सौगातों के सहारे शिव ‘राज’
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा और कांग्रेस के जनता के बीच जाकर अपनी बात कहने के प्रयास तेज हो गए हैं। इसी सिलसिले में अपनी सरकार की उपलब्धियों पर जनता से सीधी बात करने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जन आशीर्वाद यात्रा पर हैं। कांग्रेस भी उनके पीछे-पीछे पोल-खोल अभियान चला रही है। ताकि सरकार के वादों और दावों की हकीकत को जनता के सामने रखा जा सके। शिवराज ने हाल ही में हर वर्ग के लिए सौगातों की बौछार लगा दी। मानसूनी बौछार में हर एक भीगा है। किसान से लेकर कर्मचारी तक, सबके लिए शिवराज सरकार ने कुछ न कुछ घोषित किया है। ऐसे में कांग्रेस के कर्ता-धर्ताओं को भी भाजपा के वादों को झुठलाने में दिक्कत हो रही है। लोग दिग्विजय सिंह के दस साल बनाम भाजपा के 15 साल की तुलना कर रहे हैं। कई मायनों में तो भाजपा सरकार को ज्यादा मार्क दे रहे हैं।
लेखक मनीष द्विवेदी मंगल भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
भोपाल (डीएनएन)। मंत्रियों की खराब परफार्मेंस, विधायकों की निष्क्रियता, अफसरों की नाफरमानी, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, भाजपा नेताओं का अत्याचार, सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी-इन्कम्बेंसी और विपक्ष की एकता के बाद माना जा रहा था कि अबकी बार भाजपा का राज खत्म हो जाएगा। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सौगातों का ऐसा मास्टर स्ट्रोक मारा है कि जनता एक बार फिर उनकी मुरीद हो गई है। क्या बाबू, क्या बाबा, क्या किसान, क्या मजदूर, क्या पेंशनर्स, क्या संविदाकर्मी, क्या शिक्षक, क्या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका, क्या आदिवासी, क्या भूमिहीन, क्या छात्र… सभी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने करीब 40,000 करोड़ रुपए की सौगातों की बौछार करके खुश कर दिया है। साथ ही 15 साल बाद सत्ता में वापसी की राह ताक रही कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शिवराज के इस दांव को कैसे फेल किया जाए।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में चुनावी समर की जीत के लिए भाजपा व कांग्रेस ने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी है। एक तरफ भाजपा चौथी बार सत्ता में वापसी की कवायद कर रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के लगातार उपचुनावों में मिली जीत से हौसले बढ़े हुए हैं। यही कारण है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए 18 लाख कार्यकर्ताओं की फौज को मैदान में उतारा है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते तीन महीने से लगातार घोषणाओं की बौछार कर वोटरों को कमल के निशान पर बटन दबाने की सलाह देते नजर आ रहे हैं और अब जन आशीर्वाद यात्रा में भी वहीं क्रम जारी है। इन घोषणाओं पर विपक्ष ने निशाना साधते हुए कहा कि लोगों को जन्म से लेकर शमशान तक की अफवाही योजनाओं के दम पर ही शिवराज की छाती 56 इंच की हो रही है। इसका जवाब आने वाले चुनाव में जनता जरूर देगी।
21 लाख के अंतर को पाटने सौगातों का पिटारा
लगातार 15 साल सत्ता में रहने के कारण किसी भी सरकार के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी होना लाजमी है। उस पर कांग्रेस की सक्रियता और मुख्य विपक्षी पार्टियों की एकजुटता को देखते हुए भाजपा के लिए इस बार चुनौती कठिन है। बताया जाता है कि इस चुनौती से पार पाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के रणनीतिकारों ने काफी जोड़-घटाव, गुणा-भाग किया है और सौगातों का पिटारा खोला है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि विधानसभा चुनाव से पूर्व जिस तरह के राजनीतिक हालात नजर आ रहे हैं, उसके अनुसार, कांग्रेस के पक्ष में करीब 1,73,10,369 (2013 में कांग्रेस 1,23,14,196, बसपा 21,27,959, निर्दलीय 18,20,224, नोटा 6,43,144 और सपा 4,04846 को मिले वोट) वोट जा सकते हैं। यानी 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले 1,51,89,894 वोट से 21,20,475 अधिक। इस अंतर को पाटने के लिए भाजपा रणनीति बनाकर काम रही है। उल्लेखनीय है कि 2013 में 14वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में प्रदेश में कुल 4 करोड़ 66 लाख 31 हजार 759 मतदाताओं में से 3 करोड़ 38 लाख 49 हजार 550 ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। उनका यह वोट नोटा सहित राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त 6 दलों, राज्य-स्तरीय दल 9 तथा अन्य 51 राजनैतिक दलों के अलावा 1,092 निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में गया था। संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस, बसपा और सपा के संभावित गठबंधन को देखते हुए इस बार 2013 (कुल 2583 उम्मीदवार) की अपेक्षा कम प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरेंगे। यह गणित भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, क्योंकि सरकार से नाराज मतदाता गठबंधन की ओर अपना रूख कर सकते हैं। भाजपा ने इसी गणित को आधार बनाकर मुख्यमंत्री के माध्यम से सौगातों का पिटरा खुलवा दिया है।
सरकार के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी
आरएसएस, भाजपा संगठन और विभिन्न सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो साल से सरकार के खिलाफ जनता में आक्रोश है। राज्य के चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में मिली हार ने सरकार और संगठन के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा दी। भाजपा की पड़ताल में यह बात सामने आई कि सरकार और भाजपा से किसान नाराज हैं तो संविदा कर्मचारी हड़ताल का रास्ता अपनाए हुए हैं। इतना ही नहीं, महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान और विद्यालयों के अतिथि शिक्षक सरकार के लिए नया सिरदर्द बनते जा रहे हैं। रोजगार के अवसर न बढऩे से युवा और मजदूर वर्ग में खासी नाराजगी है। लगभग एक वर्ष पहले मुख्यमंत्री शिवराज ने ऐलान किया था कि आरक्षित वर्गो के आरक्षण का लाभ कोई ‘माई का लाल नहीं छीन सकता। इसके बाद से गैर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों में असंतोष बढ़ा, जो अब तक खत्म नहीं हो पाया है। राज्य का व्यापमं घोटाला, मंदसौर में किसानों पर गोली चलाया जाना, उपज का सही दाम न मिलना, खनन माफिया, महिला अपराध, कुपोषण, रोजगार का अभाव आदि ऐसे मसले है, जिसने सरकार की छवि को प्रभावित किया है। ऐसे में कांग्रेस को आस लगी है कि वह सरकार के खिलाफ फैल रहे असंतोष को हवा देकर उसका फायदा विधानसभा चुनाव में उठा सकती है। इसके लिए कांग्रेस ने पोल खोल अभियान शुरू कर दिया है। लेकिन उससे पहले ही शिवराज ने सौगातों का पिटारा खोल कर असंतुष्टों को मनाने की कवायद शुरू कर दी। जानकार बताते हैं कि अब असंतुष्ट वर्ग शिवराज सिंह चौहान के 13 साल और दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासनकाल की तुलना करने लगे हैं। ऐसे में सरकार के माथे पर लगे धब्बों को धोने का प्रयास शिवराज ने शुरू कर दिया है।
शिवराज का संतुष्टि फॉर्मूला
आरएसएस की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश की 67 फीसदी आबादी भाजपा सरकार से नाखुश है। इसमें किसान, आदिवासी, कर्मचारी आदि शामिल हैं। चुनावों के जीत-हार में इनका बड़ा योगदान रहता है। इसलिए प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबको खुश करने के अभियान में जुट गए हैं। राजनीति विश£ेषकों ने इसे शिवराज का संतुष्टि फॉर्मूला नाम दिया है। इस फॉर्मूेला के जरिए वे हर वर्ग की मांगें मानने में ज्यादा देरी नहीं कर रहे हैं, बल्कि कई नई घोषणाएं खुद किए जा रहे हैं। इससे सरकार पर कितना आर्थिक बोझ आएगा, किस वर्ग में नाराजगी बढ़ेगी, इसकी भी उन्हें परवाह नहीं है। महिलाओं की सुरक्षा का वादा करते हुए मासूम बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान करने का वादा किया। किसानों के लिए भावांतर योजना, गेहूं, धान आदि पर बोनस, 200 रुपए में महीने भर बिजली जैसे अनेक फैसले लिए गए। स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में किए गए कार्यो का हर जगह ब्यौरा दे रहे हैं। गैर-आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों में बढ़ते असंतोष को दबाने के लिए सेवानिवृत्ति की आयु-सीमा बढ़ाने का फैसला लिया।
