नई दिल्ली मध्य प्रदेश में कुछ दिन पहले चुनाव प्रचार के महत्वपूर्ण दौर के बीच राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल में आधी रात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय पहुंचे थे, जहां संघ परिवार के शीर्ष नेता उनका इंतजार कर रहे थे। इनमें से एक ने बताया कि चौहान ने लगभग दो घंटे तक संघ के नेताओं से बातचीत की थी। चौहान को बताया गया था कि वह अभी भी लोकप्रिय हैं, लेकिन इस बार उनके बहुमत हासिल करने की संभावना कम है।
नेता ने कहा, ‘हमने उन्हें चेतावनी दी थी कि वह मौजूदा विधायकों की वजह से हार सकते हैं। कृषि से लेकर शिक्षा तक अपनी नीतियों और हमारे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने या उनकी मेजबानी करने के साथ चौहान हमारी विचारधारा के काफी करीब हैं।’ पिछले कुछ वर्षों में चौहान और संघ परिवार के नेताओं के बीच ऐसी कई मीटिंग हुई हैं। इनमें वह मीटिंग भी शामिल थी, जिसमें वह आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से 2014 में मिले थे और उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि उनका और उनके परिवार का उन घोटालों से कोई संबंध नहीं है, जिनका विपक्ष आरोप लगा रहा है। उन्होंने मंदसौर में किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए भी आरएसएस के नेताओं से मदद मांगी थी।
ऐसा माना जाता है कि मध्य प्रदेश में विभिन्न सरकारी पदों पर संघ के बहुत से सदस्य नियुक्त हैं। चौहान ने राज्य में पढ़ाई के लिए गुरुकुल व्यवस्था को दोबारा शुरू करने या हॉकी के राष्ट्रीय खेल को बढ़ावा देने जैसे संघ के प्रस्तावों को हमेशा स्वीकार किया है। बीजेपी को राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आसानी से हरा दिया, लेकिन मध्य प्रदेश में बीजेपी ने उसे कड़ी टक्कर दी। हालांकि, राज्य में कांग्रेस की सीटें बीजेपी से अधिक रहीं।
मध्य प्रदेश में संघ ने की बीजेपी की मदद
संघ के शीर्ष नेताओं का कहना है कि मध्य प्रदेश में मतदाताओं के गुस्से को कम करने और पार्टी के मुख्य समर्थकों को बरकरार रखने में संघ ने बीजेपी की मदद की है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में संघ परिवार की अच्छी मौजूदगी है और इन राज्यों में बीजेपी की हार संघ के लिए एक बड़ा झटका है। कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में चुनावी वादे के तौर पर जीतने की स्थिति में आरएसएस को सरकारी जमीन पर ‘शाखा’ आयोजित करने की अनुमति न देने की बात कही थी। इससे भी संघ की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
वसुंधरा से संघ के रिश्ते अच्छे नहीं, रमन सिंह से नाराजगी
राजस्थान में वसुंधरा राजे के साथ संघ के रिश्ते अच्छे नहीं थे। संघ से जुड़े संगठनों ने राजे की नीतियों और उनके ‘अड़ियल रुख’ की कई बार निंदा भी की थी। संघ के नेताओं ने हमारे सहयोगी अखबार ईटी को बताया कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य था, जहां संघ ने मतदाताओं के पास पहुंचने या सर्वेक्षण करने से दूरी बनाई थी। इसका प्रमुख कारण राज्य के संघ नेतृत्व की रमन सिंह से नाराजगी थी। संघ का मानना था कि सिंह ने राज्य में ईसाई धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।