अयोध्या मामला: स्‍वामी ने कहा, राम मंदिर में पूजा के अधिकार की अर्जी पर जल्‍द सुनवाई करें, मिला यह जवाब

नई दिल्‍ली : अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर में पूजा करने के अधिकार पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से फिर जल्द सुनवाई की मांग की, जिसपर CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि इस्माइल फारुखी केस के एक पहलू (इस्लाम में मस्ज़िद की अनिवार्यता) को संविधान पीठ को सौंपने पर हमने फैसला सुरक्षित रखा है, ये फैसला आने के बाद आप अपनी मांग रखें. दरअसल, सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि पर पूजा के अपने ‘मूल अधिकार’ को लागू करने की अपील की है. अयोध्या में भगवान राम की पूजा का हक मांगने वाली स्वामी की अर्जी पर इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था. स्वामी ने 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि पर पूजा अर्चना के लिए अर्जी दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित
दरअसल, अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 1994 के स्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं, इस मसले पर 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ में हुई सुनवाई के दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों के बीच गर्मागर्म बहस हुई थी. हिन्दू पक्ष के वकील ने पिछली सुनवाई में मुस्लिमों पक्ष के वकील राजीव धवन के हिन्दू तालिबानी शब्द का प्रयोग करने पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि कोर्ट ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाए. वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि वे अपनी बात पर क़ायम हैं. धवन ने फिर कहा था कि जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहाई थी वे हिन्दू तालिबानी थे, जैसे बमियान में मुस्लिम तालिबान ने बुद्ध की मूर्ति गिराई थी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने राजीव धवन की भाषा पर ऐतराज़ जताते हुए कहा कि ये भाषा ग़लत है और वकील कोर्ट की गरिमा और भाषा का ध्यान रखें… जिसपर राजीव धवन ने कहा था कि वे चीफ जस्टिस से सहमत नहीं है और उन्हें असहमत होने का अधिकार है, वे अपनी बात पर क़ायम हैं. कोर्ट में मौजूद वकीलों ने धवन के हिन्दू तालिबान कहने का विरोध किया.

इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग
अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट फिलहाल विचार कर रहा है कि नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डाक्टर एम. इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं. यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है. ये बात फैसले के पैराग्राफ 82 में कही गई है. मुस्लिम पक्षकार एम. सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की है.

यह है पूरा मामला
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला. टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए. जिस जगह रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया. अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला पेंडिंग है.