यही नहीं, अब मुख्यमंत्री जन-आशीर्वाद यात्रा के दौरान जिलों में विकास कार्यों का भूमिपूजन, लोकार्पण और सौगातों की घोषणा कर रहे हैं। इससे भाजपा के पक्ष में एक बार फिर से माहौल बनता जा रहा है। अभी तक मिले फीडबैक के अनुसार मुख्यमंत्री जहां-जहां जा रहे हैं वहां भाजपा के प्रति लोगों में एक बार फिर विश्वास मजबूत हो रहा है। उधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकारी खर्चे पर जन-आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं। जनता इनके फरेब को समझ चुकी है। सिंह बड़े विश्वास के साथ कहते हैं कि मुख्यमंत्री की जमीन खिसक चुकी है। भाजपा के लिए 2008 और 2013 की वह बात अब नहीं रह गई है, मप्र की जनता परेशान हो चुकी है। उन्होंने शिवराज सिंह की जनआशीर्वाद यात्रा पर तंज करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री बौखला गए हैं। प्रदेश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। महिला-बाल उत्पीडऩ के मामले बढ़ रहे हैं। कई विफलताएं हैं जिनके लिए भाजपा को आशीर्वाद की बजाय प्रायश्चित्त यात्रा निकालनी चाहिए।
शिवराज ने रचा चक्रव्यूह
शिवराज ने अपने गढ़ को अभेद किले में बदलने की कोशिश की है। अपनी तमाम योजनाओं के जरिए शिवराज ने वोट बैंक को सीधा टारगेट किया है। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज ने सरकार की योजनाओं के जरिए प्रदेश के एक साथ कई वोट बैंक तक अपनी पहुंच को मजबूत बनाने का प्रयास किया है। शिवराज की मंत्री अर्चना चिटनिस का कहना है कि सत्ता विरोध लहर के तमाम दावों और चर्चा के बीच सीएम शिवराज ने अपनी बंद मु_ी को खोल कर हर किसी को खुश करने की कोशिश की है। इसके अलावा भी शिवराज ने हर वर्ग को खुश करने की कवायद को जारी रखा है। ताकि आगामी चुनाव से पहले विपक्ष के पास कोई मुद्दा न रह जाए। भाजपा के चुनावी गणित में घोषणा और योजना के ऐलान में उन वर्गों का ध्यान रखा गया है जो भाजपा का बड़ा वोट बैंक साबित होगा। ‘जंग और प्यार में सब जायज होता है।’ इस मशहूर कहावत को भाजपा और शिवराज ने अगला चुनाव जीतने के लिए अपना आधार बना लिया है।
किसानों पर सबसे अधिक डोरा
चुनावी वर्ष में किसानों की नाराजगी प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान ने खुद किसान पुत्र होने की बात को साबित करते हुए किसानों के बीच बनी नाराजगी को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास करने का फैसला लिया है। इसके चलते राजकीय खजाने से जो भी समीकरण उनके सामने आ रहे हैं, उसमें से एक बड़े हिस्से को वह किसानों को लाभ पहुंचाने में जुटे हुए हैं। इसी के तहत सीएम कुछ दिनों पहले किसानों के लिए एक बड़ी सौगात का पिटारा खोल चुके हैं।
प्रदेश की तीन-चौथाई आबादी वाले खेती से जुड़े 64 लाख किसान को कई तरह की राहत दी गई है। किसानों को उपज का दाम देने के लिए बीते छह महीने में किसानों के खातों में लगभग 3,527 करोड़ की राशि जमा हुई। रबी 2017-18 में चना, मसूर, सरसों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के तहत 15 लाख किसानों को 100 रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि दी। 2017-18 के लिए भावांतर भुगतान योजना के तहत 12 लाख किसानों के खाते में 1850 करोड़ जमा हुए। उन्होंने किसानों को लेकर किए गए एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना की शुरुआत करते हुए उन्हें हर संभव लाभ देने का फैसला लिया था। योजना के तहत अब शिवराज सरकार आगामी दिनों में प्रदेश के किसानों के एक हिस्से को 775 करोड़ रुपए से ज्यादा की प्रोत्साहन राशि देने जा रही है।
इसके चलते बीते दिन सीएम ने मंत्रालय में अधिकारियों के साथ हुई बैठक में चना, मसूर और सरसों के उपार्जन की समीक्षा की। साथ ही उन्होंने मूंग, उड़द के पंजीयन तथा प्याज और लहसुन की मंडियों में होने वाली आवक की भी जानकारी ली। मामले पर पूरी तौर पर संज्ञान लेते हुए उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जल्द से जल्द किसानों को इस आवक का भुगतान करें। सरकार अब तक चना, मसूर और सरसों की खेती करने वाले किसानों को 7,842 करोड़ रुपए की रकम भुगतान कर चुकी है। साथ ही, सीएम ने समीक्षा के दौरान प्याज और लहसुन की खेती में हुए निकसान के चलते अगस्त के पहले हफ्ते में राजकीय खजाने से 775 करोड़ रुपए से ज्यादा प्रोत्साहन राशि देने का फैसला लिया है। यह राशि प्याज और लहसुन की खेती करने वाले प्रदेश के लगभग दो लाख किसानो के खाते में एक क्लिक के माध्यम से पहुंचाई जाएगी। इसके लिए सीएम शिवराज खुद अगस्त के पहले सप्ताह में मंदसौर के पिपल्यामंडी में होने वाले किसानो से जुड़े एक बड़े कार्यक्रम में इस प्रोत्साहन राशि को तय किसानो के खाते में पहुंचाएंगे।
बंटेगा 5,300 करोड़ का फसल बीमा
