बीते विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से विपक्षी प्रत्यासी के हाथों पराजित होने वाले नेता पहले से अधिक सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। यह वे नेता हैं जो कांटे के मुकाबले में पन्द्रह सौ से लेकर पचास मतों के अंतर से हार गए थे। मामूली हार जीत के अंतर वाली सीटों की संख्या बीते चुनाव में चौदह थीं। इनमें से 7 सीटें भाजपा, 6 कांगे्रस और एक पर बसपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। खास बात यह है कि इनमें से चार सीटों पर फैसला तो तीन सौ से कम मतों के अंतर से हुआ था। इस दौरान सबसे कम अंतर से हारजीत का फैसला सागर जिले की सुरखी सीट पर हुआ था , जहां भाजपा की पारुल साहू ने कांगे्रस प्रत्याशी गोविंद राजपूत को महज 41 मतों से हराया था। इस तरह की सीटों पर आम लोगों को आम विधानसभा के निवासियों से अधिक फायदा हुआ। इसकी वजह है दोनों ही प्रत्याशियों का समान रुप से सक्रिय रहना। उधर ग्वालियर पूर्व सीट से माया सिंह 1147 मतों से जीती थीं। वर्तमान में नगरीय प्रशासन मंत्री हैं। लेकिन प्रतिद्वंद्वी कांगे्रस नेता मुन्नालाल गोयल तभी से पूरी तरह सक्रिय बने हुए हैं। विकास कार्यों में देरी और लोगों की समस्याओंं को लेकर वे आए दिन कलेक्टर व नगर निगम कार्यालय में संघर्ष करते नजर आते हैं।
जारी है जनता दरबार
जबलपुर-पश्चिम सीट से तीन बार के भाजपा विधायक रहे हरेंद्रजीत सिंह बब्बू को कांगे्रस के तरूण भनोट ने 923 मतों से पराजित किया। दोनों सक्रिय हैं, जनता दरबार लगाते हैं। हालत यह है कि बब्बू अपनी ही सरकार में कई बार धरना दे चुके हैं।
लगा भाजपाई हो गए
जतारा से कांगे्रस विधायक दिनेश अहिरवार महज 133 मतों से जीते थे। अब अहिरवार का झुकाव भाजपा की ओर देखा जा रहा है। दिनेश कहते हैं कि जनता के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। इधर हारे हुए प्रत्याशी और पूर्व मंत्री हरिशंकर खटीक स्वीकारते हैं कि मंत्री बनने के बाद उनसे कुछ गलतियां हुई थीं। इस हार के बाद से खटीक लगातार दौरे कर रहे हैं।
विकास के लिए मंच पर साथ-साथ
सिवनी की बरघाट से कांगे्रस प्रत्याशी अर्जुन सिंह काकोडिय़ा ने 269 वोटों से मिली हार को भी जनता का आशीर्वाद माना। वे अब विकास के लिए भाजपा विधायक कमल मर्सकोले के साथ नजर आते हैं।
अब भीतर से मिल रही चुनौती
कटनी जिले की विजयराघवगढ़ सीट से कांगे्रस के टिकट पर 929 वोटों से जीते संजय पाठक कुछ ही महीनों में भाजपा में चले गए। सीट छोड़ी, फिर भाजपा की ओर से उपचुनाव लड़ा, अब फिर से विधायक और प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री हैं लेकिन अब उन्हें खुद की पार्टी भाजपा से ही चुनौती मिल रही है। उनके सामने 2013 में भाजपा के टिकट पर हारीं पदमा शुक्ला टिकट के लिए दावेदारी जता रही हैं। पाठक के भाजपा में शामिल होने के बाद से पदमा क्षेत्र में सक्रिय हंै।
जातिगत समीकरण भी बने कारण
कई सीटों पर कम अंतर से जीते-हारे प्रत्याशी जातिगत समीकरणों का भी हवाला देतेे हैं। मेहगांव विधायक चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी व प्रतिद्वंद्वी ओपीएस भदौरिया दोनों ही कम अंतर के लिए जाति या समुदाय के वोटरों को कारण बताते हैं। मनगवां विस क्षेत्र से भाजपा की पन्नाबाई पहले भारी अंतर से जीतीं, 2013 में बसपा की शीला त्यागी से 275 मतों से हार गईं। दोनों क्षेत्र मेें सक्रिय हैं। भिंड जिले के अटेर उपचुनाव में हेमंत कटारे ने महज 857 वोटों से भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी अरविंद भदौरिया को हराया था। यह राजनीति लड़ाई प्रतिशोध में बदल चुकी है। ऐसा ही रीवा जिले के गुढ़ विस क्षेत्र में कांगे्रस विधायक सुंदरलाल तिवारी व पूर्व विधायक नागेंद्र सिंह के बीच भी है। वे एक मंच पर साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं। नागेंद्र सिंह को 2013 में कांगे्रस प्रत्याशी सुंदरलाल ने 1382 मतों से मात दी थी।
एक नजर विस सीटों पर
जिला विस क्षेत्र विधायक पार्टी वोट का अंतर
सागर सुरखी पारुल साहू भाजपा 141
टीकमगढ़ जतारा दिनेश अहिरवार कांगे्रस 233
सिवनी बरघाट कमल मर्सकोले भाजपा 269
रीवा मनगवां शीला त्यागी बसपा 275
धार सरदारपुर बेल सिंह भूरिया भाजपा 529
सीहोर इछावर शैलेंद्र पटेल कांगे्रस 744
जबलपुर जबलपुर पश्चिम तरुण भनोट कांगे्र 923
कटनी विजयराघवगढ़ संजय पाठक कांगे्रस 929