भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेता व शिव सरकार में लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव के साढ़ू भाई शोभित त्रिपाठी की गिरफ्तारी के बाद अब उनके पुत्र अभिषेक भार्गव के खिलाफ प्रर्वतन निदेशालय ने जांच शुरू कर दी है। उन पर 80 करोड़ रुपए रुपए की धोखाधड़ी का आरोप है। जिस तरह से दोनों के खिलाफ यकायक जांच में तेजी आयी है उससे यह सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर भार्गव व उनके परिजनों को निपटाने में कौन लगा हुआ है। दरअसल विदिशा जिले के सिरोंज में जनपद सीईओ रहते शोभित त्रिपाठी पर करीब 30 करोड़ रुपए के फर्जीबाड़ा का आरोप है। यह मामला भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा द्वारा उठाया गया था। इसके बाद इस मामले में पहले त्रिपाठी को निलंबित किया गया और उसके बाद इसकी जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी गई थी। प्राय: इस तरह के मामलों में बेहद धीमी गति से जांच करने वाली सरकार की यह जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू शिकायत मिलने के बाद सुप्त अवस्था में चली जाती है , लेकिन इस मामले में उसके द्वारा इतनी फुर्ती दिखाई गई की न केवल एफआईआर दर्ज हो गई, बल्कि उनकी गिरफ्तारी तक हो गई। इस तरह की कार्रवाई ऐसे समय की गई है जबकि ईओडब्ल्यू के पास इससे कई गुना बड़े कई घोटाले बीते कई सालों से जांच में पेडिंग पड़े हुए हैं। इस बीच प्रर्वतन निदेशालय ने सालों पुराने गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक के खिलाफ जांच तेज कर दी है। इस मामले में अब रोज -रोज नए खुलासे हो रहे हैं, जिसमें पुलिस की भूमिका भी पूरी तरह से संदेह के घेरे में आ गई है। इसकी वजह है उसकी कार्यशैली का भार्गव के पक्ष में रहना। इसकी वजह से उन्हें कानूनी शिकंजे से राहत मिलती रही है। ईडी के जांच शुरू होने से माना जा रहा है कि अब उन पर एक बार फिर से कानूनी शिंकजा कस सकता है। दरअसल यह पूरा मामला जुड़ा है करोड़ों रुपये का गबन करने वाली चिट फंड कंपनी श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड से। इस कंपनी में अभिषेक डायरेक्टर हैं इस बात का खुलासा अब जाकर हुआ है। इस मामले में पुलिस द्वारा न केवल गबन करने वाली कंपनी, बल्कि उसके संचालक अभिषेक को बचाने के लिए आरोपी तक नहीं बनया गया था। अब इस मामले में जेल की हवा खा चुके एक अन्य आरोपी नितिन वलेचा ने ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल श्रद्धा सबुरी कमोडिटीज चिट फंड कंपनी ने अपना कारोबार 2012 के बाद रायसेन, भोपाल, सागर, जिलों में शुरू किया था। उस समय कंपनी ने अधिक ब्याज का लालच देकर लोगों से कई करोड़ रुपये जमा करवाए और बाद में वगैर पैसा लोटाए कंपनी के कर्ताधर्ता ऑफिस बन्द कर गायब हो गए थे। उस समय यह राशि 80 करोंड़ रुपए बताई गई थी। परेशान निवेशकों ने इस मामले में अक्टूबर 2015 में रायसेन कोतवाली में कुछ लोगों पर धोखाधड़ी, जालसाजी का प्रकरण दर्ज किया गया था। यह मामला करीब पांच करोड़ 34 लाख के गबन का है। खास बात यह रही की पुलिस ने इस मामले में प्रकरण दर्ज करते समय आरोपियों में कंपनी का नाम तक शामिल नहीं किया , जबकि निवेशकों के जमा धन को वसूल करने के लिये कंपनी को शामिल करना जरूरी था। यही नहीं पुलिस ने इस मामले में कंपनी के संचालक अभिषेक के नाम को भी दूर ही रखा। पुलिस ने कंपनी के मैनेजर बसंत उपाध्याय ,नितिन वलेचा ,बीपेंद्र भदौरिया आदि को आरोपी बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था, जिसमें बसंत को सात माह और नितिन को दो साल बाद जमानत मिल पायी।
इस तरह से भी किया गया खेल