बीते साल सूखे की वजह से बर्बाद फसलों के नुकसान की भरपाई प्रदेश सरकार फसल बीमा से करेगी। खरीफ 2017 के लिए 17 लाख 17 हजार किसानों को 5 हजार 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का बीमा दिया जाएगा। फसल बीमा योजना में प्रीमियम के तौर पर किसानों ने 450 करोड़ रुपए जमा किए थे। एक हजार 50 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने और इतनी ही राशि केंद्र सरकार ने अपने अंश के तौर पर बीमा कंपनियों को दी थी। कुल मिलाकर 2 हजार 550 रुपए बीमा के जमा हुए और अब किसानों को 5 हजार 300 करोड़ रुपए मिलेंगे। खरीफ 2016 में 1 हजार 880 करोड़ रुपए का बीमा किसानों को मिल चुका है।
चुनावी साल में सरकारी दांव
-संबल योजना से 1.80 करोड़ मजदूरों को लाभ
-3 लाख 39 हजार पेंशनर्स को सातवां वेतनमान करीब
-डिफाल्टर किसानों की कर्ज माफी
-एक लाख युवाओं को नौकरी
-बिजली बिल माफी
-गरीबों और किसानों को 200 रुपए में बिजली
-2 लाख 84 हजार शिक्षकों का विलय
-4,25,000 कर्मचारियों को सातवां वेतनमान
-किसानों को बोनस और भावांतर
-तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए चप्पल-साड़ी का वितरण
-आंगनबाड़ी वर्कर्स और सहायिकाओं का वेतन दोगुना
-चुनाव से पहले लाखों मुकदमें वापस लेगी सरकार
-परिवार के मुखिया की मौत पर चार लाख का मुआवजा
-छात्र-छात्राओं को लैपटॉप
-30 हजार टीचरों की होगी भर्ती
-35 लाख 56 हजार 45 भूमिहीनों को आवास के लिए भू-खंड
1.80 करोड़ परिवारों को 200 रुपए में बिजली
शिवराज की योजनाओं पर नजर डालें तो, उन्होंने असंगठित क्षेत्र के एक करोड़ अस्सी लाख वोटर को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। श्रमिकों को जमीन के पट्टे देने, पक्का मकान देने, उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और इलाज का इंतजाम किया है। महिला श्रमिक और प्रसूति में मदद और श्रम करने के दौरान अपंगता होने पर मदद और दुर्घटना पर मुआवजा का ऐलान किया है। सरकार ने बीपीएल परिवारों और किसानों के लिए फिक्स पावर टैरिफ स्कीम लागू की है। इस योजना से प्रदेश के लगभग 1.80 करोड़ परिवारों को 200 रुपए प्रति माह की दर पर बिजली दी जा रही है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि एक तरफ सरकार प्रदेश में विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है। अगर प्रदेश में करोड़ों की संख्या में मजदूर हैं तो यह स्वर्णिम मध्यप्रदेश कैसे हो गया। 15 साल की सरकार के बाद पौने दो करोड़ मजदूर होने का मतलब है कि प्रदेश में कोई तरक्की नहीं हुई है।
77 लाख गरीबों के बिजली बिल माफ
चुनावी साल में सरकार विभिन्न वर्गों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। अब सरकार ने असंगठित श्रमिकों और गरीबी रेखा के नीचे आने वाले बिजली उपभोक्ताओं के बिल माफ करने का फैसला लिया है। सरकार ने करीब 77 लाख उपभोक्ताओं के बिजली बिल माफ करने के लिए हरी झंडी दे दी। इसके तहत 5179 करोड़ रुपए के बकाया बिल माफ होंगे। इस स्कीम से सरकार पर करीब 1800 करोड़ रुपए का भार आएगा। हितग्राहियों के 30 जून तक के बिल माफ किए गए हैं।
– यही नहीं प्रदेश की 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग की आबादी के लिया भी कई घोषणाएं की हैं। इसके तहत विकासखण्डों में पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए छात्रावास की योजना है। छात्रावास में छात्र को दाखिला नहीं मिलने पर 2 छात्रों के मिलकर किराये के मकान में पढ़ाई करने पर मकान किराया देने का प्रावधान किया गया है। पिछड़ा वर्ग छात्रवृत्ति के लिए अभिभावक की सालाना आय सीमा 75 हजार रुपए को बढ़ाकर 3 लाख रुपए सालाना किया गया है। पिछड़ा वर्ग के 50 छात्रों के विदेशी विश्वविद्यालय में चयन पर फीस सरकार देगी। पिछड़ा वर्ग के छात्रों से अब कांऊसिलिंग के समय आय प्रमाण-पत्र नहीं मांगा जाएगा। कक्षा 12वीं में 70 फीसदी अंक लाने पर छात्र को मेधावी छात्र प्रोत्साहन योजना का लाभ।
– मुख्यमंत्री ने प्रदेश के बीस फीसदी आदिवासियों को कई तरह की सौगात दी है। तेंदूपत्ता संग्राहकों के खातों में सवा करोड़ के बोनस राशि डाली गई है। वहीं तेंदूपत्ता संग्राहकों को जूते-चप्पल, पानी की बोतल और महिलाओं को साड़ी देने का काम शुरु किया। इसके तहत 66 लाख से ज्यादा हितग्राहियों को 82 करोड़ के लाभ हुआ।
चुनावी वर्ष में कर्ज माफी की आस…
मध्य प्रदेश में किसान परेशान है। पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्य प्रदेश के किसान भी चुनावी वर्ष में कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। फिलहाल तो लगता है कि किसानों की कर्ज माफी का वादा दोनों ही प्रमुख पार्टियों के चुनाव घोषणा-पत्रों में नजर आने वाला है। लेकिन सरकारी खजाने की हालत देखते हुए यह इतना आसान भी नहीं लगता। मध्य प्रदेश सरकार का खजाना खाली पड़ा है और इस वजह से राज्य में लागू होने के लिए लंबित कई जरूरी योजनाओं पर भी काम नहीं हो पा रहा है…
