पार्टी के लिए मुसीबत बनें शिव ‘गण’

भाजपा का प्रदेश संगठन इन दिनों शिव गणों को लेकर परेशान है। इसकी वजह है, उनका पूरी ताकत के साथ सक्रिय नहीं रहना और कार्यकर्ताओं के साथ सम्पर्क और संवाद में रुचि नहीं लेना। उनकी इस कार्यशैली के लिए बार-बार नसीहतें भी कई बार दी जा चुकी हैं, लेकिन उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है। इसकी कलई एक बार फिर विकास यात्रा की वजह से खुल गई है। दरअसल प्रदेश में यह चुनावी साल है और भाजपा ने अबकी बार दो सौ पार का नारा देकर लक्ष्य तय किया हुआ है। इस लक्ष्य को पाने के लिए संगठन व सरकार ने मिलकर मंत्रियों को मिशन के लक्ष्य को हासिल करने का दायित्व दिया हुआ है। विकास यात्रा से मंत्रियों की सक्रियता और परफॉर्मेंस की हकीकत सामने आने की वजह से ही हाल ही में सीएम को अचानक मंत्रियों को भोपाल बुलाकर नसीहत तक देनी पड़ गई। दरअसल अब तक जो रिपोर्ट सरकार व संगठन को मिली है ,उसके मुताबिक अधिकांश मंत्रियों के क्षेत्र में भाजपा कमजोर हो रही है। पार्टी सूत्रों की माने तो विकास यात्रा के दौरान अभी तक मंत्रियों के क्षेत्र में ही सबसे अधिक शिकायतें सामने आयी हैं। यही नहीं इस यात्रा के दौरान पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं तक में अपने ही मंत्रियों को लेकर जमकर नाराजगी सामने आ रही है। इसकी वजह से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अचानक बैठक बुलाकर मंत्रियों को हकीकत बताकर साफ कर दिया गया है कि वे एक माह में माहौल बदलें अन्यथा गिरने वाली गाज के लिए तैयार रहें। सूत्रों का कहना है कि संघ और संगठन को अब तक जो फीडबैक मिला है उसके मुताबिक अधिकांश मंत्रियों ने प्रभार वाले जिलों को उपेक्षित छोड़ा हुआ है, वे केवल अपने गृह जिले में ही रुचि दिखा रहे हैं। जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के इलाके में यात्रा के बीच कई पुराने व वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं , जिसकी वजह से संगठन सकते में है। इसकी वजह है मंत्री द्वारा सिर्फ अपने लोगों की ही बात सुनना। खास बात तो यह है कि जिन 22 सीटों पर उपचुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, उनमें अब पार्टी की स्थिति कमजोर बताई जा रही है।
कभी भी कार्यकर्ताओं में हो सकता है विस्फोट
प्रदेश में मंत्रियों व सरकार से उपेक्षित चल रहे पार्टी कार्यकर्ताओं में अंदर ही अंदर असंतोष खदबदा रहा है , जो कभी भी विस्फोटक रुप ले सकता है। इसकी वजह है छुटपुट घटनाओं का सामने आना शुरु होना। 2018 में मंत्रियों को पलकों पर बैठाने वाले कई जमीनी भाजपाई इन दिनों नाराज चल रहे हैं। इसके चलते धीरे-धीरे मैछानी स्तर के कार्यकर्ता भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम रहे हैं। इसकी शुरुआत सांवेर के गुलावट से हुई थी, जहां पर 50 कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली। इसी तरह से बदरखा गांव के 30 नेताओं व कार्यकर्ताओं ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया। इनमें भाजपा के जिला मंत्री राजेंद्र सिंह तक का नाम शामिल है।
नहीं दिखा रहे कार्यकर्ताओं पर भरोसा
संगठन और संघ को मिली शिकायतों के अनुसार मंत्री अपने जिलों के कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने को तैयार नही हैं। भाजपा छोडऩे वालों का कहना है कि वे वर्षों से जिनसे संघर्ष कर रहे थे, वे भाजपा में आ गए। हमने स्वागत किया। चुनाव में तन, मन और धन से सहयोग भी किया लेकिन ,कुछ काम बताओ तो वे करते नहीं हैं। वे इशारों-इशारों में कहते हैं कि उनको हम पर भरोसा नहीं और वे आज भी अपने पुराने लोगों पर ही भरोसा जताते हुए काम करते हैं। ऐसे में हमारी पार्टी में क्या जरूरत। कोई भी हमारी पीड़ा समझना तो दूर, सुनने के लिए भी तैयार नहीं तो क्या मतलब है काम करने से?
