छत्तीसगढ़. 1 नवंबर 2000 को बना वो राज्य, जो इससे पहले तक मध्य प्रदेश का हिस्सा था. मध्य प्रदेश, जिसके कुछ जिले बुंदेलखंड में आते हैं. बुंदेलखंड, जिसके बीहड़ों में एक वक्त डकैतों का राज हुआ करता था. पान सिंह तोमर की ज़ुबान में कहें, तो डकैत नहीं, बागी. इन्हीं बागियों में एक नाम है फूलन देवी, जो अपना आपराधिक अतीत पीछे छोड़कर 1996 में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से सांसद बनीं.
आप सोचेंगे कि उत्तर प्रदेश में जन्मीं फूलन देवी की बात हम छत्तीसगढ़ से क्यों शुरू कर रहे हैं! वजह है. वजह ये है कि 1983 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कार्यकाल में सरेंडर करने वाली फूलन देवी को ग्वालियर जेल में रखा गया था. इसी जेल में पुलिस अधिकारी किरण सुजेरिया भी तैनात थे, जो वेलफेयर अधिकारी के पद पर थे. किरण छत्तीसगढ़ के कांकेर के रहने वाले हैं और इन्होंने हमें फूलन देवी के बारे में कई रोचक बातें बताईं.किरण बताते हैं कि जब फूलन ने सरेंडर किया था, तब उन्हें ज़रा भी पढ़ना-लिखना नहीं आता था. जेल में रहने के दौरान पढ़ाई-लिखाई के नाम पर वो सिर्फ दस्तखत करना सीख पाई थीं. जेल में जो वेलफेयर अधिकारी होता है, उस पर कैदियों में सुधार लाने की ज़िम्मेदारी होती है. अपनी ड्यूटी निभाते हुए किरण के सामने कई बार ऐसे मौके आए, जब उन्होंने फूलन देवी की चिट्ठियां लिखीं.
किरण बताते हैं कि फूलन को लिखना नहीं आता था, तो वो बोल-बोलकर चिट्ठियां लिखवाती थीं और आखिर में कागज पर अपने दस्तखत कर देती थीं. ऐसी ही एक चिट्ठी किरण ने आज भी संभालकर रखी हुई है, जिसमें फूलन देवी ने जेल के अधिकारी से अपने ऊपर चल रहे मामलों की जानकारी मांगी थी.बीहड़ में रहने वाले डकैत पुलिस से बचने के लिए छोटी-छोटी चीज़ों में भी बहुत सावधानी बरतते हैं. किरण बताते हैं कि इन्हीं वजहों से फूलन घोड़े की सवारी नहीं करती थीं. फूलन मानती थीं कि कभी गोलीबारी या पुलिस के पीछा करते समय अगर उनका घोड़ा हिनहिनाने लगा, तो उनकी जान जा सकती है. इसीलिए वो गांव के सरपंच वगैरह से कहकर ट्रैक्टर या जीप का इस्तेमाल करती थीं.
फूलन समेत ग्वालियर जेल में बंद दूसरे डकैतों के बारे में किरण एक रोचक बात बताते हैं. वो कहते हैं कि सरेंडर के बाद जेल में रहने के दौरान इन लोगों के बर्ताव में काफी बदलाव आया था. खासकर फूलन में, क्योंकि उनसे मिलने कई VIP लोग और फिल्म इंडस्ट्री के लोग आया करते थे. ऐसे में जहां पहले वो बेहद अक्खड़ तरीके से बात करती थीं, वहीं बाद में उन्होंने नमस्ते करना वगैरह सीख लिया था और ढंग से बात करने लगी थीं.किरण बताते हैं कि ग्वालियर जेल में फूलन के साथ-साथ कुसुमा नाइन, डाकू पूजा, बब्बा और मलखान सिंह जैसे लोग भी सज़ा काट रहे थे, लेकिन सबसे ज़्यादा लोग फूलन से ही मिलने आते थे. इनमें से कई विदेशी होते थे, जो तमाम महंगे गिफ्ट्स के साथ फूलन से मिलते थे. इस लिस्ट में ब्रिटिश लेखक रॉय मैक्सहैम, ‘इंडियाज़ बैंडिट क्वीन’ की राइटर माला सेन, राजेश खन्ना और उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया का नाम है.
एक बार कुसुमा नाइन ने जेल प्रशासन पर सवाल उठाया था कि फूलन को जेल में ज़्यादा सुविधा दी जा रही है, जबकि ऐसा था नहीं. किरण ग्वालियर जेल में 1985 से 1989 तक रहे. वो बताते हैं कि फूलन ने जेल प्रशासन से कभी कोई सुविधा नहीं मांगी थी और वो 10 बाई 10 के कमरे में रहती थीं. फूलन की मां अक्सर उनसे मिलने आती थीं और कई बार पैसे लेकर भी जाती हैं.किरण ऐसी ही एक रोचक किस्सा बताते हैं कि एक बार फूलन की मां उनसे 100 रुपए लेकर गईं. जब वो दोबारा आईं, तो उन्होंने फिर पैसे मांगे. इस पर फूलन उनसे पूछने लगीं कि आखिर उन्होंने 100 रुपए कितनी लापरवाही से खर्च कर दिए. इस बात पर दोनों में जमकर बहस हुई थी. वो तंगी के दिन थे. बाद में सांसद बनने पर फूलन के ऐसे हालात नहीं रहे. फूलन देवी की 25 जुलाई 2001 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.फूलन के बारे में ये बातें बताने वाले किरण को कैदियों के सुधार के लिए अच्छा काम करने के लिए 2003 में राष्ट्रपति के हाथों करेक्शनल सर्विस मेडल मिला था. अब वो नौकरी से रिटायर हो चुके हैं और छत्तीसगढ़ में रहते हैं.