मप्र में किसानों को आस जगी है कि इस चुनावी साल में उन्हें कर्ज माफी की सौगात मिल सकती है, इसलिए किसानों में कर्ज लेकर खेती करने की होड़-सी मच गई है। आलम यह है कि पिछले साल की तुलना में तीन गुने से अधिक किसानों ने अब तक सहकारी बैंकों से कर्ज ले लिया है और हजारों प्रकरण बैंकों की शाखाओं में पेंडिंग हैं। खरीफ का कर्ज किसानों को 30 सितम्बर तक वितरण होना है। गौरतलब है कि चुनावी साल में किसानों की कर्ज माफी बड़ा मुद्दा बन जाता है और राजनैतिक दलों में किसानों का कर्जा माफ करने की घोषणा करने की होड़ लग जाती है। इसी के मद्देनजर आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए खरीफ सीजन में कर्ज लेने किसानों में होड़ मची हुई है।
गौरतलब है कि 6 जून को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर में घोषणा की थी कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो 10 दिन में किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। उसके बाद से कर्ज लेने का सिलसिला तेज हो गया है। प्रदेश के सभी जिलों में स्थित सहकारी बैंकों के साथ ही अन्य बैंकों से खेती के लिए बड़ी संख्या में कर्ज लिया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में करीब 86 लाख किसान हैं। इनमें किसान क्रेडिट कार्ड 66 लाख किसानों के बने हैं। इन किसानों ने विभिन्न स्रोतों के माध्यम से 74 हजार करोड़ का कर्ज ले रखा है। जानकारी के अनुसार, नाबार्ड वर्ष 2018-19 में प्रदेश सरकार को 21,000 करोड़ रुपए दिए है, जिसमें से 4,000 करोड़ रुपए सिंचाई योजनाओं, सडक़ और ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के लिए, 3000 करोड़ रुपए सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन और मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित (मार्कफेड), फसली ऋण देने के लिए 10,000 करोड़ रुपए तथा 4,000 करोड़ रुपए कृषि क्षेत्र में निवेश हेतु कॉमर्शियल और कोऑपरेटिव बैंक को देगा। कर्ज के प्रति किसानों की बढ़ती रूचि व सहकारिता से किसानों को जोडऩे के लिए सहकारी बैंकों ने वर्ष 2018-19 में लक्ष्य में वृद्घि कर दिया है। खरीफ सीजन के लिए कर्ज मई से सितम्बर तक दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों से जुड़े प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के डिफाल्टर किसानों के जून 2017 तक के बकाया ऋण पर 3,158 करोड़ रुपए के ब्याज को माफ कर दिया। गौरतलब है कि मप्र में कर्ज वितरण का एक-तिहाई काम सहकारी बैंकों के पास है। सहकारी बैंक किसानों को सरकार की स्कीम के तहत जीरो फीसदी ब्याज पर देती है। खाद का कर्ज तो 10 फीसदी कम में किसानों का मिलता है। करीब 20 हजार करोड़ का कामकाज सहकारी बैंकों का है। शेष कर्ज कमर्शियल बैंक देते हैं जो 4 प्रतिशत पर किसानों को मिलता है। कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि योगी सरकार की तरह यदि ट्रैक्टर खरीदी के लिए कर्ज लेने वाले किसानों को छोड़ दिया जाए तो भी किसानों पर करीब 45 हजार करोड़ का कर्ज है। रिकवरी का प्रतिशत हर साल करीब 70 फीसदी होता है। ऐसे में कर्ज माफी का फैसला मप्र सरकार के लिए काफी मुश्किल होगा।
युवाओं के लिए एक लाख नई भर्तियां
सरकारी कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र दो साल बढ़ाए जाने से नाराज युवाओं को खुश करने के लिए शिवराज सरकार ने चुनावी साल में फिर नया दांव चला है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया है कि सरकार आने वाले दिनों में एक लाख नई भर्तियां करेगी, साथ ही सूबे में नए पदों के सृजन पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी। बता दें कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 किए जाने का ऐलान किया था। सरकार ने आनन फानन में इसका अध्यादेश जारी कर आदेश लागू कर दिया है। सरकार के इस फैसले से साढ़े 4 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा। शिवराज सरकार की तैयारी इन पदों पर भर्तियां करने की हैं। राजस्व विभाग में 9500 पटवारी, 400 नायब तहसीलदार और 100 अन्य पद समेत कुल 10 हजार पदों पर भर्ती की जायेगी। स्कूल शिक्षा विभाग में 60 हजार शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती की जायेगी। स्वास्थ्य विभाग में 3500 पदों पर भर्ती होना है, इनमें 1300 चिकित्सक, 700 पैरामेडिकल स्टाफ, 1053 स्टॉफ नर्स और शहरी क्षेत्र में 500 एएनएम की भर्ती होगी। पुलिस में 8 हजार पदों पर भर्ती के अलावा होमगार्ड में खाली 4 हजार पदों पर भर्ती होगी। महिला-बाल विकास विभाग में 3300 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका और 700 पर्यवेक्षक सहित कुल 4 हजार पदों पर भर्ती होगी।
