चुनावी फायदे के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई सरल बिजली और बिल माफी योजना ईमानदार उपभोक्ताओं पर भारी पडऩे वाली है। इसको लेकर समय पर बिल भरने वाले उपभोक्ताओं में सरकार को लेकर नाराजगी दिखने लगी है, जिससे उन पर विवाद का साया मडऱाने लगा है। दरअसल माना जा रहा है कि इस योजना से पहले ही बड़े घाटे में चल रही बिजली कंपनियों को और अधिक नुकसान होना है, जिसकी भरपाई सरकार व कंपनियां मिलकर नियमित बिजली बिल भरने वालों से करेंगी। जिसकी वजह से यह तय है कि आम लोगों की जेब पर बोझ बढ़ेगा। बिजली कंपनियां अप्रत्यक्ष रूप से इस घाटे की वसूली उनसे ही करेंगी। इसी को देखते हुए इस योजना के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका तक लगाई गई है, हालांकि इसके पहले हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट का कहना था कि यह सरकार और बिजली कंपनी के बीच का मामला है। यदि बिजली कंपनी को कोई आपत्ति हो तो वो सामने आए। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच के डॉ. पीजी नाजपाण्डे ने याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पूर्व मौजूदा शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भाजपा का वोटबैंक को साधने के लिए यह योजना शुरू की गई है। इस मामले में अधिवक्ता अक्षत श्रीवास्तव पैरवी करेंगे। मामले की सुनवाई एक सप्ताह के अंदर होने की संभावना है।
यह दलील दी गई है याचिका में
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे और एमए खान ने याचिका में कहा, बीपीएल कार्डधारकों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को 200 रुपए प्रतिमाह में बिजली दी जा रही है। एक जुलाई तक इसके बकाया बिजली बिलों को भी माफ किए जा रहे हैं। योजनाओं से बिजली वितरण कंपनियों का बजट पर प्रभाव पड़ेगा और इसका खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा, बिजली दी दरें बढ़ेंगी और आम जनता को महंगी बिजली लेनी पड़ेगी, सरकार ने सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ये योजनाएं लाई है याचिकाकर्ता ने तर्क दिया गया है कि इसी तरह नि:शुल्क बिजली देने के खिलाफ 2003 में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। तब कोर्ट ने तत्कालीन सरकार को 10 करोड़ रुपए चुकाने के निर्देश दिए थे। इस निर्णय के अनुसार सरकार को बिजली कंपनियों को 5179 करोड़ रुपए जमा करने के बाद ही ये योजनाएं लागू करने का हक है। जबकि हाईकोर्ट ने 13 जुलाई 2018 को इस संबंध में दायर उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके पीछे राजनीतिक लाभ देने की मंशा स्पष्ट है। लिहाजा, हाईकोर्ट को अग्रिम राशि जमा करवानी चाहिए थी। पूर्व में ऐसा किया जा चुका है। चूंकि हाईकोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी, अत: उस आदेश को पलटवाने सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। इस बारे में जनहित याचिका खारिज होने के दिन ही घोषणा कर दी गई थी।