प्रदेश के विधान सभा चुनाव 2018 पर एक विश्लेषण । बलराम पांडे के साथ सलाहकार संपादक मंगल भारत समाचार पत्रिका
भाजपा अपनी खामियों से उतरी पटरी से , अन्यथा कांग्रेस ने कोई तीर नहीं मारा था । जनता ने भाजपाइयों के अहंकार के विरुद्ध कांग्रेस को गिफ्ट दिया ।
भाजपा की दयनीय पराजय से उसे सबक लेने की जरूरत है । खाली किसी के चरित्र मर्दन या उपहास से रेखाएं कभी गाढ़ी नहीं बनती ।
पप्पू कहकर जिन राहुल का आये दिन मजाक बनाया जाता रहा उस पप्पू ने मेरिट में आकर दिखा दिया और उनको बुरी तरह फैल कर दिया ।
किसी को लगातार उपेक्षित कर उसे नीचा दिखाने की भूल 1977 में जनता दल की सरकार ने भी की थी । खबरों में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी का जिक्र भले न रहता था पर इंदिराजी बराबर रहती थीं कि उनके खिलाफ क्या क्या सरकार कर रही है । भारतीय जनमानस विशाल हृदय व क्षमाशील वाला है । लिहाजा उसकी सहानुभूति इंदिराजी के प्रति उमड़ी और 1980 में दो तिहाई बहुमत
से वे फिर सत्ता में लौटी ।
भाजपा ने इससे कोई सबक न ले जनता के दिये अधिकार को अपनी बपौती मान ली ।
जिस लालकृष्ण आडवाणी ने जनसंघ से लेकर भाजपा का सफर दहाई से करोड़ों तक बनाया उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल अलग कर दिया गया ।जनता ने इसे गहराई से लिया ।
बेरोजगारी , भृष्टाचार , नक्सल क्षेत्र के ग्रामीणों से हुई बेरहम , पीड़ादायक घटनाओं की अनसुनी , लोगों का बस्तर से पलायन , बीहड़ इलाकों में पदस्थ जवांनों एवम सरकारी अधिकारियों – कर्मचारियों की सुविधाओं के प्रति बरती गई लापरवाही जैसे अन्य अनेक कारण भाजपा के विकास , सस्ता चावल ,दीगर जिंसों का मुफ्त में दिया जाना भी उसके लिए संजीवनी नहीं बन पाया ।
अमीरों के लिए कुछ हो न हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता । पेट्रोल डीजल रसोई गैस की कीमत जितनी भी बढ़ जाये इन्हें क्या फर्क । इसी तरह गरीबों के लिए सरकारी योजनाओं की बहुतायत भी उसे फर्क न पड़ने के दायरे तक लाती है । बचा और फंसा फिर मरा तो मध्यम वर्गीय वर्ग । सरकार ने उससे लिया पर दिया कुछ नहीं । उसके पैसों से बांटी गई सामग्रियों से उसके हाथ खाली रहे ।
विकास की गाथा और उसकी दुहाई एनएच व स्टेट हाईवे के इर्द गिर्द ही सिमटी रही । अंदरूनी इलाकों में जहां लोगों को शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं है वहां अन्य सुविधाओं की सोच भी बेमानी है ।
स्कूल , कालेज , अस्पताल भवन बनाने में जितनी दिलचस्पी और व्यग्रता रही उतनी जरूरी उपकरणों एवं तकनीकी स्टाफ को लेकर उपेक्षित रहीं । अब बिल्डिंग तो पढ़ाई और इलाज करने से रही ।
नक्सली मुठभेड़ में घायल जवांनों को रायपुर रेफर करने की बजाय हर जिले में ऐसी चिकित्सा व्यवस्था क्यों नहीं की गई जिससे वहीं उनको बेहतर इलाज दिया जा सके । धन तो उन्हें ले जाने और निजी अस्पतालों में इलाज कराने में भी खर्च होता है और फिर कम से कम 3 घण्टे तक जवानों को असहनीय दर्द झेलना पड़ता है ।
ये सारी परिस्थितियां नई सरकार के लिए भी विचारणीय है ।
अभी इतना ही शेष फिर **** बलराम पांडे सलाहकार संपादक मंगल भारत
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