भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इशारों में साफ कर चुके हैं कि अगर मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान होंगे। शाह का यह ऐलान भाजपा और शिवराज खेमे को राहत देने वाला तो है, कांग्रेस पर भी दबाव बनाने वाला है। अब चुनाव में चंद माह बचे हैं और कांग्रेस ने अब तक मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं किया है। पार्टी ने एकजुटता का संदेश देने के लिए कमलनाथ और सिंधिया को साथ लाकर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की तो है, मगर पार्टी के अंदरखाने जो चल रहा है, वह सारी पोल खोलने के लिए काफी है।
शाह द्वारा दो दिन पहले उज्जैन में दिया गया भाषण भाजपा की सुविधा बढ़ा गया और कांग्रेस को दुविधा में डाल गया। चुनाव बाद सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री कौन होगा, इसे लेकर भाजपा में जो भी शंकाएं थीं, वो अब साफ हो गई। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के चेहरे के मुद्दे पर जूझ रही कांग्रेस की दुविधा शाह के दौरे के बाद और बढ़ गई है। मतदाताओं को यह समझाने में कांग्रेस के प्रचार तंत्र को मुश्किल आना तय है कि शिवराज का विकल्प उनके पास कौन है? इधर विकल्प माने जा रहे दोनों नेताओं के समर्थक सोशल मीडिया पर पोस्टर वार में सक्रिय हैं।
शाह उज्जैन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जनआशीर्वाद यात्रा को हरी झंडी दिखाने आए थे। वहां उन्होंने साफ कर दिया कि शिवराज के नेतृत्व में ही चुनाव होगा और वे ही मुख्यमंत्री भी होंगे। शाह की इस घोषणा से जहां चौहान के आत्मबल में बढ़ोतरी हुई, वहीं पार्टी में व्याप्त संशय के बादल भी काफी हद तक छंट गए। पार्टी में एक तबका ऐसा था जो मानकर चल रहा था कि विधानसभा चुनाव के बाद मप्र में परिवर्तन होगा पर मोदी और शिवराज की जोड़ी को पांच साल के लिए मौका देने संबंधी शाह के वक्तव्य के बाद इस मामले में ज्यादा कुछ बचा नहीं। दूसरी ओर कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार हैं एक ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरे कमलनाथ। दोनों एक-दूसरे से कम नहीं बैठते। कमलनाथ जहां उम्र, अनुभव, पकड़ व गांधी परिवार से निकटता के चलते ताकतवर हैं तो सिंधिया आकर्षक छवि, प्रभावी वृकतत्व शैली व हर वर्ग में स्वीकार्यता के कारण कम नहीं बैठते। पार्टी आलाकमान पिछले साल डेढ़ साल से चेहरे की लड़ाई में कोई फैसला नहीं ले पा रहा था, जिसका फायदा अरुण यादव लेते रहे। बाद में कमलनाथ को पार्टी अध्यक्ष और सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर बीच का रास्ता खोजा गया।
कौन होगा सीएम चेहरा कांग्रेस में तय नहीं
अध्यक्ष होने के बावजूद न तो कमलनाथ को यकीं होगा कि पार्टी उन्हें अपना चेहरा मानती है और न चुनाव अभियान समिति के मुखिया के नाते सिंधिया इस भरोसे में होंगे कि उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया जाएगा। यह स्थिति भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। कांग्रेस का कहना है कि बहुमत आने की स्थिति में विधायकों की रायशुमारी और आलाकमान की मर्जी के बाद पार्टी फैसला लेगी। हालांकि इसका खामियाजा कांग्रेस गुजरात समेत कुछ राज्यों में उठा चुकी है।
सोशल मीडिया पर सीएम के लिए पोस्टर वार
एक तरफ कांग्रेस पार्टी कोई फैसला नहीं ले पा रही है, वहीं दूसरी तरफ सिंधिया और कमलनाथ के समर्थक अपने-अपने नेताओं को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए सोशल मीडिया पर जंग छेड़े हुए हैं। ट्विटर पर एक दिन कमलनाथ और दूसरे दिन सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने के लिए हुई ट्रोलिंग के बाद फेसबुक पर भी पोस्टर वार जारी है। कमलनाथ समर्थक जहां उनका प्रदेश संभालने के लिए आह्वान कर रहे हैं, वहीं सिंधिया समर्थक विकास के लिए अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम चला रहे हैं। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सरकार बनाने की खातिर पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर कांग्रेस जनों को एकता की घुट्टी पिलाने में जुटे हुए हैं।