30 फीसदी गरीबों के घर में ही बन रहा गैस पर भोजन

उज्ज्वला योजना में मिले सिलेंडर नहीं भरवाए जा रहे

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र के गरीबों को भले ही केन्द्र की सरकार द्वारा उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दे दिए गए हैं, लेकिन गरीबों की रुचि इसका उपयोग भोजन बनाने में नहीं दिख रही है। इसकी वजह है गैस सिलेंडर भरवाने में जहां उन्हें हजार रुपए से अधिक खर्च करना पड़ रहे हैं तो वहीं हीटर पर भोजन बनाना फ्री पड़ता है। इसकी वजह से सरकार की मंशा पूरी नही हो पा रही है। भोपाल सहित प्रदेश भर के शहरी इलाकों में रहने वाले गरीबों के घरों पर उज्ज्वला के तहत घरेलू गैस कनेक्शन तो लिया गया है, लेकिन उनके घरों पर खाना हीटर पर ही बनता है। इनमें से अधिकांश परिवारों को करीब डेढ़ साल पहले उज्ज्वला योजना के तहत फ्री में गैस कनेक्शन मिला था। इसके बाद से करीब सत्तर फीसदी गरीब ऐसे हैं जिनके द्वारा एक दो बार ही सिलेंडर भरवाया गया है।
इन गरीबों का कहना है कि सिलेंडर भरवाना बहुत महंगा पड़ता है, एक बार भरवाने में हजार रुपए से अधिक लगते हैं। महंगाई के इस दौर में कहां से इतने पैसे लाएं। इसलिए हीटर पर खाना बना लेना मुनासिब है। यह लोग पहले भी हीटर जला रहे थे। प्रदेश में यह स्थिति तब है, जबकि सरकार ने उज्ज्वला के हितग्राहियों को जुलाई से 200 रुपए की सब्सिडी भी दोबारा देना शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भोपाल जिले में उज्ज्वला के 1.10 लाख कनेक्शन हैं। गैस एजेंसी संचालकों का कहना है कि जिन्हें कनेक्शन दिए गए हैं, उनमें से करीब 65-70 फीसदी दोबारा सिलेंडर नहीं भराते हैं। वजह सिलेंडर काफी महंगा होना है। उनके अनुसार, कोरोना काल में सब्सिडी बंद होने से पहले तक करीब 50 फीसदी हितग्राही गैस रिफिलिंग करा रहे थे, लेकिन इसके बाद इसमें तेजी से कमी आयी है। न्य मार्केट के एक गैस एजेंसी के संचालक का कहना है कि शहरी क्षेत्र के 30- 35 प्रतिशत कनेक्शनधारी ही गैस रिफिलिंग कराने आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति और भी खराब है। बैरागढ़ के एक गैस एजेंसी संचालक का कहना है कि उनके यहां उज्वला के 200 कनेक्शनधारी हैं, लेकिन बमुश्किल आधे लोग ही 2-3 माह में एक बार गैस रिफिलिंग कराने आते हैं।
यह भी है वजह
उज्ज्वला योजना के अधिकांश हितग्राही झुग्गियों में रहते हैं। वे हजार रुपए का सिलेंडर लेने के बजाय हीटर का उपयोग करते हैं। अधिकतर झुग्गियों में चोरी की बिजली का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है। जिन झुग्गियों में वैध कनेक्शन हैं, वहां भी सौ रुपए से ज्यादा बिल नहीं आता है। इसी तरह से ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी आसानी से मिल जाती है, जिसके लिए उन्हें कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। लकड़ी के अलावा उनके पास ईंधन के अन्य विकल्प भी रहते हैं।
इस तरह के दावे प्रतिदावे
एक गैस एजेंसी संचालक का कहना है कि कोरोना काल में सरकार की सब्सिडी बंद होने की वजह से सिलेंडर के दाम भी बढ़ गए थे , जिसकी वजह से रिफिलिंग कराने वालों की संख्या में कमी आ गई थी, लेकिन अब जुलाई से 200 रुपए की सब्सिडी दोबारा मिलने लगी है, जिससे रिफिलिंग कराने वालों की संख्या बढ़ी है। उधर, एक गैस कंपनी के अधिकारी का कहना है कि उज्ज्वला के तहत कनेक्शनधारी साल में 3-4 बार रिफिलिंग कराते हैं। वहीं अन्य लोग साल में 8 से 12 बार कराते हैं। असल में उज्ज्वला के हितग्राहियों की खपत कम है, इसलिए ऐसा लगता है कि वह रिफिलिंग नहीं करा रहे।