भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में भले ही
आम विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का समय बचा हुआ है, लेकिन शिवराज सरकार अभी से चुनावी मोड में नजर आना शुरू हो गई है। यही वजह है कि शिव सरकार ने आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रदेश में पेसा एक्ट लागू करने का बड़ा कदम उठाते हुए मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। खास बात यह है कि इसके लिए लाए गए प्रस्ताव में वन उपज का दस फीसदी राशि संयुक्त वन प्रबंधन समितियों को देने का उल्लेख था, जिसे स्वयं मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप कर बीस फीसदी करवा दिया। इस निर्णय की वजह से अब संयुक्त वन समितियों को लगभग 160 करोड़ रूपया मिलने का रास्ता खुल गया है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार को वनोपज से 800 से 900 करोड़ रुपए की राजस्व प्राप्त होती है। गौरतलब है कि वर्ष 2003 से संयुक्त वन समितियों को जंगलों की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए वनोपज का 10 प्रतिशत लाभांश राशि दिया जाता था। वर्ष 2015 में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव वन एपी श्रीवास्तव ने वित्त विभाग की आपत्तियों को दृष्टिगत रखते हुए लाभांश राशि बंद कर दी थी। सात साल बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संयुक्त वन समितियों को बीस फीसदी राशि देने का निर्णय लिया है। डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है।
आदिवासियों को लुभाने के प्रयास
प्रदेश सरकार द्वारा यह कदम आदिवासियों को लुभाने के लिए उठाया गया है। इसकी वजह है प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी इसका फैसला आदिवासियों द्वारा ही किया जाता है। इसाकी वजह है प्रदेश में आदिवासियों की संख्या करीब दो करोड़ के आसपास होना। आदिवासी मतदाता वैसे तो करीब एक सैकड़ा सीटों पर हार-जीत को प्रभावित करते हैं , लेकिन उनमें से विधानसभा की 45 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है। वर्ष 2003 के पहले तक आदिवासी मतदाता कांग्रेस के साथ खड़ा रहा है। इसके बाद उसका झुकाव भाजपा के पक्ष में हो गया। यही वजह रही की 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसकी वजह से इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में आदिवासी विधानसभा क्षेत्र की केवल दो सीटें ही आ सकी थीं। इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में भी बीजेपी ने 29 सीटें तो कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2013 के चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से एक बार फिर भाजपा को 31 पर और कांग्रेस को 15 सीटों पर सफलता मिली थी, लेकिन बीते चुनाव 2018 में आदिवासियों के लिए में आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी को महज 16 तो कांग्रेस ने 30 सीटों पर विजय मिली, जबकि एक पर निर्दलीय को जीत मिली।
मप्र में पेसा एक्ट के प्रावधान
मप्र में पेसा एक्ट को लोग करने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर में टंट्या मामा स्मृति समारोह में की थी। इसके साथ ही उन्होंने सूदखोरी करने वालों पर सख्त कार्रवाई करने की घोषणा के साथ ही कहा था कि बिना लाइसेंस वालों ने 15 अगस्त तक जो भी उधार दिये हैं, वे सब माफ हो गये हैं, उधार लेने वालों को उन्हें लौटाने की आवश्यकता नहीं है। पातालपानी में टंट्या मामा स्मृति समारोह में सीएम ने मप्र में पेसा एक्ट लागू करने की घोषणा करते हुए कहा था कि इस एक्ट के लागू होने के बाद अनुसूचित जनजाति वाली ग्राम पंचायतों का स्थानीय संसाधनों पर को ज्यादा से ज्यादा अधिकार प्राप्त होंगे और जनजातीय ग्राम सभाओं को जनजातीय समाज की सामाजिक न्याय और धार्मिक व्यवस्था के लिये भी कार्य करने का अधिकार मिल सकेगा। इस एक्ट में भूमि, खनिज, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का भी अधिकार आता है।
क्या है पेसा एक्ट
इस एक्ट के अधीन स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अनुसूचित जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार प्रदान किये गये हैं, साथ ही आदिवासी समाज की परम्पराओं, रीति रिवाज तथा सांस्कृतिक पहचान और विवादों आदि के समाधान के लिये परम्परागत ढंगों के प्रयोग के लिये ग्राम सभाओं को सक्षम बनाने का प्रावधान किया गया है। जनजातीय ग्राम सभाओं को भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास के कार्यों में अनिवार्य परामर्श की शक्ति प्रदान की गयी है। यह एक्ट 24 अप्रैल 1996 को बनाया गया था और इसे अब लागू किया गया है। भूरिया समिति की अनुशंसाओं पर आधारित पेसा एक्ट यानी पंचायत उपबंध (अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक का प्रमुख उद्देश्य यह था कि केंद्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्ता के बिंदु स्पष्ट कर दिये जाय जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो