (8 दिसंबर) को लोकसभा में बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने पिछले साढ़े पांच वर्ष के दौरान कुल 6.15 लाख करोड़ रुपये का ऋण माफ किया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान डूबे हुए ऋणों (बैड लोन) से संबंधित एक सवाल के लिखित उत्तर में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार पीएसबी ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों और चालू वित्तीय वर्ष में 30 सितंबर, 2025 तक कुल 6,15,647 करोड़ रुपये का ऋण माफ किया है.’

इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अप्रैल 2022 से सितंबर 2025 के बीच इक्विटी और बॉन्ड के माध्यम से बाजार से कुल 1.79 लाख करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई है.

अपने जवाब में राज्य मंत्री ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2022-23 से सरकार द्वारा पीएसबी में कोई पूंजी निवेश नहीं किया गया है. पीएसबी ने अपने वित्तीय प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार किया है, लाभ कमाया है और अपनी पूंजी स्थिति को मजबूत किया है.’

उन्होंने आगे कहा कि पीएसबी अब अपनी पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाजार स्रोतों और आंतरिक कमाई पर निर्भर हैं. पीएसबी ने 1.4.2022 से 30.9.2025 तक इक्विटी और बॉन्ड के माध्यम से बाजार से 1.79 लाख करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई है.

ज्ञात हो कि इस वर्ष की शुरुआत में आरबीआई ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के फंसे हुए कर्जों को लेकर मसौदा दिशानिर्देश जारी किए थे.

इन दिशानिर्देशों में बैंकों को डूबे हुए ऋणों को बिक्री योग्य प्रतिभूतियों (marketable securities) में परिवर्तित कर निवेशकों को बेचने का प्रस्ताव दिया गया था. इसका उद्देश्य बैलेंस शीट पर दबाव कम करके, एआरसी (वो वित्तीय संस्थान, जो फंसे हुए ऋण से जुड़ी प्रतिभूतियों को खरीदते हैं), आईबीसी (Insolvency and Bankruptcy Code) और एनसीएलटी जैसी मौजूदा व्यवस्थाओं के पूरक के रूप में बाजार-आधारित समाधानों को बढ़ावा देकर भारत के डूबे हुए ऋण के संकट को कम करना था.

चौधरी ने आगे कहा कि यह प्रक्रिया बैंकों के लिए आरबीआई के दिशानिर्देशों के साथ-साथ बैंकों के बोर्डों की एनपीए को बट्टे खाते में डालने की नीति का पालन करती है, जिसमें वे एनपीए भी शामिल हैं जिनके लिए चार वर्ष पूरे होने पर पूर्ण प्रावधान किया जा चुका है.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ताओं की ऋण चुकाने की देनदारी माफ नहीं होती है.’

उन्होंने यह भी जोड़ा कि बट्टे खाते में डाले गए ऋणों की वसूली एक सतत प्रक्रिया है और बैंक उधारकर्ताओं के खिलाफ उपलब्ध विभिन्न वसूली तंत्रों के तहत शुरू की गई वसूली कार्रवाइयों को जारी रखते हैं, जैसे कि दीवानी अदालतों या ऋण वसूली न्यायाधिकरणों (डीआरटी) में मुकदमा दायर करना, एसएआरएफएएसआई अधिनियम 2002 ( यह कानून बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बिना अदालत की मध्यस्थता के फंसे हुए कर्ज वसूली करने और गिरवी रखी संपत्तियों (जैसे घर, दुकान) पर कब्ज़ा करने की शक्ति देता है) के तहत कार्रवाई, दिवालियापन कानून, 2016 (किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार लेना) के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में मामले दर्ज करना आदि.

चूंकि बैड लोन के लिए प्रावधान पहले ही किया जा चुका है और इस राइट-ऑफ प्रक्रिया में कोई वास्तविक कैशफ्लो शामिल नहीं है, इसलिए बैंक की लिक्विडिटी पर कोई असर नहीं पड़ता.