इन प्रभार के जिलों में हालात खराब
मंत्रियों की अपने गृह जिले में स्थिति तो खराब है ही साथ ही प्रभार वाले जिलों में भी उनका विरोध हो रहा है। आरोप है कि मंत्रियों के लिए प्रभार वाले जिले केवल पर्यटन स्थल बनकर रह गए हैं। भाजपा सूत्रों के अनुसार जिन मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में भी भाजपा की स्थिति खराब है उनमें तुलसी सिलावट के ग्वालियर और हरदा, कुंवर विजय शाह के नरसिहंपुर और सतना, बिसाहूलाल सिंह के मंडला और रीवा, मीना सिंह के अनूपपुर और सीधी, कमल पटेल के छिन्दवाड़ा और खरगोन, गोविंद सिंह राजपूत के भिंड और दमोह, बृजेन्द्र प्रताप सिंह के सिंगरौली, डॉ. प्रभुराम चौधरी के धार, महेन्द्र सिंह सिसौदिया के शिवपुरी, प्रद्युम्न सिंह तोमर के अशोक नगर और गुना, हरदीप सिंह डंग के बालाघाट और बड़वानी, राजवर्धन सिंह के अलीराजपुर और मंदसौर, बृजेन्द्र सिंह यादव के शाजापुर तथा ओपीएस भदौरिया के प्रभार वाले रतलाम जिला का नाम शामिल है।
मंत्री ही बने थे सरकार की राह में रोड़ा
बीते विधानसभा के आम चुनाव में शिव सरकार के 13 मंत्री हार गए थे। जिसकी वजह से भाजपा बहुमत के आंकडें़ से सात सीट पीछे रह गई थी। इसकी वजह से भाजपा की सीटों की संख्या महज 109 रह गई थी। हारने वालों में भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट से भाजपा के उमाशंकर गुप्ता, दमोह में जयंत मलैया, जबलपुर उत्तर सीट से शरद जैन , ग्वालियर सीट पर जयभान पवैया , ग्वालियर दक्षिण सीट पर नारायण सिंह कुशवाहा, हाटपीपल्या सीट से दीपक जोशी सेंधवा से अंतरसिंह आर्य , बड़ा मलहरा सीट पर ललिता यादव ,मुरैना से रुस्तम सिंह ,शहपुरा में ओमप्रकाश धुर्वे ,खरगोन में बालकृष्ण पाटीदार, गोहद पर लाल सिंह आर्य और बुरहानपुर सीट पर अर्चना चिटनीस का नाम शामिल है।
नहीं दिखा रहे कार्यकर्ताओं पर भरोसा
संगठन और संघ को मिली शिकायतों के अनुसार मंत्री अपने जिलों के कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने को तैयार नही हैं। भाजपा छोडऩे वालों का कहना है कि वे वर्षों से जिनसे संघर्ष कर रहे थे, वे भाजपा में आ गए। हमने स्वागत किया। चुनाव में तन, मन और धन से सहयोग भी किया लेकिन ,कुछ काम बताओ तो वे करते नहीं हैं। वे इशारों-इशारों में कहते हैं कि उनको हम पर भरोसा नहीं और वे आज भी अपने पुराने लोगों पर ही भरोसा जताते हुए काम करते हैं। ऐसे में हमारी पार्टी में क्या जरूरत। कोई भी हमारी पीड़ा समझना तो दूर, सुनने के लिए भी तैयार नहीं तो क्या मतलब है काम करने से?