35 लाख से अधिक भूमिहीनों को आवासीय भू-खंड
राज्य शासन द्वारा आवासहीन व्यक्तियों को आवास के लिये भू-खंड उपलब्ध कराने के लिए चलाए जा रहे भू-खण्ड अधिकार में 17 जुलाई तक 35 लाख 56 हजार 45 भूमिहीन व्यक्तियों को आवास के लिये भू-खंड दिए जा चुके हैं। राज्य शासन द्वारा यह भी निर्णय लिया गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने 31 दिसम्बर, 2014 के पहले निवास और उसके अनुषांगिक प्रयोजन के लिये भवन का निर्माण कर लिया है, तो वह जमीन उसे आवंटित कर दी जाएगी। इस संबंध में अधिनियमों में जरूरी संशोधन किए जा चुके हैं। यह आवासीय भू-खण्ड आबादी क्षेत्र में, घोषित आबादी में, दखलरहित भूमि में व्यवस्थापन, वास-स्थान दखलकार अधिनियम और नगरीय क्षेत्रों में पट्टाधृति अधिकार के अंतर्गत दिये गये हैं। भू-खण्ड अधिकार अभियान के अंतर्गत एक जनवरी, 2018 के पहले 26 लाख 63 हजार 935 और एक जनवरी, 2018 के बाद 8 लाख 92 हजार 110 भू-खण्ड के पट्टे आवास के लिये पात्र भूमिहीन व्यक्तियों को वितरित किये जा चुके हैं।
शिवराज की सौगातों और घोषणाओं से बदला माहौल
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले छह माह में जितनी सौगातों की घोषणा की है उससे भाजपा के पक्ष में माहौल बना है। वह कहते हैं कि किसान और मजदूर बहुल जिन विधानसभा सीटों पर कुछ माह पहले भाजपा की स्थिति कमजोर मानी जा रही थी, अब वहां भाजपा की लहर है। बताया जाता है कि भाजपा के रणनीतिकारों में प्रदेश की 157 सीटों को चिहिंत किया था, जहां उसका जनाधार कम था या हो रहा था। उन विधानसभा सीटों में श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, दिमनी, अम्बाह, अटेर, लहार, मेहगांव, ग्वालियर ग्रामीण, भितरवार, डबरा, सेवढ़ा, करेरा, पोहरी, पिछोर, कोलारस, बमोरी, चाचौड़ा, राघौगढ़, चंदेरी, मुंगावली, खुरई, सुरखी, देवरी, रहली, नरियावली, बंडा, जतारा, पृथ्वीपुर, निवाड़ी, खरगापुर, महाराजपुर, चांदला, बीजावर, मलहेरा, पथरिया, जबेरा, हटा, पवई, गुन्नौर, चित्रकूट, रैगांव, नागौद, मैहर, अमरपाटन, रामपुर बघेलान, सिरमौर, सेमरिया, त्यौंथर, मउगंज, देवतालाब, मनगवां, गुढ़, चुरहट, सिंहावल, चितरंगी, देवसर, ब्यौहार, जयसिंह नगर, जैतपुर, अनूपपुर, पुष्पराजगढ़, बांधवगढ़, मानपुर, विजयराघवगढ़, मुड़वारा, बहोरीबंद, पाटन, बरगी, पनागर, शहपुरा, डिण्डोरी, बिछिया, निवास, बैहर, लांजी, परसवाड़ा, वारासिवनी, कटंगी, बरघाट, केवलारी, लखनादौन, गोटेगांव, तेन्दूखेड़ा, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, परासिया, पाण्डुर्ना, मुलताई, आमला, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, टिमरनी, सिवनी मालवा, सोहागपुर, पिपरिया, उदयपुरा, भोजपुर, सांची (अजा), सिलवानी, बासौदा, कुरवाई (अजा), सिरोंज, शमशाबाद, बैरासिया, हुजूर, बुधनी, आष्टा, इछावर, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर, सुसनेर, आगर, शुजालपुर, कालापीपल, सोनकच्छ, हाटपिपल्या, खातेगांव, बागली, हरसूद, पंधाना, नेपानगर, बड़वाह, महेश्वर, भगवानपुरा, सेंधवा, पानसेमल, बड़वानी, अलीराजपुर, जोबट झाबुआ, थांदला, पेटलावाद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी, बदनावर, राउ, सांवेर, महिदपुर, घटिया, बडऩगर, रतलाम ग्रामीण, सैलाना, आलोट, मल्हारगढ़, सुवासरा, मनासा, नीमच और जावद आदि शामिल हैं। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि अब इन सीटों पर भाजपा के पक्ष में माहौल है।
वादे पूरे कहां से होंगे, तिजोरी तो खाली है
जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार के पास पहले से करीब 60,000 करोड़ रूपए की घोषणाओं को पूरा करने के लिए पैसा नहीं है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने एक बार फिर सौगातों का पिटारा खोल दिया है जबकि असलियत ये है कि राज्य सरकार की तिजोरी खाली है। ओवर ड्राफ्ट के हालात हैं, लेकिन सरकार का कहना है कि चिंता की बात नहीं। वित्तमंत्री जयंत मलैयाबेफिक्र होकर कहते हैं कि चुनावी साल में घोषणाएं कौन सी सरकार नहीं करती। कांग्रेस कह रही है सरकार घबराहट में ऐलान कर रही है। चुनावी साल में गरीबों के बिजली के पुराने बिल माफ करने के लिए बिजली बिल समाधान योजना तो मजदूरों के लिये संबल योजना, किसानों के लिए किसान समृद्धि योजना जैसे कई ऐलान ताबड़तोड़ कर डाले, ये भूलकर कि इन योजनाओं ने सरकार की आर्थिक हालत खराब कर दी है। राज्य पर एक लाख 82000 करोड़ का कर्ज है, 15 साल बाद ओवर ड्राफ्ट के हालात हैं लेकिन वित्त मंत्री निश्चिंत हैं। मलैया कहते हैं कि हम संवदेनशील हैं, खजाने में कुछ दे दें तो क्या दिक्कत है, साढ़े 14 साल रेवेन्यू सरप्लस रहा है हमें कोई दिक्कत नहीं है, खजाना भले खाली हो जाए, गरीब की आंखों में आंसू नहीं देख सकते, क्या फर्क पड़ता है ओवरड्राफ्ट से। सरकारी सूत्रों की मानें तो इस चुनावी साल में मुख्यमंत्री की अब तक की घोषणाओं और सौगातों से सरकार पर करीब 40,000 करोड़ का भार पड़ेगा। सरकार की संबल योजना में 2,500 करोड़ का खर्चा होगा। वहीं बिजली बिल समाधान योजना में 3,000 करोड़, कर्मचारियों के सातवें वेतनमान में 1,500 करोड, किसानों को पुराने साल की खरीद के बोनस में 2,050 करोड़, कृषक समृद्धि योजना में 4,000 करोड़, शिक्षकों को एक विभाग में समायोजित करने में 2,000 करोड़ का खर्चा होगा। इनके अलावा मजदूरों के लिए राज्य बीमारी सहायता, गरीबों के लिए मुफ्त इलाज, गर्भवती महिलाओं को 6 से 9 महीने के बीच 4 हजार रुपए और प्रसव के बाद 12 हजार रुपए दिए जाने, गरीब परिवार के बच्चों की पहली से लेकर उच्च शिक्षा की फीस सरकार द्वारा भरने पर सरकार पद बड़ा बोझ पडऩे वाला है।
पैसा ना कौड़ी, बीच बजरिया में दौड़ा-दौड़ी
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सीएम शिवराज सिंह चौहान पर करारा तंज कसा है। अपने व्यंग्यात्मक अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले दिग्गी राजा ने सूबे की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर सीएम शिवराज और सरकार दोनों को निशाने पर लिया है। दिग्गी राजा ने सीएम की ओर से लगातार हो रही घोषणाओं के लिए बजट के प्रावधान पर सवाल खड़ा किया है। दिग्विजय सिंह ने अपने ट्विटर पर सीएम शिवराज का नाम लिए बिना घोषणावीर शब्द का इस्तेमाल करते हुए लिखा है, पैसा ना कौड़ी, बीच बजरिया में दौड़ा-दौड़ी।
पिछले तीन महीने में ही चार हजार करोड़ का नया कर्ज लिया गया है। सरकार को इन हालातों से निपटने के लिए फिर नए कर्जे का सहारा है। हाल के विधानसभा सत्र में भी सरकार ने 11 हजार करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट लाकर हालत सुधारने की सोची थी मगर इंतजाम 5,000 हजार करोड़ का ही हो पाया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा कहते हैं कि सरकार ने मन बना लिया है कोई भी विषय आए उसकी तुलना 14 साल पुरानी सरकार से करो, सवाल इस बात का है कि घबराया हुआ मुख्यमंत्री जो हर दिन नई घोषणा कर रहा है, डेढ़ लाख करोड़ के कर्जे में हैं, ओवरड्राफ्ट की स्थिति बनी है। जहां सातवां वेतनमान लागू कर दिया लेकिन पैसा नहीं है, भावातंर का पैसा 3 महीने से नहीं मिला, जहां मुख्यमंत्री जा रहे हैं किसान चिल्ला रहे हैं। मार्च 2018 में पेश की गई कैग रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश पर 31 मार्च 2018 तक 1.83 लाख करोड़ का कर्ज था। यानी प्रत्येक मतदाता पर औसत 36000 रुपए का कर्ज। इस कर्ज के बदले में शिवराज सरकार 47,564 करोड़ का ब्याज अदा कर चुकी हैं। वित्त विभाग के सूत्रों का साफ कहना है कि हालात ऐसे रहे तो कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल होगा।
4,00,000 करोड़ से कौन खुशहाल
प्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए भाजपा सरकार ने अपने 15 साल के कार्यकाल में करीब 4,00,000 करोड़ रूपए का बजट मुहैया कराया है, लेकिन किसानों की स्थिति जस की तस है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस बजट से कौन खुशहाल हुआ। मप्र के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन कहते हैं कि सरकार के प्रयास का ही प्रतिफल है कि प्रदेश लगातार पांच साल से कृषि कर्मण अवार्ड पा रहा है। उधर, राष्ट्रीय किसान-मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कक्काजी का कहना है कि किसानों ने अपनी मेहनत से अनाज का रिकार्ड उत्पादन किया है, लेकिन उसको मिला क्या है? अगर प्रदेश का किसान खुशहाल होता तो वह आत्महत्या क्यों करता?
