जनाब! सवाल… एक लाख नौकरियों का है

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। सरकार किसी भी दल की

हो उसका शगल ही होता है मामले का उलझाने का। इसके कई उदाहरण मप्र में देखे जा सकते हैं। खास बात यह है कि अफसरशाही भी ऐसा ही चाहती है। अब नया मामला प्रदेश में एक लाख सरकारी पदों पर भर्ती का है। यह मामला भी अब उलझता दिख रहा है। इसकी वजह है सरकार द्वारा दिए जाने वाला ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण। इस नए आरक्षण की व्यवस्था की वजह से प्रदेश में आरक्षण पचास फीसदी से अधिक हो चुका है, जिससे अब तक न्यायालय समहत नहीं है। दरअसल सरकार चुनावी फायदे के लिए हर हाल में सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने पर अड़ी हुई है। इसकी वजह से अब चुनावी साल में जैसे -तैसे शुरु हो रहीं भर्ती की प्रक्रिया ही उलझने की पूरी संभावना बन चुकी है। प्रदेश में इससे पहले इस वर्ग के लिए आरक्षण14 प्रतिशत लागू था। इसकी वजह से अब प्रदेश के युवाओं में एक बार फिर सरकारी नौकरियों में भर्ती को लेकर निराशा का माहौल बनने लगा है।
इसी तरह से सरकार ने पदोन्नति का मामला भी उलझा रखा है। इसकी वजह से बीते छह सालों से प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं मिल पा रही है। राज्य सरकार ने पुलिस भर्ती में ओबीसी अभ्यर्थियों की 27 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार भर्ती कर ली है। इससे मध्य प्रदेश के ओबीसी के साथ अन्य वर्ग के युवा अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में है। सरकार व शासन किस तरह से लापरवाह हैं, इसका उदाहरण मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा है, जो कई सालों से अटकी पड़ी है। कई अन्य परीक्षाओं में पास होने के बाद भी अभ्यर्थी नियुक्ति का इंतजार करने को मजबूर बने हुए हैं। ऐसे में अब विधि विभाग सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2019 में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए लोक सेवा आरक्षण संशोधन अधिनियम 2019 पारित करते हुए शिक्षा में प्रवेश और अन्य राज्य सेवाओं में ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। इसके बाद इस मामले में शिवराज सरकार भी समर्थन में खड़ी हो गई, जिसकी वजह से मामला उलझता ही जा रहा है।
आधा सैकड़ा लग चुकी याचिकाएं …
उधर, आरक्षक भर्ती परीक्षा में 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने के मामले में एक परीक्षार्थी द्वारा उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में लागई गई याचिका पर सुनवाई के बाद ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के कारण भर्ती पर रोक लगा दी गई है। हाई कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया आयोजित करने वाले मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (पूर्व में पीईबी) को निर्देश दिया है कि चयन सूची 14 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से दोबारा बनाई जाए। यही नहीं इस आरक्षण के मामले में अब तक करीब आधा सैकड़ा से अधिक याचिकाएं लगाई जा चुकी हैं। अब इस मामले में सरकार कोर्ट के फैसले को वैकेट करने के लिए एक आवेदन इंदौर खंडपीठ में लगाने जा रही है। वहीं इस मामले में पूर्व महाधिवक्ता का कहना है कि इस मामले में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ओबीसी का डाटा होने पंचायत चुनाव भी उलझे थे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खानविलकर ने छह माह पूर्व महाराष्ट्र के एक प्रकरण में यह स्पष्ट कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी आया नहीं है, मध्य प्रदेश के प्रकरण भी डिफर कर दिए हैं। जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता तब तक 27 प्रतिशत आरक्षण के आधार पर भर्ती प्रक्रिया नहीं की जा सकती है।
सरकारी नौकरी में पदोन्नति का मामला भी अटका
प्रदेश में पदोन्नति का मामला भी बीते छह सालों से अटका हुआ है। सरकार इस मामले का भी हल नहीं चाहती है। इसकी वजह से हाईकोर्ट से फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सरकार भी जानती है कि इस मामले में उसे जीत मिलना मुश्किल है , लेकिन फिर भी सरकार सुप्रीम कोर्ट में लगातार पैरवी कर रही है। इसकी वजह से हर साल प्रदेश में हजारों कर्मचारियों को बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त होना पड़ रहा है। इसका खामियाजा सरकार को इस बार विस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।