नई दिल्ली : दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रख्यात नाबालिग लड़कियों का खतना किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. सोमवार (31 जुलाई) को खतना के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को उस स्तर तक ‘वशीभूत’ नहीं किया जा सकता है, जहां उन्हें सिर्फ अपने पति को खुश करना होता है.
खतना को खत्म करने के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं का जीवन सिर्फ शादी और पति को खुश रखने के लिए नहीं होता है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव पर रोक) समेत मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया और कहा कि किसी व्यक्ति को अपने ‘शरीर पर नियंत्रण’ का अधिकार है. पीठ इस कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
पीठ ने तब आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘ जब आप महिलाओं के बारे में सोच रहे हों (तब) आप रिवर्स गियर में कैसे जा सकते हैं.’’ केंद्र की ओर से उपस्थित अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इस कुप्रथा के खिलाफ दायर याचिका का समर्थन करती है. पीठ ने कहा, ‘‘चाहे यह (एफजीएम) कैसे भी किया जाता हो, मुद्दा यह है कि यह मौलिक अधिकारों और खासतौर पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है.’’ पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, ‘‘यह आपके जननांग पर आपके नियंत्रण के लिए आवश्यक है. यह आपके शरीर पर आपका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं.’’ पीठ ने कहा कि महिलाओं को ऐसी कुप्रथा के वशीभूत किया गया है जो उन्हें ऐसे स्तर तक पहुंचाती है जहां उन्हें केवल “अपने पतियों को खुश करना” होता है.