पिछले दो वर्ष में किसान खेती की लागत तेजी से बढ़ी है। मजदूरी दोगुनी हो गई है। डीजल, खाद, बीज सब महंगा हुआ, लेकिन उपज के दाम कम हुए। हमें एमएसपी नहीं, फायदे में सामान बिके ऐसा रेट चाहिए और ये भावांतर योजना तुरंत बंद कर देनी चाहिए। पिछले वर्ष किसान आंदोलन के बाद शिवराज सरकार ने भावांतर योजना शुरू की, जिसके अनुसार अगर मंडी में एमएसपी से चीजें कम बिकी तो उसकी भरपाई सरकार अपने खजाने से करेगी, लेकिन किसानों का आरोप है कि उसका फायदा कारोबारियों ने उठाया और ये योजना पूरी तरह फेल है।
गांव बंदी के बाद अब वोटबंदी
10 दिनी गांव बंद आंदोलन भले ही बेअसर रहा, लेकिन किसान संगठनों ने इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को किसानों की ताकत का एहसास कराने पर तूले हुए हैं। इसलिए गांव बंदी के बाद अब वोटबंदी की तैयारी की जा रही है। किसान संगठन इसके लिए विभिन्न स्तर पर तैयारी में जुटे हुए हैं। दरअसल, किसान संगठनों का मानना है कि जब तक किसान अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं करेगा, तब तक न तो उसकी समस्याओं का समाधान निकलेगा और न ही सरकारें उनको प्राथमिकता देंगी। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे प्रदेश में सियासी पारा भी गरम होता जा रहा है। चुनाव से ठीक पहले नेता जहां एक-दूसरे पर सियासी हमले बोल रहे हैं, वहीं प्रदेश की सियासी फिजां में कई मुद्दे भी गरम हो रहे हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो इस समय प्रदेश की सियासत किसानों के आसपास घूम रही है। सभी सियासी समीकरणों को देखने के बाद इतना तो तय लग रहा है कि साल के आखिरी यानी अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान नई सरकार का भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। इसी के चलते प्रदेश में 15 साल से विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे को बिना किसी देरी के लपक लिया। पार्टी ने किसान आंदोलन की बरसीं पर मंदसौर में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा कर किसान कार्ड को कैश कराने के लिए अपना दांव चल दिया है। मध्य प्रदेश की लगभग साढ़े 8 करोड़ की आबादी में लगभग 70 फीसदी किसान वोटर हैं। वहीं प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 157 सीटें ग्रामीण वोटरों की बहुल्यता वाली सीटें हैं, जहां किसानों का वोट निर्णायक होता है। ऐसे में इतना तो तय है कि कांग्रेस 15 साल बाद एक बार किसानों के भरोसे मध्य प्रदेश में सत्ता की वापसी की कोशिश में है, तो दूसरी ओर भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को किसान का बेटा बताते हुए अपने इस मजबूत वोट बैंक में किसी भी प्रकार की विपक्ष की सेंध लगाने की जुगत को नाकाम करने में जुटी हुई है।
एमएसपी की खाद से होगी वोट की फसल!
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बड़ी वृद्धि का तोहफा देना वोट की फसल को खाद देना माना जा रहा है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि सरकार के किसानों के आक्रोश को शांत करने के लिए लॉलीपॉप दिया है। वहीं किसान नेताओं का कहना है कि सरकार किसानों की मांगों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा कर रही है। उल्लेखनीय है कि मप्र सहित कई राज्यों के किसान सरकार के खिलाफ आक्रोशित हैं। ऐसे में किसानों को एमएसपी में बड़ी वृद्धि का तोहफा देना मोदी सरकार के लिए राजनीतिक मजबूरी बन गई थी। हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही किसानों की नारागजी की खबरों के बीच मोदी सरकार की यह घोषणा एक तरह से डैमेज कंट्रोल की कोशिश है। सरकार और पार्टी को उम्मीद है कि इसे अमल में लाकर किसानों की नाराजगी बहुत हद तक दूर की जा सकती है। अभी किसानों की सबसे बड़ी समस्या फसलों की सही कीमत के निर्धारण को लेकर ही है।