इस पूरे घोटाले में पुलिस जिसे मास्टरमाइंड बता कर पेश करती रही उसका नाम न कंपनी के डायरटेक्टर्स में शामिल है और न कर्मचारियों में। इस मामले में पुलिस ने नितिन वलेचा को आरोपी बताकर 17 जुलाई 2017 को गिरफ्तार कर लिया था , जिसे जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। खास बात यह है कि जिस समय यह पूरा घोटाला हुआ उस समय नितिन विदेश में था, जिसे उसके पासपोर्ट, वीसा से भी साबित किया जा सकता है। नितिन को एक पारिवारिक विवाद में हरियाणा में गिरफ्तार किया गया था। बाद में प्रोडक्शन वारंट पर रायसेन पुलिस उसे लेकर आई थी। पुलिस का दावा है कि निवेशकों से धन जमा करने में नितिन कलेक्शन एजेंट की भूमिका में था। अब इस मामले में नितिन ने पूरे मामले को रीओपन करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है , जिसमें कंपनी और डायरेक्टर पर पब्लिक फंड की लायबिलिटी तय करने की फरियाद की गई है। उसके द्वारा अब सीबीआई से जांच करने की गुहार भी लगाई जा रही है।
न्यायालय के आदेश पर आरोपी बने अभिषेक
आरोपियों में शामिल बसंत उपाध्याय ने 2016 में जेल से ही धारा 319 का आवेदन सेशन कोर्ट में लगाकर कहा था कि कंपनी के असली कर्ताधर्ता अभिषेक भार्गव हैं। इसके बाद रायसेन की चतुर्थ अपर सत्र न्यायाधीश तृप्ति शर्मा की अदालत ने अभिषेक भार्गव को भी धारा 420,467,468,471, 120 बी और मप्र निवेशकों के हितों का संरक्षण कानून की धारा 3/6 के तहत आरोपी बनाया। इसके बाद अभिषेक ने गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद सितंबर 2016 में अदालत में सरेंडर कर दिया था , जिसके बाद उन्हें जमानत करानी पड़ी थी। उस समय उन्हें 50 हजार रुपये के मुचलके और बीस लाख रुपये की एफडी जमा करने पर जमानत मिल सकी थी।
पुलिस ने की कारस्तानी
इस मामले में जमानत के बाद अभिषेक भार्गव ने धारा 482 के तहत हाईकोर्ट जबलपुर में फरियाद की थी जिसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पेश की गई केस डायरी में से बड़ी चतुराई से रायसेन कोतवाली में दर्ज एफआईआर की वह कॉपी पेश कर दी जिसमें अभिषेक भार्गव का नाम ही नहीं था। इसके अलावा सेशन कोर्ट द्वारा अभिषेक को आरोपी बनाए जाने और गैर जमानती वारंट जारी होने वाला तथ्य ही पेश नहीं किया। नतीजतन हाईकोर्ट ने अभिषेक को सम्मान किये जाने से मुक्त कर दिया। जिस श्रद्धा सबुरी कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने यह गबन किया , उससे किसी भी तरह के संबंध न होने का अभिषेक ने भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दावा किया था। इसके उलट वास्तविकता में भारत सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय के तहत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में इस कंपनी के तीन डायरेक्टर के नाम आज भी देखे जा सकते हैं। इसमें अभिषेक भार्गव पुत्र गोपाल भार्गव का नाम भी शामिल है। उनके अतिरिक्त इसमें अन्य डायरेक्टर के नाम कमल नैन वलेचा और बसन्त उपाध्याय दर्शाए गए हैं। इस कंपनी को 23 मार्च 2012 को आरओसी ,दिल्ली में रजिस्टर्ड करवाई गई थी। जिसमें कंपनी की कैपिटल वेल्यु दो करोड़ एक लाख रुपये है, जिसमें से एक करोड़ दो लाख की शेयर होल्डिंग अभिषेक भार्गव के पास है। यानी अभिषेक 51 फीसदी का शेयर होल्डर है। खास बात यह है कि श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड को ट्रेडिंग का लाइसेंस मिला ही नहीं था। इसके बाद भी कंपनी द्वारा निवेशकों से करोड़ों रुपये जमा करवा लिए थे। दरअसल जबलपुर में एक अन्य आपराधिक प्रकरण में डायरेक्टर अभिषेक भार्गव का नाम शामिल होने के कारण पुलिस वेरिफिकेशन क्लियर नहीं होने से कंपनी को ट्रेडिंग का लायसेंस नहीं मिल पाया था।