प्रदेश में पार्टी की सरकार बनवाने के बाद मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने वाले कमलनाथ को केन्द्रीय नेतृत्व ने अब कुछ माह तक पीसीसी चीफ पद पर ही बनाए रखने का लगभग फैसला कर लिया है। इसकी वजह है कुछ माह बाद होने वाला लोकसभा चुनाव। दरअसल हाईकमान नहीं चाहता है कि लोकसभा चुनाव तक प्रदेश में कोई दूसरा पावर सेंटर बने। दरअसल पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का अब पूरा फोकस लोकसभा चुनावों पर है। मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में पार्टी की सरकारें बनने के बाद श्री गांधी चाहते हैं कि तीनों ही राज्यों की सरकारें और संगठन मिशन 2019 को ध्यान में रखकर काम करें।
दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया की मंशा भी पीसीसी अध्यक्ष बनने की है। इस मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि हमारी प्राथमिकता मंत्रिमंडल के गठन के बाद संगठन की मजबूती के लिए काम करना है। माना जा रहा है कि अब जो भी फैसला होगा वह सत्ता-संगठन में समन्वय और लोकसभा चुनाव को नजर में रखते हुए ही फैसला लिया जाएगा।
अजय व रामनिवास की दावेदारी
दिग्विजय सिंह अपने खेमे से अजय सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। सिंधिया समर्थक रामनिवास रावत भी दौड़ में हैं। पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव भी खुद को इस दौड़ में शामिल किए हैं। वे ट्विटर के जरिए अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं। हालांकि यह तीनों ही दावेदार हाल ही में हुए विस चुनाव में पराजित हो चुके हैं।
सिंधिया की दबाव वाली राजनीति
सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की मंशा प्रदेश अध्यक्ष बनने की है, इसीलिए उनके समर्थकों ने पार्टी हाईकमान को संकेत देने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था, लेकिन राहुल, सिंधिया समर्थक विधायकों के इस रवैए से नाखुश हैं। हालांकि सिंधिया ने स्वयं समर्थकों को वापस भोपाल भेजा था। इन परिस्थितियों के बाद राहुल चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव तक कमलनाथ के पास ही संगठन की कमान रहे। यदि सिंधिया या उनके समर्थक पीसीसी अध्यक्ष बनेंगे तो पार्टी फिर गुटों में बंटी नजर आएगी और जनता के बीच में अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव पर पूरा ध्यान
लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। पार्टी का पूरा फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ महागठबंधन तैयार कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री चेहरा बनाने की है। सत्ता का सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा के गढ़ मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल कर कांग्रेस ने नई संभावनाएं पैदा कर दी हैं। इस जीत से राहुल का दावा भी मजबूत हुआ है।