नयी दिल्ली : सरकार ने मंदिर, मस्जिद दरगाहों, गुरूद्वारा, चर्च, बौद्ध मठों, धार्मिक आश्रमों जैसी धर्मार्थ संस्थाओं के वित्तीय बोझ को कम करने के उद्देश्य से ‘सेवा भोज योजना’ नामक योजना शुरु की है और दो वर्षो के लिये 325 करोड़ रुपये का कुल बजट परिव्यय प्रस्तावित किया है ।
संस्कृति मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए इस योजना का प्रस्तावित कुल बजट परिव्यय क्रमश: 150 करोड़ रूपये और 175 करोड़ रूपये है।
इस योजना के तहत मंदिर, मस्जिद दरगाहों, गुरूद्वारा, चर्च, बौद्ध मठों, धार्मिक आश्रमों, मठों जैसे धर्मार्थ संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कच्ची खाद्य सामग्रियों की खरीद पर भुगतान किये गए केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर :सीजीएसटी: और केंद्र सरकार की एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर :आईजीएसटी: की हिस्सेदारी की प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा उन्हें वित्तीय सहायता के रूप में की जायेगी ।
इस योजना में शामिल विशिष्ट कच्ची सामग्रियों में घी, खाद्य तेल, चीनी, बूरा, गुड़, चावल, आटा, मैदा, रवा, सूजी और दलहन शामिल हैं। यह योजना ऐसी धर्मार्थ धार्मिक संस्थाओं पर लागू होती है जिनके द्वारा कम से कम पिछले 3 वर्षो से एक कैलेंडर माह में कम से कम 5000 व्यक्तियों को प्रसाद, लंगर, भंडारा के रूप में मुफ्त भोजन वितरित किया जा रहा हो ।
योजना के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि इसके तहत वित्तीय सहायता के लिये आवेदन करने वाले धर्मार्थ धार्मिक संस्थानों को अन्य जरूरी दस्तावेजों के साथ साथ जिला मजिस्ट्रेट का प्रमाणपत्र देना अपेक्षित है। इसमें यह स्पष्ट किया गया हो कि यह संस्थान पिछले 3 वर्षो में दैनिक या मासिक आधार पर धर्मार्थ कार्यकलापों में शामिल हो तथा मुफ्त भोजन वितरण कर रहा हो ।
इसके अलावा उनके लिये सनदी लेखाकार का प्रमाणपत्र भी देना होगा जिसमें यह प्रमाणित किया गया हो कि दावा की गई अवधि में निर्धारित मात्रा में सामग्रियों के उस मूल्य पर सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी का भुगतान किया गया है। यह भी स्पष्ट हो कि मुफ्त भोजन वितरित करने के लिये केवल निर्धारित कच्चे खाद्य पदार्थो का प्रयोग किया जा रहा हो ।