मप्र की पंचायतों में पंच के 40 हजार पद खाली…
भोपाल.मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। पंचायती राज व्यवस्था में महत्वपूर्ण इकाई होने के बाद भी मप्र की पंचायतों में पंच के हजारों पद खाली पड़े हैं। दरअसल, ग्रामीणों की ‘पंच परमेश्वर’ में कोई रूचि नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है जटिल प्रकिया। अब तक पंच का चुनाव लडऩे वालों को आवेदन देने पर ही चुनाव की पात्रता थी। अन्य औपचारिकताएं नहीं होती थीं, लेकिन नई व्यवस्था के तहत पंच का चुनाव लड़ने के लिए शपथ पत्र बनवाने में दो हजार रुपए खर्च होने लगे हैं। इसके पहले पांच विभागों से नोड्यूज लेना पड़ता है। इसके अलावा हर बैठक में पंच को 100 रुपए देने का प्रावधान है, लेकिन ग्राम सभा की बैठकें नहीं होने से पंचों को यह राशि भी नहीं मिल पा रही है। इसलिए लोगों की पंच बनने में रूचि नहीं है। यही कारण है कि चुनाव, फिर उसके बाद हुए उपचुनाव के बाद भी पंच के 40 हजार पद खाली पड़े हैं। गौरतलब है की करीब 10 माह पहले पंचायत चुनाव हुए थे, तब पंच के 3,63,326 पदों के लिए 95,695 उम्मीदवारों ने ही नामांकन भरा। एक बार चुनाव और फिर पंच के रिक्त पदों पर हुए उप चुनाव के बाद भी प्रदेश में पंच के करीब 40 हजार पद खाली पड़े हैं। पिछले साल जून-जुलाई में हुए पंचायत चुनाव में 63 हजार 300 पंच के पदों पर चुनाव लडऩे लिए एक भी नामांकन नहीं भरा गया था, जबकि प्रदेश में पंच के कुल पदों की संख्या 3 लाख 63 हजार 326 है। इसके बाद पंच के रिक्त पदों पर जनवरी में उपचुनाव कराए गए। उपचुनाव के बाद भी पंच के करीब 40 हजार पदों पर चुनाव लडऩे में लोगों ने रुचि नहीं दिखाई। ये पद अब भी रिक्त पड़े हैं। राज्य निर्वाचन आयोग इन रिक्त पदों पर फिर से उपचुनाव कराने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में पंच निर्विरोध हुए थे, क्योंकि इन सीटों पर एक से ज्यादा नामांकन ही नहीं भरे गए थे, जबकि 63 हजार से ज्यादा पंच के पद ऐसे थे, जिनके लिए एक भी नामांकन नहीं भरा गया था। पंच के इन रिक्त पदों के लिए हुए उपचुनाव में भी हजारों पदों पर एक भी नामांकन नहीं भरा गया, इसलिए ये पद रिक्त पड़े हैं।
चुनाव प्रक्रिया जटिल
प्रदेश में 52 हजार गांव हैं जिनमें प्रत्येक गांव की इकाई का पंच प्रमुख होता है जिसे 60 लोग चुनते हैं। पंच का चुनाव लडऩे से तौबा करने की बड़ी वजह चुनाव प्रक्रिया का जटिल होना है, जिसमें प्रमुख रूप से शपथ पत्र बनवाने में दो हजार रुपए का खर्चा आ रहा है। इसके पहले पांच विभागों से नो ड्यूज लेना पड़ता है, जिसमें बिजली का बकाया बिल न केवल खुद का जमा करना होता है, बल्कि भाई और रिश्तेदारों का भी। पानी का अनापत्ति प्रमाण पत्र, घर का टैक्स भी क्लियर होना जरूरी है। अब तक पंच का चुनाव लडऩे वालों को आवेदन देने पर ही चुनाव की पात्रता थी। अन्य औपचारिकताएं नहीं होती थीं। नई व्यवस्था के तहत यदि उन्होंने सरकारी जमीन पर खलिहान भी बना लिए हैं जो सिर्फ सीजन के हिसाब से होते हैं, ये अब अतिक्रमण की श्रेणी में आ गया है। पंच का चुनाव लड़ने वाले पंचायत में नो ड्यूज लेने जा रहे हैं जिसका उन्हें प्रमाण-पत्र नहीं मिल पाया।
हर बैठक में 100 रु. देने का प्रावधानवो भी नहीं मिल रहे
चुनाव न लड़ने की दूसरी वजह है- पंचों का गांवों की सरकार में महत्व कम होना है। पिछले 20 साल यानी 2003 के बाद ग्राम सभा की बैठकों का आयोजन नहीं हुआ है। हर बैठक में शामिल होने पर पंच को 100 रुपए देने का प्रावधान है। यही स्थिति सरपंच के मामले में है। उन्हें हर महीने 1700 रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है, जो नहीं मिल पा रहा है। इसी तरह जिला पंचायत सदस्य को 4500 रुपए और जनपद सदस्य को 2500 रुपए दिए जाने का प्रावधान है, यह भुगतान भी लंबे समय से नहीं हो रहा है। राज्य सरकार ने गत दिसंबर में सरपंचों का मानदेय 1750 से बढ़ाकर 4250 रुपए कर दिया है और ग्राम पंचायतों के प्रशासकीय स्वीकृति के अधिकार की सीमा भी बढ़ा दी गई है, लेकिन पंचों को मानदेय देने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया। आयोग के सचिव राकेश सिंह ने बताया कि प्रदेश में बड़ी संख्या में पंच के पद रिक्त हैं। पंच के रिक्त पदों के साथ ही पंचायतों में अन्य रिक्त पदों के लिए फिर से उपचुनाव कराए जाएंगे। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है।